SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 15
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संयम-समन्वित साधुराज वर्षाकाल में चातुर्मास में एकत्र । तपस्या करत्ने हुए १२ वर्ष तक मुनिमुद्रा में रहे, पुन: निवास करने के बंधन से विमुक्त हैं। केवलज्ञान होने पर तो उनका विहार अधर आकाश में __ऐसी स्थिति में परिहारविशुद्धिसंयम को प्राप्त | होता था और इन्द्र उनके चरणों के नीचे स्वर्ण कमलों करनेवाली आध्यात्मिक विभूति भगवान् महावीर के | की रचना करते थे। भव्यात्माओं के पुण्यप्रभाव से जगहचातुर्मासों की कल्पना औचित्यशून्य है। कोई-कोई तो | जगह उनके समवसरण लगते थे, जिनमें बैठकर भव्यप्राणी केवलज्ञान के ३० वर्ष प्रमाणकाल में भी चातुर्मासों की दिव्यध्वनि का पानकर मोक्षमार्ग में प्रवृत्त होते थे। चर्चा करते हैं। महावीर भगवान् जब परिहारविशुद्धि-संयम यदि किसी दिगम्बरजैन-आचार्य-प्रणीत ग्रंथ में को प्राप्त कर चुके थे, तब उनका चातुर्मासों में एकत्र | भगवान् महावीर के चातुर्मासों का वर्णन प्राप्त हो, तो निवास मानना सर्वज्ञकथित दिगम्बरजैन आगम के | विद्वज्जन हमें अवश्य परिचित कराएँ, अन्यथा जो दिगम्बर प्रतिकूल है। जैन पत्र-पत्रिकाएँ भगवान् महावीर के चातुर्मास प्रकाशित इस प्रकार से पं० श्री सुमेरचंद जी दिवाकर ने | करती हैं, उनमें संशोधन कराएँ, ताकि महावीर स्वामी तीर्थंकरों के मुनि अवस्था में एवं केवली अवस्था में | के जिनत्व का दिगम्बर जैनआम्नाय के अनुसार परिचय चातुर्मास का खण्डन दिगम्बर जैन आगम ग्रंथों से किया जन-जन को प्राप्त हो सके। है। गणिनी श्री ज्ञानमती माता जी भी कहा करती हैं | लेख में दूसरा एक अन्य प्रकरण भी दिगम्बर कि आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज के प्रथम पट्टशिष्य | जैनआम्नाय के विरुद्ध है। वहाँ स्पष्टरूप से भगवान् मेरे गुरुदेव आचार्य श्री वीरसागर जी महाराज भी कहा | महावीर के चातुर्मास स्थलों के नाम आदि देकर उनको करते थे कि तीर्थंकर भगवान् मुनि अवस्था में चातुर्मास | चंदना द्वारा दिये गये आहार के प्रकरण में लिखा गया नहीं करते हैं, तो केवली अवस्था में चातुर्मास का तो | है कि'प्रश्न ही नहीं उठता है। केवल श्वेताम्बर परम्परानुसार | | "वैशाली के सभी श्रेष्ठी अपने चौके में आहार ही तीर्थंकर महावीर स्वामी के मुनि अवस्था के १२ | कराने के लिए लालायित थे, निराश भी रहे। जहाँ आहार एवं केवली अवस्था के ३०, ऐसे ४२ चातुर्मास माने | हुए, उसका दर्शन कर धन्य माना। 'महावीर' ने पौष कृष्णा प्रतिपदा को एक महाघोर अभिग्रह धारण किया, इसके अतिरिक्त भी आचारग्रंथों में जहाँ जिनकल्पी | जिसके पूर्ण होने पर ही आहार का संकल्प किया। प्रतिज्ञा एवं स्थविरकल्पी मुनियों का वर्णन आता है, वहाँ जिनेन्द्र | चार माह तक पूर्ण नहीं हुई, राजा, रानी, प्रजा सभी भगवान् के समान चर्या का पालन करनेवाले मुनियों को | चिंतित हो गये, तभी वह पुण्य क्षण आया और 'चंदना' ही जिनकल्पी की संज्ञा प्रदान की गई है। वे भी चातुर्मास | को आहार देने का मौका मिला। यह अभिग्रह छह माह में विहार कर सकते हैं। उससे स्पष्ट ज्ञात हो जाता बाद पूर्ण हुआ। चंदना के मन में सिर्फ यह भाव रहाहै कि साक्षात् जिनचर्या को पालनेवाले जिनेन्द्र भगवान् | केवल इतना सा ध्यान उसे, ये छह महीनों के भूखे हैं। की तुलना तो किन्हीं साधारण मुनियों से की ही नहीं | औ, मुझ अभागिनी के समीप, केवल ये कौदों रूखे हैं। जा सकती है। मैं पूछना चाहती हूँ कि कौन से दिगम्बर जैन पद्मपुराण में कथानक आया है कि चारणऋद्धिधारी | ग्रंथ में वर्णन आया है कि भगवान् महावीर के आहार सप्तऋषि मुनिराज चातुर्मास के मध्य मथुरा से अयोध्या | का अभिग्रह छह माह में पूर्ण हुआ? दिगम्बर जैन में आहार करने गये, तो वहाँ मंदिर में विराजमान द्युति | आम्नाय के अनुसार महासती चंदना के जीवनचरित को आचार्यदेव ने भक्तिपूर्वक उनकी वंदना की.... आदि। | उत्तरपुराण एवं महावीरचरित आदि से पढ़ें और इस पर उपर्युक्त प्रमाणों से स्पष्ट परिलक्षित होता है कि भी अपनी धारणा दिगम्बर जैन आम्नाय के अनुसार ही भगवान् महावीर ने दिगम्बरजैन-आगम-मान्यतानुसार कहीं | बनाएँ, यही मेरा मन्तव्य है। .. पर कोई चातुर्मास सम्पन्न नहीं किया, प्रत्युत वे उग्रोग्र मई 2009 जिनभाषित 13 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524339
Book TitleJinabhashita 2009 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy