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अध्यात्म व विज्ञान की जुगलबंदी है 'गुणायतन'
प्राचार्य पं० निहालचंद जैन, बीना (म०प्र०) मुनि प्रमाणसागर : एक सृजनशील चिन्तक । ढंग से प्रस्तुत करने की एक अभिनव योजना को मूर्तरूप
शाश्वत तीर्थराज श्री शिखर जी, मधुवन (गिरीडीह) | देने का संकल्प किया। विज्ञान ने इसमें सहायता की झारखण्ड में मुनिश्री के लगातार दो वर्षायोग २००६ व और दृश्य-श्रव्य एड्स के साथ एनिमेशन व मॉडल्स ०७ को सम्पन्न हुए। और इस पावन भूमि पर दो अभिनव के माध्यम से आत्म-विकास के क्रमिक सोपानों को परिकल्पनायें मुनिश्री के तत्त्वान्वेषी मन में उभरीं, जो | एक मनोरंजन की पृष्ठ भूमि के साथ अध्यात्म की वह यहाँ की परिस्थितियों की सम्प्रेषक हैं। एक सेवायतन | अदृश्य-प्रविधि जो आत्मविशद्धि एवं मल स्वभाव को की पृष्ठभूमि और दूसरी 'गुणायतन' के निर्माण की | पाने के लिए होती है, शब्द, संगीत व प्रकाश की त्रिवेणी आवश्यकता। मुनिश्री चारों अनुयोगों के गहन अध्येता | के साथ दृश्य बनाने का एक प्रयोग है। भेद-विज्ञानी संत है। उनकी एक कृति 'जैन तत्त्वविद्या' लेखक अक्टूबर २००८ में 'गुणायतन' का स्थल भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित है, जिसमें गुणस्थान व देखने मधुवन (शिखर जी) गया। जैन म्यूजियम के निकट मार्गणा जैसे द्रव्यानुयोग के विषय को व्यापक सोच के | वह स्थल देखकर ही मन एक अद्भुत अनुभव से रोमांचित साथ व्याख्यापित है। यही सोच विशेष रूप से गुणस्थान- हो गया। गुणायतन का 'माडल' देखा तो लगा कि यह विषयक, तीर्थराज को इस पावन धरती पर मूर्तरूप बनकर | धर्मायतन, जैनधर्म के परम्परागत मंदिरों से अलग एक उभरने जा रही है।
विशेष 'ज्ञानमंदिर' होगा। इस सम्पूर्ण परियोजना के लिए
| गुरुवर्य संत शिरोमणि आ. श्री विद्यासागर जी का आशीर्वाद शब्द है, जो जीव के आत्मिक गुणों के विकास की भी प्राप्त हो चुका है, जो मुनि श्री प्रमाणसागर जी के क्रमिक अवस्थाओं का द्योतक है। जीव के भाव या लिए प्रेरणा और सम्बल बना है। एक समर्पित कार्यकारिणी परिणाम क्या सदा एक से रहते हैं? नहीं। मोह और का गठन हो चुका है, जिसमें हर रुचि व रुझान के मन वचन काय की प्रवृत्ति के कारण जीव के अन्तरंग | व्यक्ति हैं। भावों में प्रतिक्षण उतार चढ़ाव होता रहता है। जैसे हवा 'गुणायतन' है गुणस्थानों के अनुरूप होनेवाली भावके कारण सागर में निरन्तर लहरें तरंगित होती रहती | दशाओं को दर्शानेवाला एक बहुकक्षीय मंदिर, जिसका
शिल्प वृत्ताकार रखा गया है और कक्षों में चल-अचल गुणस्थान- भावविज्ञान का बैरोमीटर है। मॉडल्स होंगे। जिनके माध्यम से यह दिखाया जायेगा गुणस्थान- आत्मविकास का दिग्दर्शक है। कि मोही व पापाविष्ट संसारी आत्माएँ कैसे अपने कर्मों
गुणस्थान- जीव की बंध और अबंध दशा को को आमंत्रित कर उनका आस्रव करता है और कर्मावरण स्पष्ट करनेवाला एक दर्पण है।
| की घटाओं को सघन बनाता है तथा अपनी सम्यक श्रद्धा गुणस्थान- अन्तरंग परिणामों की तरतमता को | और सही दृष्टि धारण कर कैसे उनको क्षीण करता दर्शानेवाला एक थर्मामीटर है।
हुआ अपनी मूल स्वभाव शक्यिों को प्रगट करता है? गुणस्थान- ऐसी लक्ष्मण रेखा, जो संसार और | कैसे मोहदशा से निर्मोहदशा की ओर, विकार और विकृति मोक्ष के फासले के बीच खीची गयी हो।
से शुद्धता की ओर बढ़ता है। 'एनिमेशन' के माध्यम वस्तुत: गुणस्थान है आत्मविकास के आरोहण और | से कर्मों के आवेग को रोकने (यानी संवर तत्त्व) और अवरोहण का एक आध्यात्मिक लेखा-जोखा, जो १४ पूर्व संचित कर्मों को तप की आध्यात्मिक प्रक्रिया द्वारा सम्भावनाओं के फ्रेम में सव्यवस्थित है. जिसे जैनदर्शन | उन्हें क्षय करता है (निर्जरा तत्त्व), तब जाकर आत्मा में 'गुणस्थान' की संज्ञा से अभिहित किया गया है। | अपनी विशुद्ध निर्मल दशा को प्राप्त करता है, यही उसकी
गुणायतन क्या है- पूज्य मुनि श्री प्रमाणसागर | कैवल्य स्थिति होती है, जहाँ उसके चार घातिया कर्म जी के सर्जक मन और अन्वेषी मस्तिष्क ने एक छलांग नष्ट हो जाते हैं। संसार से मोक्ष की अन्तर्यात्रा का दर्पण लगाई और चौदह गुणस्थानों के सुन्दर और आकर्षक | होगा 'गुणायतन' का ज्ञान मंदिर। 24 मई 2009 जिनभाषित -
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