________________
हैं।
टीका, हिन्दी अनुवाद प्रो० महेन्द्रकुमार जैन 'न्यायाचार्य'. | भी हैं और समीचीन भी हैं। द्वितीय संस्करण 1999, प्रकाशन-भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली। | श्लोकवार्तिक-.
6. तत्त्वार्थमंजूषा- आर्यिका श्री 105 विज्ञानमती समच्चिनोति चस्तेषां सम्यक्त्वं व्यावहारिकम्। माताजी द्वारा संकलित तत्त्वार्थसूत्र की हिन्दी टीका, प्रथम मुख्यं च तदनुक्तौ तु तेषां मिथ्यात्वमेव हि॥ १॥ संस्करण 2005 संपादन-डॉ० चेतनप्रकाश पाटनी।
ते विपर्यय एवेति सूत्र चेन्नावधार्यते। 7. सभाष्यतत्त्वार्थाधिगमसूत्र- आचार्य उमास्वाति
च शब्दमन्तरेणापि, सदा सम्यक्त्वमत्त्वतः॥ 10॥ विरचित संस्कृत टीका सहित, हिन्दी अनुवाद-पं०
मिथ्याज्ञानविशेषः स्यादस्मिन्पक्षे विपर्ययः॥ खूबचन्द्र जी सिद्धान्तशास्त्री, तृतीय संस्करण 1992,
संशयाज्ञानभेदस्य च शब्देन समुच्चयः॥ 11॥ प्रकाशन-श्रीमद् राजचन्द्र आश्रम, आगास (गुजरात)।
अर्थ- 'च' शब्द मति, श्रत एवं अवधिज्ञान के 8. आचार्य प्रभाचन्द्र द्वारा रचित टिप्पणियाँ, जो
| सम्यक्पने का व्यावहारिक एवं मुख्य रूप से समुच्चय कि सर्वार्थसिद्धि हिन्दी टीका के परिशिष्ट में दी गयी ।
करता है। 'च' शब्द के नहीं कहे जाने पर तो उन
तीनों ज्ञानों का विपर्यय पद के कारण मिथ्यापन ही ध्वनित 9. दशलक्षण पर्व में आचार्य श्री विद्यासागर जी
होता है। यदि वे ज्ञान विपयर्य ही हैं तो सूत्र में 'च' महाराज द्वारा दिये गये तत्त्वार्थसूत्र के प्रवचनों के आधार
शब्द के बिना भी ग्रहण हो जाता है, परन्तु ऐसा मानने पर 'च' शब्द की विशेष व्याख्या।
पर सम्यक्पने की अवधारणा नहीं रहती, अतः 'च' शब्द अध्याय 1
दिया गया है। मिथ्याज्ञान के भेदों में विपर्यय भेद है सत्संख्याक्षेत्रस्पर्शनकालान्तरभावाल्पबहुत्वैश्च ।। 8॥
अतः 'च' शब्द से संशय और अज्ञान भेद का भी समुच्चय सर्वार्थसिद्धि, राजवार्तिक, श्लोकवार्तिक एवं सख- | हो जाता है। बोधतत्त्वार्थवृत्ति में इस सूत्र में आये 'चकार' की कोई | तत्त्वार्थवृत्ति- चकारात् सम्यग्ज्ञानरूपाणि च भवन्ति । व्याख्या नहीं की है।
अर्थ- 'च' शब्द से मति, श्रुत और अवधिज्ञान तत्त्वार्थवृत्ति- चकारः परस्परं समच्यते वर्तते। सम्यग्ज्ञान रूप भी होते हैं। तेनामयर्थः न केवलं प्रमाणनयैर्निर्देशादिभिश्च सम्यग्दर्शनादीनां |
सुखबोधतत्त्वार्थवृत्ति- च शब्दोऽत्र समुच्चयार्थः। जीवादीनां चाधिगमो भवति, किन्तु सत्संख्याक्षेत्रस्पर्शन- | तत इमे मति श्रुतावधयो विपर्ययश्च सम्यक्चेति समुदायार्थः । कालान्तरभावाल्पबहुत्वैश्च अष्टभिरनुयोगेश्चाधिगमो भवति। अर्थ- सूत्र में 'च' शब्द समुच्चय क लिए आया
अर्थ- चकार शब्द परस्पर समच्चय के लिए हैं।। है। इससे ये मति, श्रुत और अवधिज्ञान विपरीत होते इससे यह अर्थ है न केवल प्रमाण नय, निर्देश आदि
नय निर्देश आदि हैं और समीचीन भी है ऐसा समुदायार्थ है। के द्वारा सम्यग्दर्शन आदि और जीव आदि का अधिगम
आचार्य विद्यासागर जी महाराज- इस सत्र में होता है, अपितु सत्, संख्या, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अन्तर. 'च' शब्द से यह भी ग्रहण करना चाहिए कि ये तीनों भाव और अल्पबहुत्व इन आठ अनुयोगों द्वारा भी अधिगम | ज्ञान तृतीय गुणस्थान में मिश्ररूप भी होते हैं। होता है।
भावार्थ- मनःपर्ययज्ञान और केवलज्ञान सम्यक् भावार्थ- प्रमाण, नय एवं निर्देश स्वामित्व आदि ही होते हैं, परन्तु मति, श्रुत और अवधिज्ञान सम्यक् इन 2 सूत्रों की तरह सत्, संख्या आदि के द्वारा भी | भी होते हैं, मिथ्या भी होते हैं। यदि सम्यग्दृष्टि है तो जीवादि 7 तत्त्व एवं रत्नत्रय का अधिगम होता है। यह | सम्यग्ज्ञान है, मिथ्यादृष्टि है तो मिथ्याज्ञान है। सूत्र में बताने के लिए सूत्र में 'च' शब्द प्रयुक्त है।
आये विपर्यय शब्द को उपलक्षण कहा है इससे संशय मतिश्रुतावधयो विपर्ययश्च ।। 31॥
और अनध्यवसाय का भी ग्रहण करना चाहिये एवं तृतीय सर्वार्थसिद्धि व राजवार्तिक- चशब्दः समुच्चयार्थः
गुणस्थान में तीनों ज्ञान मिश्ररूप भी होते हैं, यह भी विपर्ययश्च सम्यक्चेति।
ग्रहण करना चाहिये। इन सब कारणों से सूत्र में 'च' अर्थ- 'च' शब्द समुच्चय के लिए है, इससे |
शब्द कहा है। यह अर्थ होता है कि मति, श्रत और अवधिज्ञान विपर्यय
श्री दिगम्बर जैन श्रमण संस्कृति संस्थान,
सांगानेर फरवरी 2009 जिनभाषित 23
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org