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________________ वर्तमान परिवेश में युवाशक्ति का दिशा-निर्धारण सुरेश जैन 'सरल' मैं पहले युवकों पर, जिनमें छात्र और छात्राएँ । मान बैठते हैं। सम्मिलित हैं, एक छोटा सा विचार दे रहा हूँ सच युवा शक्ति का उपयोग हम कुछ इसी तरह धवाती सिगरेट से युवक / सूखे गुल- कर रहे हैं, अतः कोई यह पूछे कि युवक और युवादस्ते से छात्र / और दियासलाई की सीती हुई तीलियों | शक्ति किस दिशा में जा रही है, तो कहना पड़ेगा- जहाँ सी छात्राएँ। शरीर के शुन्य अंग लग रहे हैं। जिन्हें देखा | हम ले जा रहे हैं। भर जा सकता है, उपयोग कुछ नहीं/ सभ्यता भ्रमित | अब जब योग्यता की कसौटी ही हमने बदल पशु सी कोलाहल में रम गई है । व्यवस्था- छात्र से पिटे | दी है, तो किस मुँह से हम योग्य युवक का वर्णन शिक्षक सी, सुबक कर रह गई है । आदर्श फैशन में | करें, सोच नहीं पाते! अनुशासनहीनता? बेरोजगारी? दब गया है। मेरे देश को कुछ हो गया है।' क्या हो | कपटपूर्ण व्यवहार? स्वार्थ? अवसरवादिता? आदि अनेक गया है? यह अभी आगे खुलासा हो जायेगा। | वजनदार शब्दों से हमने उसे लाद दिया है। फैशन । अब मैं दूसरा विचार रखने के लिए अपनी दृष्टि | बलात् वृत्ति/ कामचोरी वगैरह उसने खुद सीख ली, बस महात्मा गाँधी की मूर्ति पर ले जाता हूँ। मूर्ति के पार्श्व | समझिये- करेला नीम चढ़ गया। में देश के ३२ करोड़ वे लोग भी खड़े हैं, जो कहीं/ मैं युवकों की बुराई करना नहीं चाहता, पर क्या किसी के माता-पिता भी हैं। उन्हें सम्बोधित करते हुए | करें। उनके समर्थन में कहने के लिए भी तो कुछ नहीं कहता हूँ। वे मेरी बात सुन रहे हैं है। ११० करोड़ के देश में, प्रतिवर्ष ८० युवक वैज्ञानिक बापू / तेरे पुत्रों के वे ओंठ / जिन्हें माँ-बाप के | बन भी जावें, तो उनसे देश में प्रगति चरण चूमने थे/चमते चमते हैं झठे जाम/वे हाथ, जो दरिद्र- | स्वतः अपनी प्रगति के चक्कर में पडे देखे गये हैं। नारायण की सेवा में लगे। उनसे अब जघन्य अपराध | हाँ वैज्ञानिक, डाक्टर, इंजीनियर, वकील, सरकारीहोने लगे/वे शीष जिन्हें झुकना था देशसेवार्थ / झुक गये अधिकारी-कर्मचारी, नेता और बड़े व्यापारी। पहले हैं दो पैसे की नौकरी से अभागे / वे पैर, जो आजादी | अत्यधिक ऊँचाई तक पढ़ाई करने का अर्थ यह नहीं तक थे पहुँचे/रुक गये हैं- रोटी के आगे और वे चितवनें// होता था कि अधिक पढ़कर अधिक धनोपार्जन करें, जो कभी झपी न थीं, झुकी रहती हैं कर्ज के मारे।। तब अधिक अच्छे स्तर की मानवता / नागरिकता की बंधु, ये विचार बन चुके हैं युवा शक्ति को लेकर। संरचना में पढ़ाई का/डिग्री का, उपयोग होता था। अबयदि ये सत्य लगते हैं, तो दोषी कौन है? युवक कि | -- अब पढ़ लिखकर हर युवक पहले दिन से ही उनके गार्जियन / पालकगण/माता-पिता कौन? सत्य यहाँ आर्थिक लाभ लेना चाहता है। आर्दश, देश-सेवा, • हैं। उसकी द्वितीय छवि भी मैं लाया सामाजिकता, स्वस्थ नागरिकता पर उसका ध्यान जा ही हूँ, उसे भी देख लीजिए, निर्णय अपने आप सामने आ | नहीं पाता। जावेगा कि युवा शक्ति किसी दिशा में खुद जा रही | आठवीं फेल आदमी किसी व्यवसाय में लग कर है या पहुँचाई जा रही है। छः हजार रुपये प्रतिमाह की आय पाता है, तो वह दो -आज सबसे अच्छा युवक वह लगता है, जो ब्लेक हजार पा रहे बी० ए० पास को छोटा मान बैठता है। से गैस का सिलेन्डर लाकर घर देता है माँ के सामने। | बंधु हमने शिक्षा को नहीं, धन को मानदण्ड मान लिया -वह जो फिल्म की टिकट खड़े-खड़े दिला देता | है। धन के इस मान को पाने के लिए युवा शक्ति अध्ययन छोड़कर, अथवा अध्ययन के बाद, केवल धन की धुन __-वह जो मिट्टी का तेल प्राप्त करा देता है। में लगी नजर आ रही है। -एक युवक कटा-फटा नोट कहीं किसी दुकान | एक शिक्षक ४ हजार वेतन लेकर भी दुखी है पर अँधेरे-उजाले में चला आता है, तो वह घर जाकर | कि उसके पड़ोस का पनवाड़ी ६ हजार कमा लेता है। अपना गौरव बखान करता है और हम उसे समझदार | अतः शिक्षक महोदय पनवाड़ी से बड़ा बनने के लिए -मार्च 2009 जिनभाषित 27 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524337
Book TitleJinabhashita 2009 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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