SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 34
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नाथ की खड्गासन प्रतिमाओं के दर्शन करने के लिए | ___ यह क्षेत्र जिन्तूर शहर में है, जो औरंगाबाद-हैदराबाद चढ़ता है। यह प्रतिमा साढ़े पाँच फुट ऊँची और चार | हाइवे पर स्थित है। रेलगाड़ी से परभणी जंक्शन पर फुट चौड़ी है। इस प्रतिमा की विशेषता यह है कि इसमें | उतरकर वहाँ से 42 कि. मी. की दूरी पर है। औरंगाभगवान् बाहुबलि की लता एवं सर्प युक्त प्रतिमा, भरत | बाद, जालना, परभणी, नान्देड़, अकोला से बहुत सी चक्रवर्ती की हाथ जोड़कर निर्ग्रन्थ प्रतिमा की मुद्रा, | बसें मिलती हैं। यह क्षेत्र मुक्तागिरि से 300 कि. मी., गणधर पादुका, ऋद्धिधारी मुनियों की चरण पादुका, चार| कुन्थलगिरि से 250 कि. मी. तथा कचनेर से 175 कि. अनुयोग एवं पंच परमेष्ठी के प्रतीक चिह्न उत्कीर्ण हैं।। मी. है। 1/205, प्रोफेसर्स कॉलोनी, आगरा (उ.प्र.) नामसाधना प्रभु का नाम लेने मात्र से कर्म की निर्जरा होती है। कर्म निर्जरा जिससे होती है उसका नाम साधना माना जाता है। इसलिए प्रभु का नाम जपनेवाला भी अपने आप में साधना ही तो कर रहा होता है। दुनिया में रागी-द्वेषी का नाम याद न करके कम से कम यह संकल्प तो ले लेता है कि मैं इतने समय तक मात्र प्रभु का ही नाम लूँगा। यह भी अपने आप में बहुत बड़ा संयम / साधना है। कहा भी है कर्मों के बंधन खुलते हैं प्रभु नाम निरंतर जपने से। भव-भोग-शरीर विनश्वर तव, क्षण-भंगुर लगते सपने से॥ अमरकंटक में एक मठ के साधु आते रहते थे। गुरुदेव के दर्शन करते, कुछ शंका-समाधान करके चले जाते। एक दिन वे एक नये साधु के साथ आये और गुरुदेव को नमस्कार कर पास में ही बैठ गये। चर्चा के दौरान आचार्यश्री ने पूछा- ये कौन हैं? तब वे बोले ये मेरा नया चेला है (हाथ में माला लिये जल्दी-जल्दी मणिका खिसकाते जा रहे थे)। आचार्यश्री ने पूछा-ये क्या कर रहे हैं? तब उन्होंने कहा- ये नाम-साधना कर रहे हैं। हर समय राम के नाम की माला फेरते रहते हैं। तब आचार्य श्री ने कहा- हाँ, नामसाधना से यह लाभ होता है कि इष्ट के प्रति कितनी आस्था है--- ! क्योंकि इष्ट के प्रति मजबूत आस्था उनको नमस्कार करने से बनती है और मंत्र को मन के माध्यम से जितना घोंटेंगे उतनी ही मंत्र को शक्ति बढ़ती जाती है- औषधि की तरह। जैसे आयुर्वेद में औषधि को जितनी घोंटो, उतनी उसकी गुणवत्ता बढ़ती है. ऐसा नियम है। राम फेल हो सकते हैं. लेकिन हनुमान कभी फेल नहीं हो सकते। ग्रंथ घोंट-घोंटकर भी पी लो तो भी कल्याण होनेवाला नहीं है, यदि आज्ञासम्यक्त्व नहीं है तो---। प्रभु के प्रति विश्वास होना चाहिए तभी कल्याण होगा। इस प्रसंग से यह शिक्षा मिलती है कि हमें हमेशा प्रभु का स्मरण करते रहना चाहिए। इस जनममरण से बचने के लिए मात्र एक ही साधन है- प्रभु का नाम स्मरण करना। अंत समय, सल्लेखना के समय मुख से प्रभु का नाम निकल जाये, तो बड़ा सौभाग्य समझना। क्योंकि भगवान् का स्मरण मरण को सुन्दर बना देता है। (अतिशय क्षेत्र बीना बारहा जी, 27 जुलाई 2005) मुनि श्री कुन्थुसागरकृत 'अनुभूत रास्ता' से साभार 32 दिसम्बर 2008 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524334
Book TitleJinabhashita 2008 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2008
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy