SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 20
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तत्क्षण उसे बदलकर पाठकों को अरुचि उत्पन्न नहीं। इस सम्बन्ध में जब हम आदिपुराण पर्व ३१ के हो, इस ढंग से वर्णन करता है। श्लोक १२२ को देखते हैं, तो उसमें लिखा है- 'अश्वरत्न इस प्रकरण से स्पष्ट है कि रत्नाकर ने इस ग्रन्थ | पर बैठे हुए सेनापति ने 'चक्रवर्ती की जय हो' इस को मात्र लोकप्रसिद्धि के लिए रचा था, तथ्यप्रकाशन | प्रकार कहकर दण्डरत्न से गुफाद्वार का ताड़न किया, के लिए नहीं। जिससे बड़ा भारी शब्द हुआ।' इस आदिपुराण के कथन यहाँ तक रचयिता कवि की अप्रामाणिकता का | को जो महान् आचार्य द्वारा लिखित है, रत्नाकर कवि वर्णन किया गया, अब ग्रन्थ के उन प्रसंगों का वर्णन | ने गलत बताया है। किया जाता है जो आगम सम्मत नहीं हैं। ८. भाग १ के पृ. ३०१ पर लिखा है कि व्यन्तरों १. भाग १ पृ. १४१ पर कहा है कि भरतेश की | ने भरतेश्वर की आज्ञा पाते ही शासनों के रक्षक शासक रानियों की संख्या ९६ हजार है, जब कि अभी महाराजा | देवों को खूब ठोका, जिससे उनके सब दाँत टूट गये। भरत चक्रवर्ती नहीं बने थे। यह प्रकरण बिल्कुल आगम- ९. भाग १ में पृ. २८८ पर लिखा है कि जब सम्मत नहीं है। जयकुमार ने आवर्तक राजा को भरतेश्वर के सामने पेश २. पृ. १७ (भाग १) पर लिखा है कि महाराजा | किया तो सम्राट ने अपने पादत्राण को सँभालनेवाले चपरासी भरत ने आत्मप्रवाद नाम के ग्रन्थ की रचना की थी। से कहा कि तुम इसे लात मारो और चपरासी ने बाँये यह प्रकरण किसी भी पुराण से मेल नहीं खाता। | पैर से लात मारी। ३. भाग १ (पृ. १६८) में लिखा है कि वे रानियाँ | १०. भरत और बाहुबलि के मध्य में जो दृष्टियुद्ध भरतेश के द्वारा निर्मित अध्यात्मसार को पढ़ रही हैं। | जलयुद्ध और मल्लयुद्ध हुए थे, उसका इसमें वर्णन ही अर्थात् इस ग्रन्थ की रचना भी महाराजा भरत ने की | नहीं है। पृ. ४१४ पर कहा है कि भरतेश ने बाहुबलि थी। यह प्रकरण भी बिल्कुल गलत है। से कहा- "भाई! अब अपने मुख से मैंने कहा कि ४. भाग १ के पृ. १६९ पर लिखा है कि कभी | मैं हार गया और तुम जीत गये इस प्रकार भरतेश्वर वे शुद्धोपयोग में मगन होते हैं, तो कभी शुद्धोपयोग के | ने अपनी हार बताई।" साधनीभूत. शुभोपयोग का अवलंबन लेते थे। अर्थात् | यह प्रकरण आदिपुराण से बिल्कुल मेल नहीं खाता। रत्नाकर कवि को इतना भी आगमज्ञान नहीं था कि क्या | आदिपुराण पर्व ३६ में लिखा है कि भरत और बाहुबली कोई राजा राज्य करते हुए शुद्धोपयोग में मग्न हो सकता | के बीच दृष्टियुद्ध, जलयुद्ध ओर मल्लयुद्ध हुए और तीनों में बाहुबली ने विजय प्राप्त की। रत्नाकर कवि ने पूरा ५. भाग १ के पृ. १७१ पर कहा है कि भरतेश | 'भरतेशवैभव' अपनी इच्छानुसार लिखा है, अतः अप्रामाणिक ने सबसे पहले मंदिर में शासनदेवताओं को अर्घ्य प्रदान | कर श्री भगवन्त का स्तोत्र व जप किया। यह कथन ११. भाग १ के पृ. ४१५ पर लिखा है कि भरतेश्वर किसी भी शास्त्र से मेल नहीं खाता। भरतेश के काल | ने चक्ररत्न को बुलाकर कहा कि चक्ररत्न जाओ। तुम्हारी में शासनदेवताओं की कल्पना ही नहीं थी। । मुझे जरूरत नहीं, तुम्हारा अधिपति यह बाहुबली है। ६. भाग १ के पृ. १७९ पर लिखा है कि सम्राट जब चक्ररत्न आगे नहीं गया, तब भरतेश्वर क्रोध से भरत ने जल, चन्दन आदि अष्ट द्रव्यों से अपनी माता | कहने लगे अरे चक्रपिशाच! मैं अपने भाई के पास जाने की पूजा की। यह कथन एकदम आगमविरुद्ध है। | लिए बोलता हूँ, तो भी नहीं जाता है, इस प्रकार कहते ७. भाग १ के पृ. २५० पर लिखा है कि चक्रवर्ती हुए उसे धक्का देकर आगे सरकाया, परन्तु वह आगे के रत्नों का उपभोग वे स्वतः ही कर सकते हैं। यह | नहीं बढ़ा। भी लिखा है कि कुछ लोग ऐसा वर्णन करते हैं कि इस प्रंसग के सम्बन्ध में आदिपुराण पर्व ३६ (श्लोक भरतेश्वर ने जयकुमार, जो सेनापति रत्न था, उसे भेजकर | ६६) में इस प्रकार कहा है- "स्मरण करते ही वह उसके हाथ से विजयाद्ध के वज्रकुमार का स्फोटन कराया। चक्ररत्न भरत के समीप आया, भरत ने बाहुबली पर परन्तु यह ठीक नहीं है। चलाया, परन्तु उनके अवध्य होने से वह उनकी प्रदक्षिणा 18 नवम्बर 2009 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524345
Book TitleJinabhashita 2009 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy