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________________ श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र नेमगिरि पं० रतनलाल बैनाड़ा श्री दिगम्बर जैन-अतिशय-क्षेत्र नेमगिरि, महाराष्ट्र | है। इसके दर्शन से अपूर्व मानसिक शान्ति का अनुभव के परभणी जिले में जिन्तूर से उत्तर दिशा की ओर | होता है। 3 कि.मी. की दूरी पर सहयाद्री पर्वत की उपश्रेणियों गुफा नं. 4- चक्रव्यूह के आकारवाली इन गुफाओं में बसा हुआ है। यहाँ दो पर्वत हैं, जो नेमगिरि और | में यह बीचवाली गुफा है। इस गुफा में क्षेत्र के मूलनायक चन्द्रगिरि के नाम से जाने जाते हैं। दोनों पर्वतों के बीच | श्री 1008 भगवान् नेमिनाथ की अत्यन्त मनोज्ञ सातिशय में चारणऋद्धिधारी मुनियों की अतिप्राचीन चरणपादुकाएँ | साढ़े सात फुट ऊँची भव्य विशाल प्रतिमा विराजमान विराजमान हैं। कहा जाता है कि अन्तिम तीर्थंकर भगवान् | है। वीतरागता की साक्षात् यह प्रतिकृति मन में आह्लाद महावीर का समवसरण तेर क्षेत्र की ओर जाते समय | उत्पन्न करनेवाली तथा असीम शान्ति-प्रदायक है। काले यहाँ चन्द्रगिरी पर्वत पर आया था। यह भी कहा जाता | पाषाण की इस प्रतिमा के दर्शन करते ही, दर्शनार्थी भावहै कि उत्तर भारत में दुर्भिक्ष पड़ने के कारण अन्तिम | विभोर हो आत्मानन्द को प्राप्त हो जाता है। मूर्ति के श्रुतकेवली आचार्य भद्रबाहु महाराज, अपने चन्द्रगुप्त आदि | नीचे वेदी पर इस मूर्ति के जीर्णोद्धार करनेवाले श्री वीर 12000 शिष्य मुनियों के साथ इस क्षेत्र पर पधारे थे। संघवी तथा उनके तीनों पुत्रों की सपत्नीक वंदना मुद्रा तब उन्होंने भगवान् पार्श्वनाथ की प्रतिमा की पुनः प्राण- | अंकित है। प्रतिष्ठा कर मूर्ति को सूरिमन्त्र दिया था। सूरिमंत्र एवं | गुफा नं. 5- यह वह गुफा है, जहाँ संसार का आचार्य भद्रबाहु की तपस्या के प्रभाव से भगवान् पार्श्वनाथ | सबसे बड़ा आश्चर्य देखने को मिलता है। दर्शनार्थी यहाँ की मूर्ति जमीन से अधर अन्तरिक्ष में हो गई थी। आज आते ही अपनी सुध-बुध खोकर तन्मयता से टकटकी भी ओंकारावर्त फणामण्डप से युक्त अन्तरिक्ष में विराजमान ] लगाकर प्रतिमा के दर्शन करते-करते नहीं थकता है। भगवान् पार्श्वनाथ की प्रतिमा, जो विश्व में अनुपम | कभी नीचे, कभी ऊपर, कभी वेदी, कभी अन्तरिक्ष, आकृति को लिये हुए अद्वितीय प्रतिमा है, लोगों के | कभी ओंकारावर्त भव्य फणा एवं कभी सुन्दर मनोज्ञआकर्षण एवं आश्चर्य का कारण बनी हुई है। । प्रतिमा को निहारते हुए दर्शनार्थी अपने जीवन को सफल यह एक ऐसा अनुपम क्षेत्र है, जो पहाड़ी के | मानते हैं। यहाँ के दर्शन हेतु देवगण आज भी आते 17 फुट अन्दर भूगर्भ में सात गुफाओं में छोटे-छोटे | हैं। नागराज तो अक्सर ही यहाँ आते हैं। यद्यपि प्रतिमा दरवाजों से युक्त तथा विशाल मनोज्ञ जिनबिम्बों से युक्त | का वजन 9 टन है, फिर भी जब से श्रुतकेवली आचार्य है। आश्यर्च यह देखकर होता है कि इन गुफाओं | भद्रबाहु ने इस प्रतिमा को सूरिमंत्र दिया, तब से प्रतिमा के अन्दर इतने बड़े-बड़े बिम्ब स्थापित कैसे किये गये | अधर में है। ऐसी प्रतिमा विश्व में अन्य स्थान पर देखने होंगे। क्षेत्र का परिचय इस प्रकार है को नहीं मिलती। गुफा नं. 1- इस गुफा में साढ़े तीन फुट ऊँची गुफा नं. 6- यहाँ साढ़े-चार फुट ऊँचाईवाली काले पाषाण की पद्मासन मुद्रा में स्थित भगवान् महावीर | खड्गासन मुद्रा में चतुर्मुख जिनबिम्ब हैं, इसे लोग स्वामी की मनोज्ञ प्रतिमा है, जो संवत् १६७६ की है। | नन्दीश्वर के नाम से पूजते हैं। गुफा नं. 2- इस गुफा में कर्ण तक केश-लताओं | गुफा नं. 7- यहाँ भगवान् बाहुबली की विचित्र से व्याप्त अति प्राचीन तीन फुट ऊँची भगवान् आदिनाथ | प्रतिमा है, जो नीचे से ऊपर तक बेलों से लिपटी हुई की प्रतिमा है। तथा कन्धों पर सर्प और जाँघों पर छेद होने से अत्यन्त गुफा नं. 3- इस गुफा में परम शान्ति-प्रदायक | अद्भुत है। प्रतिमा की ऊँचाई पौने पाँच फुट है। भगवान् शान्तिनाथ की वीतराग मुद्रा में, पद्मासन में | इन सब गुफाओं के दर्शन कर, दर्शनार्थी चन्द्रगिरि विराजमान 6 फुट ऊँची प्रतिमा है, जिसका शिल्प अद्भुत । पर विराजमान भगवान् शान्तिनाथ, कुन्थुनाथ और अरह -दिसम्बर 2008 जिनभाषित 31 www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.524334
Book TitleJinabhashita 2008 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2008
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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