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________________ यह आत्मा का अमर संगीत है। मनुष्य का संवेदन- | 'सस्मित अधर', 'कज्जल काली धूम', 'प्रकाश पुंज', गीत है। प्रो० (डॉ०) सत्यरंजन वन्दोपाध्याय 'मूकमाटी' | 'आगामी अन्धकार' आदि विलक्षण बिम्ब-विधान हैं। को 'तपस्या के द्वारा अर्जित जीवन-दर्शन की अभूतपूर्व | अमूर्त का मूर्तीकरण और जड़ का मानवीकरण अद्भुत अनुभूति' कहते हैं। (वही, खण्ड ३, पृ. ७९)। | है। 'दिव्य चैतन्य बोध ही कवि का अन्तस्तल है, जो __अन्वेषण की तत्परता सर्वत्र दृष्टिगोचर होती है। आपार करुणा से झिलमिल करता है। (वही, खण्ड ३, यह कला की साधना और साधना की कला है। 'कीरति | पृ. ३३२)। काव्यशैली अर्थ-विस्तार की द्योतक है। भनिति भूति' (मानस १.१४) में सबका हित-चिन्तन निहित | जैनदर्शन को संवेदना के धरातल से कवि ने जोड़ है। विद्यासागर जी के संस्कृति-चिन्तन में सत्य, अहिंसा | दिया है। माटी का माटी के लिए लिखा यह सन्त काव्य और करुणा का समाहार है। एक नयी काव्यात्मक पहचान | है। साधना और संवेदना का समानान्तर है। माटी के के साथ 'मूकमाटी' का रचना-धर्म अस्तित्व ग्रहण करता | बहाने लघु मानव को वाणी प्रदान की गई है। 'मूकमाटी' है। ठीक है- 'माटी की अन्तर्व्यथा 'मूकमाटी' में करुणा | का सन्देश हैकी कोमल रागिनी बन गयी है।' (वही, खण्ड ३, पृ. 'आत्म-ज्योति की दीपशिखा को, १५०)। सत्य है- 'बाहर की सुगन्ध से तेज भीतर की आगम पथ पर मढ़ लेते हैं, सुगन्ध होती है, जो गुरु कृपा से अन्तर में बहती है।' मूकमाटी की मूक व्यथा को, (वही, खण्ड ३, पृ. १५६)।। अन्तरतम में गढ़ लेते हैं। यह परिपक्व मानस की उपज है। डॉ० नामवर सात तत्त्व के सही रूप को, सिंह ने 'हिन्दी के विकास में अपभ्रंश का योग' (पृ. प्रतिपल जो जीवन में गढ़ते, १८३) नामक पुस्तक में जैनसाहित्य (प्राचीन) का विशिष्ट वही मूकमाटी को घट में, मूल्यांकन प्रस्तुत किया है। स्वयम्भू, पुष्पदन्त, धनपाल, मंगल कलश रूप दे मढ़ते॥' जोइन्दु (योगीन्द्र), रामसिंह, राजशेखर, शालिभद्र आदि (वही, खण्ड ३, पृ. ४८२) की परम्परा में विद्यासागर का विचार अपेक्षित है। व्यक्ति 'मूकमाटी-मीमांसा' के तीन खण्डों में देश-विदेश के सही रूप प्राप्त करने की दिशा में यह एक विलक्षण | के २८३ समालोचकों के विविधविध विचार संकलित प्रयास है। हैं। विवेच्य काव्य के आयाम का विस्तार ही वैचारिक 'रामचरितमानस' विश्वकाव्य है। 'मकमाटी' भी | विशदता का मूल है। विश्वकाव्य की अर्हता प्राप्त कर सकती है। 'इस प्रकार मूलत: 'मूकमाटी' 'विरति विवेक संयुत हरि भगति 'मूकमाटी' एक साहित्यिक और आध्यात्मिक कृति है | पथ' का काव्य है। समर्पण का गीत हैजो विश्व के मानवों को जीने का रहस्य बतलाती है।' 'मूकमाटी' सृजन का समर्पण करता हुआ(वही, खण्ड ३, पृ. १९३)। 'गुरुचरणारविन्द चंचरीक' कुम्भकार गुरु है। अनगढ़ को गढ़ता है। मिट्टी ('मूकमाटी' रचयिता की 'हस्तलिपि' से) के लोंधे को सुन्दर आकार प्रदान करता है। गुरु दया करता है। क्षमा करता है। सन्त वाणी में क्षमा का बड़ा पूर्व विश्वविद्यालय आचार्य महत्त्व है। विद्यासागर जी क्षमा को काफी अहमियत स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग देते हैं। मगध विश्वविद्यालय, बोधगया, बिहारबिम्ब-विधान काफी प्रौढ़ हैं। 'विस्मित लोचन', | ८७४२३४ आवास- अशोकनगर, गया- ८२३००१, बिहार (सूचना : मूकमाटी-मीमांसा के तीनों खण्डों का बाह्य रूप अन्तिम आवरण पृष्ठ पर देखिए। ) - अक्टूबर 2009 जिनभाषित 31 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524344
Book TitleJinabhashita 2009 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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