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________________ कदाचित् रक्त के तेजाब का अनुपात ठीक रहे। शरीर में एक स्फूर्ति का आभास अथवा बिजली का और तेजाबी भोजन ग्रहण किया जाय, तो भी शरीर कार्य | चार्ज हो जाता है। अतएव शरीर की प्रथम शक्ति उसके करता है, परन्तु इस अनुपात का घट बढ़ जाना संकट | आन्तरिक स्थान से ही प्राप्त होती है। से खाली नहीं है। डॉ० बरघोल्ज, एक अमेरिकन डाक्टर ने बताया जो भोज्य पदार्थ खारी नमक बनाते हैं, वे तेजाब | है कि प्रत्येक पौधे, फल, साग इत्यादि में दो प्रकार का समीकरण करते हैं और जो तेजाबी नमक बनाते | के रेशे होते हैं, जो बिजली के पोजिटिव और निगेटिव हैं, वे खार का समीकरण करते हैं। इस प्रकार की क्रियायें | तारों का काम करते हैं। और जब ये भोजन द्वारा शरीर और प्रतिक्रियायें जो भोजन से उत्पन्न होती हैं, शरीर | में पहुचते हैं, तो पाचनक्रिया के अतिरिक्त, जो रसायन की रसायन क्रिया को ठीक रखती हैं। रोटी, बिस्कुट | की बनावट इत्यादि में उपयोगी होता है, एक बिजली और अन्य अन्न पदार्थ तेजाब उत्पन्न करते हैं और फल | को अपने रेशों की मिलावट द्वारा शरीर में उत्पन्न करता साग और बादाम आदि खार। यही इस प्रकार रसायन है। वे ही शक्ति को एकत्रित करते हैं और फिर धीरेअनुपात को रक्त में ठीक रखते हैं। धीरे, उस शक्ति को निकाल देते हैं। इसका उदाहरण मांस, मछली, अंडा एवं चीज गहरे तेजाबी भोज्य इसप्रकार है कि एक गेल्वनो मीटर के सरकिट अथवा पदार्थ हैं और जब ये पाचनक्रिया में जल जाते हैं. तो तारों के जडे हये घिराव में सेव लगा दीजिये, तो सई तेजाबी अनुपात को सलफ्यूरिक एसिड, यूरिक एसिड | हिलने लगेगी और फिर क्रमशः रुक जायेगी। फिर उस और फास्फोरिक एसिड में परिणत होकर बढ़ा देते हैं, | सेव को निकाल कर थोड़ी देर अलग रख दीजिये। जब जिससे मूत्ररोग, हृदय की धमनियों का रोग और एपोप्लेक्सी, | उसमें आक्सीजन हवा से प्रवेश कर लेगी, तो फिर उसको एक प्रकार का लकवा रोग उत्पन्न होता है। । सरकिट में लगा दीजिये। वही क्रिया फिर होने लगेगी। कुछ व्यक्तियों का ऐसा निराधार विचार है कि इससे यह प्रमाण मिला कि आक्सीजन शरीर में भोजन मांस के अतिरिक्त अन्य रूपेण शक्ति उत्पन्न नहीं हो | द्वारा भी कार्यक्रम में आती है और कार्बन डी ऑक्साइड सकती। यह पैशाचिक मनोवृत्ति है। ऐसे व्यक्तियों का | निकल जाती है। इससे यह भी सिद्ध होता है कि भोजन हृदय पाषाण है, जो पर दुख से नहीं पसीजता। इनमें से कण अथवा सेल्स बनती हैं, जो आकर्षण स्थान से दया छू तक नहीं गई है। वे केवल असार संसार के | शक्ति उपार्जन करके अपनी दौड़ से एक बिजली की - दिखावटी वैभवों में लिप्त होकर चूर हो रहे हैं। उत्पत्ति करती हैं, जिससे शरीर की गरमी और चलने मेजर जनरल सर राबर्ट मेक गेरीसन ने जो ब्रिटिश | फिरने की क्रिया होती है। इसी के द्वारा हम अपनी साम्राज्य का प्रमुख भोजन का दक्ष डॉक्टर है, कहा है | इच्छानुसार चलते फिरते और कार्यक्रम करते हैं। जब कि यदि अन्न, दूध और ताजे साग विधिपूर्वक ग्रहण उक्त क्रिया में किसी अमुक भोज्य पदार्थ से रुकावट किय जावें, तो वे मनुष्य शरीर की बनावट और उसके उत्पन्न हो जाती है और जिस अंग में भी ये सेल्स कार्यक्रमों को ठीक रखते हैं। उन्होंने मांसको अनावश्यक ठीक दौड़ नहीं लगा पातीं, वही अंग शिथिल होकर भोज्य पदार्थ बताया है। बीमार हो जाता है। इससे यह भी सिद्ध होता है कि एक साधारण किन्तु निराधार विचार यह भी है | जो शक्ति हमको जीवित रखती है, रुकावट होने से तेजी कि जो भोजन हम करतें हैं, उसके अनुसार या उससे | से हमको मार भी सकती है। किसी का भोजन किसी * ही तत्काल शक्ति उत्पन्न हो जाती है। होता. ऐसा कुछ | का विष भी हो सकता है, क्योंकि शरीर की धमनियों भी नहीं है। शरीर की युनिट अथवा बनावट के मूल | की बनावट में उसकी परिस्थिति के अनुसार अन्तर होता अंश, छोटे-छोटे कण हैं, जिन्हें अंग्रेजी में सेल्स (cells) | है। कुत्ते का पेट हड्डी हजम कर सकता है, पर मनुष्य कहते हैं। ये सेल्स शरीर के भीतर सौ मील प्रति घंटे | नहीं। बादाम कुत्ते को मार सकती है, किन्तु मनुष्य को की दर से पृथ्वी के चक्करों की गति के अनुसार दौडते | लाभकर हैं, नीबू का रस बिल्ली और खरगोश के लिये रहते हैं। इस प्रकार यही कण शक्ति के आकर्षण की | विष है। कपूर से किनारी नामका जानवर मर जाता है। लकीरों पर हो कर शक्ति उपार्जन करते रहते हैं, जिससे | कबतूर अफीम अधिकांश में खा लेता है। ऐसे अनेक 12 सितम्बर 2009 जिनभाषित - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524343
Book TitleJinabhashita 2009 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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