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________________ रक्तेक्षणं समद कोकिलकण्ठनीलं क्रोधोद्धतं फणिनमुत्फणमापतन्तम्। आक्रामति क्रमयुगेन निरस्तशङ्कस् त्वन्नाम-नागदमनी हृदि यस्य पुंसः॥ ४॥ अनुवाद- "हे भगवन् आदिनाथ! जिसके हृदय में आपके नाम की नागदमनी (नाग का दमन करनेवाली ओषधि) विद्यमान है, वह मदमत्त कोयल के कण्ठ के समान काले, लाल-लाल आँखोंवाले, क्रोध से उद्धत और फन उठाकर सामने आते हुए नाग को भी निर्भय होकर लाँघ जाता है।" इस प्रकार जिनागम में किसी भी तीर्थंकर के स्तवन, पूजन आदि से कालसर्पयोग का निवारण होना बतलाया गया है। पूजन तो दूर की बात है, स्तवन, स्मरण मात्र से बड़े-बड़े संकटों के टल जाने की बात कही गई है। विधानाचार्यों को जिनागम में विश्वास नहीं किन्तु लगता है कालसर्पयोगनिवारणपूजा के समर्थक विधानाचार्यों को उपर्युक्त जिनवचनों में विश्वास नहीं है, इसीलिए उन्होंने एक आगमविरुद्ध, स्वकल्पित मान्यता प्रचलित की है कि कालसर्पयोग का निवारण विशेषतः भगवान् नेमिनाथ और पार्श्वनाथ की पूजा से होता है, क्योंकि कालसर्पयोग राहु और केतु नामक ग्रहों के योग से होता है और राहुजन्य अरिष्ट के निवारक भगवान् नेमिनाथ मान लिये गये हैं और केतु जन्य अरिष्ट के निवारक भगवान् पार्श्वनाथ, जैसा कि निम्नलिखित नवरचित मन्त्रों से ज्ञात होता है १. "ओं ह्रीं राहग्रह-अरिष्ट-निवारक-श्रीनेमिनाथ-जिनेन्द्राय नमः, मम कालसर्पदोषनिवारणाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।" (उक्त पूजापुस्तिका / पृ.३०)। २. “ओं ह्रीं केतुग्रह-अरिष्ट-निवारक-श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय नमः मम कालसर्पदोषनिवारणाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।" (वही / पृ. ३४)। इसी कारण जातक के द्वारा प्रतिदिन पार्श्वनाथ के कलिकुण्ड-यंत्र के समक्ष ही पूजा किये जाने एवं उसी पर कालसर्पनिवारक शान्तिधारा कराये जाने का नियम बनाया गया है। जिनभक्ति के साथ अभिचार-प्रयोग की आवश्यकता कालसर्पयोगनिवारण के उपाय के रूप में अष्टद्रव्यार्पण के माध्यम से अभिव्यक्त होनेवाली जिनभक्ति को अपर्याप्त मान लिया गया और अजैन शास्त्रों का अनुकरण कर अभिचार (जादू-टोना) की क्रियाओं का समावेश किया गया। इसीलिए अष्टद्रव्यरूप पूजनसामग्री के अतिरिक्त काले उड़द, पीले सरसों, काले सरसों, गूगल, लालचन्दन, लालमिर्च, पिसी हल्दी, खड़ी मूंग (हरी), खड़ी धनियाँ, रक्षासूत्र, काँसे का कलश चाँदी का साँतिया (स्वास्तिक), नागमोहिनी लकड़ी, साँप का जोड़ा (कृत्रिम), मयूरपिच्छी आदि अभिचार सामग्री (जादू-टोना-टोटका की साधनभूत सामग्री) भी पूजा में शामिल कर ली गयी। (उपर्युक्त पुस्तिका/ पृष्ठ ४)। उपर्युक्त पूजापुस्तिका के पृष्ठ ४ पर 'कालसर्पनिवारण के कुछ सहज उपाय' शीर्षक के नीचे इस अभिचार-सामग्री का प्रयोग इस प्रकार बतलाया गया है १. २५ ग्राम काले उड़द अपने ऊपर से नीचे की ओर उतारकर बाहर फेंक दें। २. काले सरसों को अपने ऊपर लेकर नौ बार णमोकार मंत्र पढ़कर किसी गड्ढ़े या नदी में डाल दें। ३. अपने पास हमेशा छोटा सा मोरपंख रखें। ४. अपने हाथ में हमेशा पंचरंगा रक्षासत्र बाँधकर रखें। ५. हो सके तो प्रतिदिन सोने के स्थान पर छोटे दीपक में मीठा दूध भरकर रखें और दीपक का दूध गमले में डालें और उसकी मिट्टी छह महीने में गाँव या शहर के बाहर फेंककर गमले में नवीन मिट्टी डालें। जुलाई 2009 जिनभाषित 3
SR No.524341
Book TitleJinabhashita 2009 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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