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में उपलब्ध प्राचीनतम प्रमाण है। ५वीं शताब्दी के प्रसिद्ध महर्षि मार्कण्डेय लिखते हैं
शरत्काले महापूजा क्रियते या च वार्षिकी। तस्यां ममैतन्माहात्म्यं श्रत्वा भक्तिसमन्वितः॥
(मार्कण्डेय पुराण, भाषाटीका, अ. ८९ श्लो. ११, पृ. २२६
प्रकाशक- चौखम्बा विद्या भवन, वाराणसी, १९९५ संस्करण) अर्थ-शरत्काल में जो वार्षिकी महापूजा की जाती है, उस पूजा के समय मेरा यह माहात्म्य भक्तियुक्त होकर श्रवण करो।
वैदिक परम्परा के पुराणग्रन्थों में नवरात्रि महोत्सव का उपर्युक्त प्रमाण लगभग १५००-१६०० वर्ष प्राचीन है। इससे स्पष्ट होता है कि नवरात्रि महोत्सव मनाने की परम्परा वैदिकधर्मानुसार इससे भी प्राचीन है।
आदरणीय कमलाकर भट्ट 'निर्णय सिंधु' की पृष्ठ संख्या २८०, जो कि चौखम्बा विद्या भवन वाराणसी से प्रकाशित है, उसमें लिखते हैं कि स्कंधपुराण (जिसका काल लगभग सातवीं शताब्दी ईसवी है) में लिखा है कि आश्विन मास के शुक्ल पक्ष में विशेषकर नवरात्र में दुर्गा का पूजन करके एकाग्रचित्त से उक्त व्रत करे। यह नवरात्र नाम का कर्म है। ज्ञातव्य है कि 'निर्णयसिंधु ग्रंथ' सोलहवीं शताब्दी में लिखा गया है। इस ग्रंथ में वैदिक परम्परा में मनाये जानेवाले सभी महोत्सवों की तिथियों का निर्णय कैसे करना चाहिये, इसका विस्तार से शास्त्रीय प्रमाणों के अनुसार वर्णन किया गया है।
_ 'निर्णय सिंधु' ग्रंथ के पृष्ठ संख्या २७७ से २८१ तक आश्विन मास में नवरात्रि मनाने की तिथियों का निर्णय करते हुए निम्नलिखित ग्रंथों का आधार लिया है। अर्थात् निम्नलिखित सभी ग्रंथों में नवरात्रि मनाये जाने का उल्लेख पाया जाता है
१. मत्स्य पुराण (रचनाकाल २०० से ४०० ई०) २. डामर तंत्र (रचनाकाल सातवीं शताब्दी) ३. रुद्रयामल तंत्र (रचनाकाल सातवीं शताब्दी) ४. भविष्य पुराण (रचनाकाल सातवीं शताब्दी) ५. भार्गव वार्चन दीपिका ६. देवी पुराण ७. तिथि तथ्य ८. रूपनारायण ९. कालिका पुराण १०. मदनरत्न ११. विष्णु धर्म १२. दुर्गाभक्ति तरंगिणी १३. निर्णयामृत १४. ब्रह्माण्ड पुराण १५. गौण निबंध
उक्त सभी ग्रंथों मे नवरात्रि मनाने का विधान किया गया है। उपर्युक्त प्रमाणों से स्पष्ट है कि वैदिक परम्परा में नवरात्रि महोत्सव देवी पूजा के रूप में ई० पूर्व अनेक वर्षों से निरन्तर मनाया जा रहा है।
नवरात्रि पर्व में पूजन करने की विधि भी निम्नलिखित ग्रन्थों में वर्णित है, जिसमें लिखा है कि गन्ध, पुष्प दीप, धूप आदि द्रव्यों के द्वारा देवी अर्चना करना चाहिये, साथ में बलि आदि चढ़ाने का भी प्रावधान लिखा है। जिन महानुभावों को विधि पढ़ना हो वे महानुभाव श्रीमद्भागवतपुराण के तृ. स्कन्ध,
- फरवरी 2009 जिनभाषित 3
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