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उदाहरण हैं।
सोयाबीन मांस की अपेक्षा कहीं अधिक उत्तम वस्तु भोजन हमारे शरीर की वनावट भोजन पर निर्भर है। अतएव | की है। उचित भोजन जो शाकाहार है, उसको विधिवत् ग्रहण | ऐसा देखा गया है कि बच्चा पैदा होते समय हृष्टपुष्ट करने से असाधारण रुकावट नहीं होती और शरीर हृष्टपुष्ट | होते हुये भी २० या २१ वर्ष की युवावस्था में, जब ठीक विचारों को उत्पन्न करने में सहायक होता है। उसे स्वस्थ होना चाहिये, रोगी बन जाता है, यह भोजन
यह धारणा भी गलत है कि मांस से मांस उत्पन्न | एवं आचार-विचारों का ही दुष्प्रभाव होने का फल है। होता है, क्योंकि पकने पर उसके जीवित कण नहीं रहते | प्रत्येक जीवको अपनी उत्पत्ति और बढान काल के अठगुने
और कण भी भिन्न होते हैं। मांसभोजन मानव को पश | समय तक जीवित रहना चाहिये, परन्तु मनुष्य की आयु बना देता है।
दूनी भी कठिनता से हो पाती है। यह सब केवल ठीक में अब यह बताता हूँ कि मांसाहारी जानवरों और और विधिपूर्वक भोजन न प्राप्त करने का ही दुष्परिणाम मनुष्यों में क्या अन्तर है?
है। बहुत से पदार्थों का मुख्यांश छील कर या अधिक जितने भी मांस खानेवाले जानवर हैं उनकी आँते पकाकर नष्ट कर दिया जाता है अथवा मसालों से स्वादिष्ट छोटी होती हैं, जैसे शेर की आँत १५ फीट लम्बी होती | बनाने के लिये ऐसा भोजन किया जाता है जो, अंतड़ियों है। इसके विपरीत, जितने जीव संतोषी, शाकाहारी अथवा | की अंतरझिल्ली को जलाकर छिन्नभिन्न कर देता है और मांस न खानेवाले हैं, उनकी आँतें २६ से ३० फीट तक |
| पेचिश इत्यादिक रोग उत्पन्न हो जाते हैं। लम्बी होती हैं, जिससे साग-पात लम्बे समय तक सड़गल अतएव इन्द्रियलिप्सा और पैशाचिकता को छोड़कर कर पाचनक्रिया में रस बना सकें। इसी प्रकार से मनुष्य | मानव को उचित है कि वह दयाभाव उत्पन्न करे। शरीरऔर मांसभक्षी पशु के दाँतो में भी अन्तर है। यदि एक | पोषण और स्वास्थ्यवर्धन के लिये वह ठीक और बन्दर को बंद करके मांस खिलाया जावे, तो उसे तपेदिक | स्वास्थ्यकर शाकाहार को ग्रहण करे। लोक के सभी हो जायेगा। साग के भोजन में कई ऐसे सुन्दर अमूल्य महापुरुष शाकाहारी हुये हैं। भगवान् महावीर ही अहिंसा पदार्थ हैं, जो मनुष्य को हृष्टपुष्ट रखने में लाभकारी के अवतार थे। उनके उपदेश से भारत में शाकाहारहोते हैं। सबको न बताकर केवल एक सोयाबीन का | विज्ञान की विशेष उन्नति हुई थी। उनके अतिरिक्त श्री ही उल्लेख करूँगा। इसमें लेसीथीन और फासफोरस | गौतमबुद्ध, ईसामसीह, मुहम्मद सा०, ऋषि दयानंद एवं ब्रहमाइड की शक्ति के लिये ठीक अनुपात में होता है। विश्वविभूति महात्मा गाँधी के जीवनचरित्र पढ़िये और इसमें वेसीलिस एसिडोफिल्स अर्थात् एक प्रकार के आँत, देखिये कि वे अहिंसावृत्ति को धारण करके ही महान के कीटाणु, जो भोजन की पाचनक्रिया करते हैं, अधिक | हुय थे। शाकाहार ही श्रेष्ठ भोजन है। काल तक जीवित रह सकते और बढ़ सकते हैं। अतः ।
'भगवान् महावीर स्मृति ग्रन्थ' से साभार
संत श्री गणेश प्रसाद जी वर्णी की राष्ट्रभक्ति सन 1945 की घटना है। मध्यप्रदेश की संस्कारधानी जबलपुर में सुप्रसिद्ध साहित्यकार एवं राजनीतिज्ञ प्रान्तीय कौंसल, नागपुर के उच्चाधिकारी श्रीयुत पं० द्वारिका प्रसाद जी मिश्र की अध्यक्षता में आजाद हिन्द फौज की सहायतार्थ विशाल सभा का आयोजन हुआ। नेताजी सुभाषचन्द्र बोस के नेतृत्ववाली आजाद हिन्द फौज के सैनिकों को राजद्रोह में अंग्रेजों द्वारा बंदी बनाकर मुकदमा चलाया जा रहा था।
इस सभा को क्षुल्लक श्री १०५ गणेश प्रसाद वर्णी ने संबोधित करते हुए व्याख्यान दिया कि यद्यपि मैं राजकीय विषय में कुछ नहीं जानता, फिर भी मेरी भावना है कि हे भगवन्! देश का संकट टालो। जिन लोगों ने देश के लिये अपना सर्वस्व न्यौछावर किया, उनके प्राण संकट से बचाओ। मेरे पास सहायता करने को कुछ नहीं है, केवल दो चादरें हैं। इनमें से एक चादर मुकदमे की पैरवी के लिये देता हूँ और मन से परमात्मा का स्मरण करता हुआ विश्वास करता हूँ कि वे सैनिक अवश्य ही कारागृह से मुक्त होंगे। सभा में उस चादर की नीलामी की गई, जो उस सस्ते जमाने में भी तीन हजार रुपयों में गई और यह राशि सैनिकों की सहायतार्थ भेजी गई। संत वर्णी की भावना के अनुरूप आजाद हिन्द फौज के सैनिक जल्द ही मुक्त कर दिये गये।
श्रीमती अनीता जैन राकेश' बरगी हिल्स, जबलपुर
-सितम्बर 2009 जिनभाषित 13
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