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में कण्ठोक्त कहा है। इसके आगे प्रोषधोपवास आदि । आत्म-मनन करें। प्रतिमाओं का विस्तृत वर्णन जैन-ग्रंथों में पाया जाता है। ब्रह्मचर्य पालन का यथायोग्य अभ्यास रक्खें। रात्रि दिनचर्या
| को नमस्कार मंत्र और जिनगुण-स्मरण करते हुए शयन प्रातरेव समुत्थाय, प्रात:काल ही ब्रह्ममुहूर्त में सीधे | करें। बीच में यदि निद्रा भंग हो जाये, तो २४ तीर्थकरों करवट से उठकर शयन कक्ष में बैठकर एकाग्र-चित्त का नाम जपें अथवा अनित्य-अशरण आदि अन्प्रेक्षाओं करके पंचनमस्कार मंत्र का ध्यान करें। सूर्य अस्त से का चिन्तन करें। तत्त्वार्थसूत्र में पाँच व्रतों की मनोगुप्ति, अलगे दिन सूर्य उदय तक पन्द्रह मुहूर्त का रात्रि काल | वचनगुप्ति आदि पच्चीस भावनाएँ कहीं हैं, उनका विचार कहलाता है। दो घड़ी का यानी पैंतालीस मिनट का एक करो। इतने में यदि निद्रा आ जाये तो सो जायें, पुनः महर्त होता है। पन्द्रह मुहर्त में से चौदहवाँ मुहूर्त ब्रह्म | प्रात:काल सामायिक जाप्य, ध्यान करें। मूहुर्त कहलाता है। पुनः शौच, दंत धावन, स्नान करके
सल्लेखना जिनदर्शन पूजन के लिये समुद्यत हो जायें।
श्रावक को सर्वदा समाधिमरण करने के लिये उद्यत श्री जिन मन्दिर में जाकर शुद्ध द्रव्य और शुद्ध | रहना चाहिए। न जाने कब सल्लेखना का प्रकरण उपस्थित भावों से श्री अरहंत-सिद्ध-साधुओं की पूजन करें। जाप्य, हो जाये। आजकल सभी गरीब-अमीर, पंडित, मूर्ख, ध्यान, स्वाध्याय भी करें। वहाँ कोई उत्तम, मध्यम, जघन्य | मुनिराज, श्रावक सभी को अकस्मात् भय के प्रकरण पात्र मिल जायें, तो घर लाकर उनको यथा-विधि आहार कदाचित् मिल जाते हैं। यों निर्मल-अक्षुण्ण सम्यग्दर्शन दान करके स्वयं शुद्ध आहार करें। यह भी दृष्टि में | तथा निर्दोष-अणुव्रत, गुणव्रत और शिक्षाव्रत एवं विधिरखें कि मेरे आश्रित हो रहे स्त्री, पुत्र-वधू, बच्चे आदि | पूर्वक सल्लेखना कर लेना, यही संपूर्ण श्रावक धर्म है। कुटुम्बियों तथा सेवक-सेविकाओं, अतिथि के लिये पर्याप्त दशलक्षणपर्व में दशधर्म, षोडशकारण भावनाएँ, रत्नत्रय भोजन द्रव्य विद्यमान है। पुनः स्वल्प विश्राम कर न्यायपूर्वक | धर्म का पालन, अभिषेक पूजन, रात्रिजागरण, धार्मिक द्रव्य उपार्जन के लिये अर्थ पुरुषार्थ का सेवन करें। मध्यान्ह गायन-वादन, नृत्य ये सभी श्रावकधर्म के कारण हैं। वंदना कर सकें तो अच्छा है। सायंकाल कुछ धर्म- | अंतिम लक्ष्य वीतराग विज्ञान और रत्नत्रय द्वारा चर्चा करते हुए विद्वानों, सज्जनों में गोष्ठी, तत्त्व-चर्चा, | निःश्रेयस प्राप्त करना है। शंका-समाधान करें, करावें। सायंकाल में जाप्य ध्यान ।
'कौन्देयकौमुदी' से साभार
श्री अमित पाटनी सेवायतन के शिरोमणि संरक्षक बने मधुबन- देश के प्रतिष्ठित व्यावसायिक प्रतिष्ठान में पाटनी कम्पयूटर्स लि. मुम्बई के श्री अमित पाटनी अपनी धर्मपत्नी श्रीमती रुचि पाटनी सहित श्री सम्मेद शिखर जी की यात्रा करने पधारे और उन्होंने इस क्रम में श्रीसेवायतन द्वारा किये जा रहे कार्यों का अवलोकन किया। श्री सेवायतन द्वारा किये जा रहे सेवाकार्यों से वे अत्यन्त प्रभावित हुए और इसकी भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए और श्री प्रमाण सागर जी महाराज का आशीर्वाद लेकर एवं श्रीमती पुष्पा बैनाड़ा आगरा की प्रेरणा से श्रीसेवायतन के शिरोमणि संरक्षक बने। उन्होंने श्रीसेवायतन के अध्यक्ष श्री एम.पी. अजमेरा राँची, महामंत्री श्री राजकुमार अजमेरा हजारीबाग, मंत्री श्री सुनील कुमार अजमेरा हजारीबाग, सुरेश विनायक्या कोषाध्यक्ष हजारीबाग द्वारा श्री सेवायतन को प्रदत्त उनकी सेवा के लिए बहुत प्रंशसा की। उन्होंने श्री एम. पी. अजमेरा के प्रति विशेष आदर प्रदर्शित करते हुए कहा कि वे प्रतिवर्ष शिखरजी की यात्रा करने का प्रयास करेंगे।
डॉ० डी० सी० जैन, श्रीमति शांता पाटनी किशनगढ़ एवं श्री धर्मवीर लखनऊ श्रीसेवायतन से जुड़े।
दिल्ली- यहाँ श्रीसेवायतन एवं सम्मेदशिखर मित्रमण्डल के द्वारा आयोजित संकल्प एवं सम्मान समारोह में डॉ० डी.सी जैन, विख्यात न्यूरो चिकित्सक एवं श्री धर्मवीर इन्जीनियर इनचीफ यू.पी. सरकार ने श्रीसेवायतन की सदस्यता ग्रहण की और उन्होंने श्रीसेवायतन के सेवा कार्यों की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए, अन्य लोगों को भी श्री सेवायतन से जुड़ने की प्रेरणा दी।
किशनगढ़- यहाँ आयोजित राजस्थान प्रदेश श्री सेवायतन समन्वय समिति की बैठक स्थानीय आर.के. कम्यूनिटी हॉल में संपन्न हुयी, जिसमें श्री शांता पाटनी (आर.के. मार्बल्स) श्रीसेवायतन की ट्रस्टी बनकर श्रीसेवायतन से जुड़ीं। श्री एम.पी. अजमेरा अध्यक्ष श्री सेवायतन ने बैठक की अध्यक्षता की।
18 मई 2009 जिनभाषित
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