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________________ ज्ञातृ - पुत्र महावीर की जन्मभूमि वैशाली महापंडित स्व० श्री राहुल सांकृत्यायन जी प्रस्तुत लेख में महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने प्रकाश भगवान् महावीर के जन्मस्थान के विषय में डाला है, उस पर जैनों को विशेष ध्यान देना उचित है। मुजफ्फरपुर जिले का वसाढ नामक ग्राम ही प्राचीन वैशाली और कुंडग्राम प्रमाणित हुआ है । वसाढ की खुदाई से ऐसे चिन्ह मिले हैं, जिनसे सिद्ध है कि वैशाली वहीं पर आबाद थी। चीन से जो यात्री आये, उन्होंने भी अपने यात्रावृत्तों में इसी स्थान पर वैशाली की स्थिति सूचित की है। जैन शास्त्रों से भी यह सिद्ध होता है कि वैशाली के पास ही भगवान् महावीर की जन्मभूमि कुंडग्राम अवस्थित थी बसाढ के खण्डहरों में वैशाली, कुंडग्राम और वनीय ग्राम के स्मृति चिन्ह रूप अवशेष बसाढ, बसुकुण्ड और बनिया नामके ग्राम मिलते हैं। जैनशास्त्रों के निम्नलिखित अवतरणों से वैशाली और कुंडग्राम विदेह देश में अवस्थित प्रमाणित होते हैं । I "तएण से कूणिएराया.........वसमाणे वसमाणे अगंजण वयस्स मज्झं मझेणं जेणेव विदेहे जणवए जेणेव वेसाली नयरी तेणेव पहारेत्थ गमणाए ।" निरयावलियाओ । सुखाभ: : इससे सिद्ध है कि अंग देश (बिहार प्रान्त का भागलपुर जिला) से चल कर विदेह देश में पहुँचा जाता था जहाँ वैशाली अवस्थित थी । ' हरिवंश पुराण' से भी स्पष्ट है कि कुंडग्राम विदेह देश में था और वहीं राजा चेटक की राजधानी वैशाली थी। (विदेह इति विख्यातः स्वर्ग खण्डसमः प्रियः । कुंडमाभांति नाम्ना कुंडपुरं पुरं चेतश्चेटक राजस्य यास्ताः सप्तशरीरजा अतिस्नेहा कुलं चक्रुस्तावाद्या प्रियकारिणीं । इत्यादि) श्री पूज्यपाद आचार्य भी कुंडपुर को विदेह देश में बताते हैं (भारतवास्ये विदेहकुंडपुरे ) इन और ऐसे अन्य उल्लेखों से वैशाली और कुंडग्राम का विदेह देश में अवस्थित होना स्पष्ट है बिहारवासियों ने बसाढ को भगवान महावीर की जन्मभूमि मान कर उसका उद्धारकार्य प्रारम्भ कर दिया है और महावीर जयन्ती के दिन वहाँ उत्सव भी मनाया जाता है। किन्तु खेद है कि जैनी अभी तक यह भी निश्चित नहीं कर सके हैं कि भगवान महावीर की जन्मभूमि कहाँ पर है? राजगृह और नालन्दा के खण्डहरों के पास बसा हुआ बड़ागाँव नामक स्थान कदापि भगवान महावीर का जन्मस्थान नहीं हो सकता है। अतः जैनों को चाहिये कि वसाद में ही भगवान महावीर के जन्मस्थान तीर्थ की स्थापना करें। महापंडित राहुलजी के कथन को उन्हें व्यवहारिक रूप देना उचित है । (का०प्र०) .... ईसा पूर्व पाँचवी छठीं शताब्दि में वैशाली का गणराज्य बहुत ही शक्तिशाली राष्ट्र था । वह उत्तरीय भारत के मगध, कौसल, वत्स और अवन्ती के विशाल राज्यों से शक्ति में समकक्षता करता था। समय आया, जब राजतन्त्र के प्राबल्य के सामने गणों (प्रजातन्त्रों) का विनाश हुआ, यद्यपि ये काम होने में शताब्दियाँ लगीं और भारत का अन्तिम गणतन्त्र यौधेय ई० चौथी शताब्दि के अन्त में लुप्त हुआ । अपने जीवन की पिछली तीन शताब्दियों में यौधेय गण का वही उच्च स्थान था, जो कि अपने समय के वैशाली के गणतन्त्र का था । गुप्तों द्वारा यौधेय गण का जब उच्छेद हुआ, वीर यौधेय अपने नगरों अग्रेया, ओस, खण्डिल आदि से निकलकर जहाँ तहाँ विखर गए, और अग्रवाल, खण्डेलवाल, ओसवाल, बर्न-वाल, । के प्रजातन्त्र में पैदा हुए, और महावीर वैशाली के रोहतगी ( रस्तोगी) आदि नामों से प्रख्यात हुए आज भी यौधेय (हरियाना) की भूमि से निकली इन जातियों में ज्ञातृ-पुत्र महावीर की शिक्षा का आचरण या धर्म के रूप में अस्तित्व पाया जाता है। महावीर एक बलशाली जनसत्ताक गण में पैदा हुए और दूसरे गण से निकले लोगों में आज उनका धर्म सुरक्षित है। सोलह शताब्दियों तक निरंकुश स्वदेशी विदेशी राजाओं के जूये के नीचे दबता -पिसता भारत आज फिर एक विशाल प्रजातन्त्र के रूप में परिणत हो रहा है। गण-तंत्री धर्मवाले हम बौद्धों और जैनियों के लिए यह अभिमानकी बात है । यह आकस्मिक बात नहीं है कि बुद्ध और महावीर को जन्म देनेवाले राजतन्त्र नहीं, प्रजातन्त्र थे । बुद्ध शाक्यों 14 नवम्बर 2009 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524345
Book TitleJinabhashita 2009 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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