SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 24
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तत्त्वार्थसूत्र में प्रयुक्त 'च' शब्द का विश्लेषणात्मक विवेचन पं० महेश कुमार जैन, व्याख्याता आचार्य उमास्वामीकृत मोक्षमार्गप्ररूपक तत्त्वार्थसूत्र' जैनागम में संस्कृतसूत्रों में निबद्ध आद्य ग्रन्थ माना जाता है। मोक्षमार्ग का प्रतिपादक होने के कारण इसे मोक्षशास्त्र भी कहते हैं । तत्त्वार्थसूत्र में सम्यग्दर्शन के विषयभूत जीवादि सात तत्त्वों का वर्णन है। इसमें कुल 10 अध्याय और 357 सूत्र हैं। इसका रचनाकाल ईसा की दूसरी शताब्दी है। जैनशासन का यह ग्रन्थ गूढ़ रहस्यों का विशाल भण्डार है। जैसा कि सूत्र की परिभाषा लिखते हुए आचार्य वीरसेन स्वामी श्रीधवला में इस प्रकार कहते 意 अल्पाक्षरमसंदिग्धं सारवद् गूढनिर्णयम् । निर्दोषहेतुमत्तथ्यं सूत्रमित्युच्यते बुधैः ॥ 9/117॥ अर्थ- जो थोड़े अक्षर से संयुक्त हो, संदेह से रहित हो, परमार्थ - सहित हो, गूढ़ पदार्थों का निर्णय करनेवाला हो, निर्दोष हो, युक्तियुक्त हो और यथार्थ हो उसे पण्डितजन सूत्र कहते हैं । अध्याय 1 अध्याय 2 अध्याय 3 अध्याय 4 8,31 02 1,1,4,5,7,10,28,32,41,47,49 11 08 2,5,13,18,24,34,36,39 4,12,17,19,25,32,35,37,38,40 10 22 फरवरी 2009 जिनभाषित अध्याय 5 अध्याय 6 अध्याय 7 अध्याय 8 3,32,33 अध्याय 9 अध्याय 10 1,3,6,7 कषायपाहुड़ में आचार्य गुणधरस्वामी कहते हैं अर्थस्य सूचनात्सम्यक् सूतेर्वार्थस्य सूरिणा । सूत्रमुक्तमनल्पार्थं सूत्रकारेण तत्त्वतः ॥ 73॥ अर्थ- जो भली प्रकार अर्थ का सूचन करे अथवा अर्थ को जन्म दे, उस बहु अर्थ गर्भित रचना को सूत्रकार आचार्य ने निश्चय से सूत्र कहा है। - 1. सर्वार्थसिद्धि आचार्य श्री पूज्यपाद स्वामी द्वारा रचित संस्कृत टीका, हिन्दी अनुवाद सिद्धान्ताचार्य पं० 'सूत्र' शब्द ग्रन्थ, तन्तु और व्यवस्था इन तीन अर्थों फूलचंद शास्त्री पाँचवा संस्करण 1991, प्रकाशन भारतीय को सूचित करता है । ज्ञानपीठ, दिल्ली । आचार्य उमास्वामी महाराज ने सूत्रों को लघुत्व प्रदान करने के लिए अनेक स्थानों पर 'च' शब्द प्रयुक्त किया है। इस 'च' शब्द की प्रासंगिकता आचार्य पूज्यपाद महाराज, आचार्य अकंलकदेव, आचार्य विद्यानन्दि आदि ने प्रस्तुत की है। उन्हीं सर्वमान्य संदर्भों के आधार पर 'च' शब्द का क्रमागत विवरण इस प्रकार हैविवेचित सूत्रों में 'च' क्रम संख्या शब्द की आवृत्ति Jain Education International 3,7,10,20,22,24,25,37,39 8,18,19,21,22,25,26 09 07 03 06 03 04 कुल योग 63 चकार संयोजन और भी, तथा शब्द या उक्तियों को जोड़ने के लिए प्रयुक्त किया जाता है। समुच्चय के लिए अर्थात् 2 युक्तियों के साथ 'च' की बार-बार आवृत्ति होती है। आचार्य विद्यासागर जी महाराज कहते हैं कि 'च' का पेट बहुत बड़ा है। 'च' शब्द चुम्बक की तरह काम करता है। आचार्यों ने तत्त्वार्थसूत्र में आये 'चकार' के विभिन्न अर्थ स्वीकार किये हैं। जनसामान्य को उन सभी ग्रन्थों को देखना व समझना सहज नहीं है। अतः इस लेख में विभिन्न ग्रन्थों और संदर्भों के आधार से 'च' शब्द की व्याख्या का संकलन किया गया है, ताकि सभी साधर्मी भाई इसका पूर्ण लाभ उठा सकें। इस लेख में आचार्यों द्वारा प्रतिपादित निम्नलिखित ग्रन्थों के सन्दर्भ लिये गये हैं 11,19,21 7,9,11,12,14,23 For Private & Personal Use Only 2. तत्त्वार्थराजवार्तिक आचार्य श्री अंकलक देव द्वारा रचित संस्कृत टीका, हिन्दी अनुवाद आर्यिका श्री 105 सुपार्श्वमती माताजी, द्वितीय संस्करण 2007 संपादक डॉ० चेतनप्रकाश पाटनी । 3. तत्त्वार्थश्लोकवार्तिकालंकार- आचार्य श्री विद्यानन्दि द्वारा रचित संस्कृत टीका, हिन्दी अनुवाद पं० माणिकचन्द्र कौन्देय, द्वितीय संस्करण 2005 प्रकाशनश्री आचार्य कुन्धुसागर ग्रन्थमाला, सोलापुर। 4. सुखबोधतत्त्वार्थवृत्ति - आचार्य श्री भास्करनदी द्वारा रचित टीका, हिन्दी अनुवाद आर्यिका श्री 105 जिनमती माताजी द्वारा। 5. तत्त्वार्थवृत्ति श्री श्रुतसागरसूरि रचित संस्कृत www.jainelibrary.org
SR No.524336
Book TitleJinabhashita 2009 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy