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श्री दिगम्बर जैन मंदिर, दुधई
आशीष कुमार जैन शास्त्री
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धर्म और संस्कृति के प्रति लगाव ही मुझे सदैव जैनधर्म की उन धरोहरों को अनायास देखने का निमित्त प्रदान करता है, जिनका दर्शन शायद जीवन में संभव न हो फिर भी मैं अपनी देव शास्त्र गुरु के प्रति समीचीन श्रद्धा को ही इसका एक प्रबल निमित्त मानता हूँ। अवसर था एक मित्र के साथ वंशा बम्हौरी जाने का, उसकी तो स्कूल में ट्रेनिंग चल रही थी। मैं खेतों में गया और गाँववालों से पूछ रहा था कि क्या आपके गाँव में कोई दर्शनीय स्थल है। गाँववालों ने बताया कि यहाँ से ६ कि.मी. दूर एक दुधई नाम का ग्राम है, जहाँ पर एक जैनमंदिर है, परन्तु रास्ता जंगल का है। मेरे मन में तुरन्त वहाँ जाने का विचार आया और गाँव के एक व्यक्ति को साथ लेकर मोटरसाइकिल से रवाना हो गया। मन में थोड़ा सा भय था कहीं ऐसा न हो कोई घटना घट जाये, क्योंकि मैं अजनबी क्षेत्र में हूँ फिर मन ही मन प्रश्न उठा कि क्या तुम्हें जिनेन्द्र भगवान् पर श्रद्धा नहीं है, जो तुम भयभीत हो रहे हो? बस फिर क्या था मैं निराकुल भाव से उस स्थन पर पहुँच गया। प्रथम दृश्य तालाब का था। एक बहुत विशाल तालाब, जो जलविहीन पर खेत-खलिहान से सहित था । दूरदूर तक कोई मानव नहीं दिख रहा था। न ही कोई पशु-पक्षी, बिल्कुल सुनसान। लेकिन जैसे मैं मंदिर के पास पहुँचा, तो मेरा पहुँचना सार्थक हो गया। मैंने चारों ओर देखा कि जैन मंदिर कौन-सा है? पर समझ नहीं आ रहा था। यकायक मेरी नजर एक धुंधले से शब्दों में लिखे 'श्री दिगम्बर जैन मंदिर, दुधई' पर पड़ी। मैं शीघ्रता से वहाँ पहुँचा। जिनमंदिर को देखकर मेरे आह्लाद की तो सीमा नहीं रही और वह इतना प्राचीन जिसके विषय में कहना मेरे वश के बाहर है। मंदिर की संरचना गुफानुमा है। एक छोटा सा गेट है। करीब ३५ फुट की मूर्ति होगी। उस खड्गासन प्रतिमा के दायें बायें भी प्रतिमायें बनी हुई हैं, जो मंदिर की दीवार वाले पत्थर पर ही उकेरी गई हैं। मैं गर्मी की तपन में वहाँ पहुँचा था, पर उस जिनालय में पहुँचकर मैंने ठंडक का अनुभव किया। ठीक उसी मंदिर के सामने एक पद्मासन प्रतिमा का जिनालय बना हुआ है । उसमें छोटी-छोटी प्रतिमायें मिलाकर अनेक प्रतिमाएँ चारों ओर बनी हुई हैं। रक्षकदेव - देवी भी वहाँ विराजमान हैं। परन्तु इस जिनालय का गेट बिल्कुल खुला हुआ है। जिनालयों के बाहर भी कुछ प्रतिमा खण्डित स्थिति में पड़ी हुई हैं। कई प्रतिमायें प्राचीन समय की कला का अद्भुत नमूना हैं। कुछ सामान्यकला के नमूने के रूप में श्रृंगार की प्रतिमायें भी वहाँ पड़ी हुई हैं। वह एक भव्य जैनमंदिर है, जो ललितपुर से पाली और पाली से करीब श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र बालवेहट के मार्ग पर १५ कि.मी. की दूरी पर स्थित है। वंशाबम्हौरी से पहले ही दुधई जाने का मार्ग बना हुआ है । दुधई से जंगल के रास्ते से देवगढ़ की दूरी केवल २५ कि.मी. है । अतः सभी जैन भाइयों को एक बार अवश्य उस मंदिर के दर्शन करना चाहिये, जिससे हमें अपनी जैनसंस्कृति का संपूर्ण ज्ञान हो सकें ।
कटारे मोहल्ला, शाहगढ़, सागर म.प्र.
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28 अप्रैल 2009 जिनभाषित
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रतनलाल बैनाड़ा
प्रकाशक- 'जिनभाषित' सर्वोदय जैन विद्यापीठ
१ / २०५, प्रोफेसर्स कॉलोनी आगरा- २८२००२ ( उ० प्र० )
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