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छह भाई-बहिनों का हमारा भरा-पूरा परिवार और | समाचार सुनकर संतोष का भाव मुख पर लाते, वहीं उन सबका बराबर ख्याल माँ रखा करती थीं। हम लोग | माँ गर्व से भर जातीं। उनका सुख देखकर हम सबको कुछ माँ का ख्याल रख पाते, इसके पहले ही माँ ने | भी लगता कि हम ऐसे कार्य करें, जिनकी सभी सराहना कहा कि तुम सब प्रसन्न रहो, हम तो दूसरे लोक की | करें। यही कारण है कि हम सबने जैन धर्म, साहित्य यात्रा पर निकल रहे हैं। किसी को उन्हें एक चम्मच समाज और संस्कृति की सेवा का बीड़ा उठाया। हमें पानी भी पिलाने की आवश्यकता नहीं पड़ी। स्वयंसिद्धा | यह कहते हुए हार्दिक प्रसन्नता होती है कि संपूर्ण परिवार की तरह उन्होंने प्राण छोड़े। आज हम भाई-बहिनों में | उच्च शिक्षित एवं व्यसनमुक्त है। माँ के ऋण से हम जो भी अच्छा है, वह सब उन्हीं का दिया हुआ है। | कभी उऋण नहीं हो सकते, उनके उपकारों को हम उन्होंने कभी गलत रास्ते पर चलने या गलत रास्ता अपनाने | कभी भूल नहीं सकते। अन्त में इतना ही कह सकते की शिक्षा नहीं दी। हम सब भाई-बहिनों, डॉ० रमेशचन्द्र | हैं कि जैसी हमारी माँ थी, वैसी माँ सबको मिले। हे जैन (बिजनौर), श्रीमती अंगूरी देवी (पारौल), डॉ० अशोक | माँ! तुम्हें प्रणाम। कुमार जैन (वाराणसी), डॉ० नरेन्द्रकुमार जैन (सनावद), | हमने पूर्व जन्म में भी कुछ, अच्छे काम किए होंगे। डॉ० सुरेन्द्र कुमार जैन (बुरहानपुर), सिंघई वीरेन्द्र कुमार | तब माँ तुमको हमने पाया, तुमने आशीष दिए होंगे। जैन सोरया (मड़ावरा) के प्रति उनका एक जैसा स्नेह- क्यों दूर हुआ माँ हाथ तुम्हारा, सिर पर से हम सबके, भाव था, जो कम ही माताओं में दिखाई देता है। अपने लगता है जैसे कि हमने, इतने ही पुण्य किए होंगे। पुत्रों को मिले हर सम्मान पर उन्हें प्रसन्नता होती। जहाँ
मंत्री-अ. भा. दि. जैन विद्वत्परिषद पिता जी (श्रीमान सिंघई शिखरचन्द जैन सोरया) ऐसे |
बुरहानपुर, म. प्र.
'द ताव ऑफ जैना साइंसेज' का लोकार्पण | लोकभाषा में, श्रद्धालु श्रोताओं को धर्म का मर्म समझा
दिनांक २१.१२.०८ को प्रो. एल. सी. जैन द्वारा | रहे हैं। रचित 'द ताव ऑफ जैना साइंसेज' के द्वितीय संस्करण
रमेशचन्द्र मनया का लोकार्पण कार्यक्रम श्री पार्श्वनाथ चन्द्रप्रभ दिगम्बर शिक्षण शिविरों हेतु आमंत्रण शीघ्र भेजें जैन जुगल मंदिर पुरानी बाजाजी, जबलपुर में विराजमान श्री दिगम्बर जैन श्रमण संस्कृति संस्थान, सांगानेर संत शिरोमणि आचार्य श्री १०८ विद्यासागर जी महाराज | से विगत् 12 वर्षों से जैनधर्म का शिक्षण कार्य के परम धर्मप्रभावक शिष्य मुनिश्री १०८ प्रबुद्ध सागर
| ग्रीष्मकालीन शिविरों के माध्यम से सम्पूर्ण भारत में जी महाराज के सन्निध्य में सम्पन्न हुआ। इस मंगल | अनवरत चल रहा है। ग्रीष्मकालीन अवकाश के अवसर
अतिथि डॉ० एम० पाल खुराना, | पर अप्रैल, मई एवं जन माह में 'सर्वोद कुलपति, रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय, जबलपुर एवं | शिक्षण शिविर का आयोजन कर समाज में धार्मिक डॉ. शिव प्रसाद कोष्ठा, पूर्व कुलपति रानी दुर्गावती | चेतना का जागरण संभव है। इन शिविरों में संस्थान विश्वविद्यालय, जबलपुर पधारे।
के योग्य विद्वानों द्वारा जैन धर्म शिक्षा भाग १, २, श्रीपाल जैन 'दिवा', भोपाल | छहढाला, भक्तामर स्तोत्र, इष्टोपदेश, भावनाद्वात्रिंशतिका, भोपाल में अतिशय धर्म प्रभावना द्रव्यसंग्रह, तत्त्वार्थसूत्र, करणानुयोगदीपक भाग १, २,
श्री दिगम्बर जैन धर्मशाला चौक में मुनिश्री ३, आदि ग्रन्थों का स्वाध्याय कराया जाएगा। विश्वयशसागर जी, मुनि श्री विश्ववीरसागर जी तथा | इच्छुक महानुभाव संस्थान कार्यालय में पत्र मुनि श्री विश्वद्रष्टा जी महाराज द्वारा शीतकालीन वाचना व्यवहार करें, जिससे शिविर-आयोजन हेतु समुचित के माध्यम से मूल प्राकृत ग्रन्थ बारसअणुवेक्खा पर व्यवस्था की जा सके। प्रतिदिन ८.३० से १०.३० तक नियमित प्रवचन हो
सम्पर्क सूत्रः अधिष्ठाता रहे हैं। प्राकृत ग्रन्थ की आत्मा से साक्षात्कार कराते
श्री दिगम्बर जैन श्रमण संस्कृति संस्थान हुए तीनों मुनिराज क्रमशः एक-एक भावना को सरल
वीरोदय नगर, जैन नसियाँ रोड सांगानेर, जयपुर, (राजस्थान)
28 फरवरी 2009 जिनभाषित
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