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१
मैं
अपनी शान में
खो गया
इसलिए दुनिया की दृष्टि में पाषाण था
इसलिए मैं परेशान था
पर आज सौभाग्य का दिन है।
शान की शान रखनेवाले
एक कलाकार ने मुझमें
ऐसी कला भर दी,
आज मैं निरा - पाषाण खण्ड नहीं रहा
एक पूजनीय मूरत
बन गया।
२
कर्मों की
कौम को
होम करना है
ऊँ का जाप करो तुम मोम सा पिघल जाय
मोम सा
निर्मल बन रोम-रोम से
सोम का झरना फूट पड़े
मुनि श्री योगसागर जी की कविताएँ
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३
काल अनंत से
कुंठित है
आत्म कली में
सुरभित सौरभ
अमिट अमित और
अनुपम है
पर
वंचित है खटक रहा है
चेतन भ्रमर
बाह्य जगत में
शोध रहा है
विषय-विषैले
पुष्पों पर अहर्निश मँडरा रहा है
४
सूर्य कांति सी
चंद्र कांति सी है
जिस ज्ञान की आभा
ऐसे आलोक में
आलोकित होता निजात्म का चेहरा ।
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प्रस्तुति प्रो० रतनचन्द्र जैन
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