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________________ आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज ने मुनि-आचार्यदशा। कि रागद्वेष से मलिन देवों की उपासना केवल लौकिक में अनेकों बार रागी-द्वेषी देवी-देवताओं की आराधना | आकांक्षाओं के लिए करने का निषेध किया है। तो क्या का स्पष्ट निषेध किया है। आश्चर्य है कि एक काव्य | उनकी उपासना लौकिक आकांक्षाओं के अतिरिक्त परमार्थ ग्रंथ में प्रारंभिक गृहस्थ की लौकिक चर्या के वर्णन को की प्राप्ति के उद्देश्य से भी कभी की जाती है? वे एक सिद्धान्तग्रंथ के उद्धरण के समान महत्त्व देकर पाठकों | रागीद्वेषी देवी-देवता स्वयं परमार्थ से शून्य हैं, तब उपासकों को भ्रमित किया जा रहा है। को परमार्थ कैसे दे सकेंगे? आचार्य समंतभद्र ने तो किसी इसी प्रकार प.पू. आचार्य शांतिसागर महाराज के भी प्रकार की आशा रखकर रागीद्वेषी देवताओं की उपासना विषय में भी बिना जाँच किए ही यह लिख दिया कि करने का निषेध किया है। पू. आचार्य समंतभद्र द्वारा उन्होंने केवल अजैन देवी-देवताओं की ही मूर्तियाँ जैनियों | भिन्न अर्थ में प्रयुक्त 'देव' एवं 'पूजा' शब्द को नयनिरपेक्ष के घरों से निकलवा कर नदी में फिकवाई थीं, जब | होकर छल से भिन्न अर्थ में ग्रहण कर आचार्य भगवंत कि उन्होंने सभी देवीदेवताओं की मूर्तियाँ निकलवायी की वाणी का अवर्णवाद किया है और पाठकों को भ्रमित थीं। पू० आचार्य शांतिसागर महाराज ने सदैव देवी-देवताओं किया है। व शासनदेवताओं की पूजा आराधना का निषेध किया अब तक के दिग्विजय के प्रकाशित अंकों को है। एक पंडित जी द्वारा पद्मावती की साधना की बात | देखकर तो ऐसा लगता है कि इसका प्रकाशन मिथ्यात्व कहे जाने पर उन्होंने पंडित जी की बुद्धि पर खेद प्रकट | की दिग्विजय के उद्देश्य से किया जा रहा है। किंतु किया था। पू. आचार्य विद्यासागर जी महाराज ने भी | यह अवश्य ध्यान में रखिए कि काल के प्रभाव से अनेकों बार अपने प्रवचनों में रागीद्वेषी देवी-देवताओं कदाचित् मिथ्यात्व की किंचित् विजय तो हो सकती की आराधना को मिथ्यात्व कहा है। पू. आर्यिका | | है, किंतु दिग्विजय होने में अभी १८००० वर्ष का लम्बा स्याद्वादमति माता जी ने किशनगढ़ में सार्वजनिक मंच समय शेष है। से घोषणा की थी कि आचार्य विमलसागर महाराज सदैव समाज श्री काला जी जैसे स्वाध्यायशील उदीयमान पद्मावती, क्षेत्रपाल एवं शासनदेवताओं की पूजा-उपासना | विद्वान् से समीचीन मार्गदर्शन की आशा करती है। हम का सर्वथा निषेध करते थे। आश्चर्य ही नहीं, अपितु विद्वद्वर श्री काला जी से साग्रह अनुरोध करते हैं कि खेद भी है कि श्री काला जी ने उपर्युक्त आचार्यों को | वे ऐसे पक्षपोषण की भावना से मिथ्यात्व को पुष्ट करने निराधार ही शासनदेवताओं की पूजा-आराधना का समर्थक | वाले मुद्दों को छोड़कर सर्वज्ञ वीतराग देव द्वारा प्रणीत बताने का दुस्साहस किया है और धर्मश्रद्धालुओं को भ्रमित | दिगम्बरजैनधर्म के सर्वोदयी सिद्धान्तों के प्रचार में अपनी करने का प्रयास किया है। विद्वत्ता का उपयोग कर यश एवं पुण्य के भागी बनें। 'वरोपलिप्सयाशावान्-----' कारिका के स्पष्ट लुहाड़िया सदन, जयपुर रोड अर्थ को तर्क के वाग्जाल में उलझाकर मनमाना रूप मदनगंज-किशनगढ़ (राज.) देने का प्रयास किया गया है। यह कहा जा रहा है | पंचपरमेष्ठी मण्डलविधान मदनगंज-किशनगढ़ चेतना जागृति महिला मण्डल के द्वारा दिनांक ८ जनवरी २००९ को ज्ञानोदय तीर्थ क्षेत्र में पंचपरमेष्ठी मण्डल विधान किया गया। महिला मण्डल की ५० सदस्यों के द्वारा तथा श्रीमान् दीपचन्द जी चौधरी, श्री निर्मल जी छाबड़ा, श्री कैलाश जी पहाड़िया, श्री कमल जी सेठी, श्री कुन्थीलाल जी काला, इन महानुभावों के द्वारा यह कार्य सम्पन्न हुआ। अध्यक्ष श्रीमती शान्ता जी पाटनी ने व महिलामण्डल की सभी सदस्याओं ने सुधासागर जी महाराज से दिगम्बर जैन पाठशाला के लिए आशीर्वाद लिया। मदनगंज-किशनगढ़ चेतना जागृति महिला मण्डल के द्वारा छह राजकीय विद्यालयों-बान्दर सिन्दरी, पाटन, पेडीभाटा, रेगरान बस्ती, मालियों की ढाणी, विश्वकर्मा आदि राजकीय विद्यालयों में १३० स्वेटर जरूरतमन्द विद्यार्थियों को वितरित किये गये। अध्यक्ष : श्रीमती शान्ता पाटनी, मंत्री : श्रीमती आशा अजमेरा 14 फरवरी 2009 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524336
Book TitleJinabhashita 2009 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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