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________________ है। किन्तु शुद्ध आत्मा में पुनः कर्मों का मेल नहीं हो | था। दो विजातीय द्रव्य जब अनादि से मिले हुए चले सकता है। इस फर्क का भी कारण यह है कि आत्मा | आते हैं, तो उनके पृथक् हो जाने पर पुनः वे नहीं मिलते के साथ कर्मों का मेल किसी वक्त में किया हुआ नहीं | हैं। जैसे खान में से निकला हुआ सोना विजातीय द्रव्य है, वह अनादि से चला आ रहा है, इसलिए वह मेल | से मिला हुआ रहता है। एक बार सोने में से उस विजातीय एक बार पूर्णतया पृथक् हो जाने पर पुनः उनका मेल | द्रव्य के पूर्णतया अलग हो जाने पर फिर सोना उस बनता नहीं है। यदि सुवर्ण और चाँदी का मेल भी इसी | विजातीय द्रव्य से नहीं मिल सकता है, जैसे 'तिल्ली तरह अनादि का होता, तो उस मेल के भी पूरे तौर | में तेल' इत्यादि और भी उदाहरण दिए जा सकते हैं। पर फट जाने पर पुनः उनका मेल भी नहीं हो सकता (शेष अगले अंक में) "जैन निबन्धरत्नावली' (भाग २) से साभार दुलार के साथ रखें सार्थक नाम डॉ० ज्योति जैन मेरी भतीजी 'यूँ चूँ' हाँ, उसे प्यार से इसी नाम से बुलाते हैं सब, नन्ही सी थी, तो पूरे घर में यूँ यूँ ही सुनाई देता था, पर अब जब वह बड़ी हो रही है, उसका नाम बुलाते समय कुछ अजीव सा लगने लगा है। सबसे अहम बात तो यह है कि एक दिन वह स्वयं कहने लगी कि 'आप लोगों ने ये क्या नाम रखा?' न चाहते हुये भी परिचित, रिश्तेदार और घर के सभी सदस्य उसे चूँ चूँ कहकर ही बुलाते हैं। बच्चा जब जन्म लेता है, तो घर का प्रत्येक सदस्य लाड़ में उसे कुछ कहकर बुलाता है। उन्हीं में से कोई एक नाम भा जाता है और वह बच्चे का घर का नाम हो जाता है। बच्चा जब स्कूल जाना प्रारम्भ करता है, तो एक बार फिर नाम की खोजबीन शुरू हो जाती है और फिर एक बाहर का नाम हो जाता है। पहले नामों को लेकर ज्यादा कशमकश नहीं होती थी। घर के बड़े-बुजुर्ग, दादा-दादी, नाना-नानी, बुआ या पंडित जी जो नाम रख देते थे, वही चल पड़ता था। पर आज एकल परिवार, उस पर भी एक या दो बच्चे। अत: नाम को लेकर बड़ी मशक्कत करनी पड़ती है, मेहनत करनी पड़ती है। किताबें पलटनी पड़ती हैं, उसके बाद भी जब तक लोग न कह दें अरे वाह! क्या नाम है, तब तक तसल्ली नहीं मिलती। यहाँ तक कि बाजार में नामों पर अनेक किताबें भी उपलब्ध हैं। नामों का भी अपना एक संसार है। अनेक लोग बिल्कुल बेकार नाम रख देते थे। इसके पीछे तर्क था कि बच्चे जीवित रहें और उन्हें नजर न लगे जैसे नत्थू, चपटे, छिंगे आदि। बहुत से नाम मिठाइयों के नाम पर रखे गये जैसेलड्डूसिंह, इमरतीदेवी। फूलों के नाम भी खूब रखे गये गुलाबसिंह, गुलाबोदेवी या गुलाबबाई, गेंदासिंह, गेंदाबाई, चमेली बाई, बेला सिंह, बेला रानी, चंपालाल, चंपाबाई। फलों के नाम पर चेरी, अंगूरी आदि, पशु पक्षियों के नाम पर तोता सिंह, मैना रानी आदि नाम चल पड़े। धातु के नाम पर अशर्फीलाल या अशर्फी देवी, हीरालाल-हीराबाई, सोनाबाई, रजत, स्वर्णलता आदि। नगीना से लेकर हीरा, मोती, नीलम, मूंगा, पुखराज, पन्ना आदि नाम भी प्रचलन में हैं। बच्चों की शारीरिक रचना भी कुछ नाम रखवा देती है जैसे मोटा हुआ, तो गोलू, चपटा सा है तो चपटू, छोटा है, तो छुट्टै आदि। फिल्म अभिनेता और अभिनेत्रियों के नाम, तो शुरू से लेकर आज तक लोकप्रिय रहे हैं। टी.वी. सीरियल के पात्रों के नाम भी लोकप्रिय हैं। प्रसिद्ध खिलाड़ियों के नाम भी पसंद किये गये हैं। संस्कृति से जुड़े लोग आज भी ऐतिहासिक पौराणिक, धार्मिक नामों को पसंद करते हैं जैसे- गौरी, राधा, चंदना, राजुल, अंजना, सोमा, ऋषभ, पारस, राघव, माधव, कृष्णा, आदि। एक सच यह है कि कुछ ऐसे नाम हैं, जो कभी नहीं रखे गये जैसे- दुर्योधन, कैकेयी, रावण, मंथरा आदि। आजकल लोग नये नामों के चक्कर में, तथा किसी दूसरे का नाम न हो इस भावना से इतने कठिन या बेतुके नाम रख लेते हैं कि इनका न तो अर्थ होता है न उन्हें बुलाते बनता है। यहाँ तक कि बच्चों से अपना नाम भी लेते नहीं बनता है। अतः जो भी नाम रखा जाये सार्थक, छोटा और दुलारा सा होना चाहिए ताकि उसे लेने में प्यार झलके। व्यक्ति के व्यक्तित्व में कहीं न कहीं नाम का बहुत बड़ा योगदान होता है। नाम ही उसकी पहचान होती है। नाम ही जिदंगी भर उसके साथ चलता है। अत: प्यार दुलार के साथ सार्थक नाम रखना चाहिए। सर्वोदय, जैन मण्डी, खतौली (उ.प्र.) 10 सितम्बर 2009 जिनभाषित - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524343
Book TitleJinabhashita 2009 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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