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________________ UPHIN/2006/16750 मुनि श्री योगसागर जी की कविताएँ सद्भावना की शुभ्र रश्मियाँ सन्त पुरुषों के अन्तस् जगत् में जब सद्भावना की शुद्ध शुभ्र रश्मियाँ प्रस्फुटित होती हैं, तब यही बहिर् जगत् में धर्म प्रभावना की धवल ज्योत्स्ना के रूप में शरद पूनम की चाँदनी सी छा जाती है, जिससे भविक जनों की हृदय की कुमुदनी खिल जाती है राई बराबर बुराई राई बराबर बुराई में ऐसी गहराई है जिसकी तराई से अमराई सी छा जाती है - और सम्यक्त्व की पराग बिखरती है प्रस्तुति : रतनचन्द्र जैन स्वामी, प्रकाशक एवं मुद्रक : रतनलाल बैनाड़ा द्वारा एकलव्य ऑफसेट सहकारी मुद्रणालय संस्था मर्यादित, 210, जोन-1, एम.पी. नगर, _Jain Education Inte भोपाल (म.प्र.) से मुद्रित एवं 1/205 प्रोफेसर कॉलोनी, आगरा-282002(उ.प्र.) से प्रकाशित। संपादक : रतनचन्द्र जैन। www.jainelibrary.org
SR No.524333
Book TitleJinabhashita 2008 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2008
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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