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________________ में क्रोध आने पर भी उसे दबाकर ग्राहक से हँसकर । भोगते हैं, रागद्वेषपूर्वक नहीं। इसलिये उनकी कर्मो की यही कहता है- भैया मेरी तो यही खेती है. फिर भी श्रंखला टटती जाती है। नवीन कर्मबन्ध नहीं होता। पराने आपको सबसे कम भाव लगाया है। इस परिवर्तन की | हर्षपूर्वक भोगते हुए समतावान् बने रहते हैं। आत्मानन्द प्रक्रिया को जैनागम के कर्मसिद्धान्त की भाषा में उत्कर्षण, | में जीते हुए त्रिकाल की चिन्ता, भय से मुक्त रहते हैं। अपकषर्ण, संक्रमण, उदीरणा आदि दश भागों में वाँटकर | कर्म उनके आगे अपने घुटने टेक देते हैं। ऐसे ही सन्तों समझाया गया है। को लक्ष्य कर आचार्य अमितगति ने योगसार ग्रंथ में कर्म से छुटकारा- सम्यक् पुरुषार्थ से हम कर्मों | उनकी प्रशंसा करते हुए कहा है कि वे सन्त धन्य हैं, से छुटकारा भी पा सकते हैं। कर्मों से मुक्ति का नाम जो भवबीजरूप मिथ्यादर्शन के अभाव में, कर्म भोगने ही मोक्ष है। अगणित जीवों ने अनादि कर्मों से स्वपुरुषार्थ | में द्वेषभाव न रखते हुए, कर्मों से छुटकारा पाकर, अपना द्वारा छुटकारा प्राप्त किया है, कर्मों की कृपा से नहीं। | कल्याण कर लेते हैंअस्तु कर्म विधाता नहीं, जीव स्वयं अपना विधाता है। नास्ति येषामयं तत्र भवबीज-वियोगतः। सन्त कर्मोदय में रागद्वेष से अप्रभावित रहने का, तेऽपि धन्या महात्मनः कल्याणफलभागिनः ।। २४०॥ आत्मा का पुरुषार्थ जाग्रत कर मोक्षमार्ग पा जाते हैं। कर्मसत्ता पुष्पराज कॉलोनी, में उनके भी हैं और उदय में भी आते हैं परन्तु वे | गली नं. २, सतना (म.प्र.) समता परिणाम बनाये रहते हैं। उन्हें वे द्रष्टा भाव से । श्रीमती सुशीला पाटनी 'श्राविका शिरोमणि' अलंकरण से अलंकृत अ.भा. श्री दिगम्बर जैन ज्ञानोदय तीर्थ क्षेत्र | की अध्यक्ष महिलाओं ने माल्यार्पण कर श्रीमती पाटनी नारेली-अजमेर (राज.) की पावन धरा पर अखिल | को सम्मानित किया। भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महिला महासमिति का दिनांक श्रीमती शान्ता पाटनी धर्मपत्नी श्री सुरेशजी पाटनी 4-5 अक्टूबर 2008 को महासम्मेलन सम्पन्न हुआ। | आर.के. मार्वल परिवार ने अपने उद्गार प्रकट करते दिनांक 4 अक्टूबर को अजमेर किशनगढ़ हुए कहा कि ऐसी आदर्श जेठानी सभी को मिले। सम्भाग के आह्वान पर ज्ञानोदय तीर्थ क्षेत्र में प्रथम | | सम्मान की श्रृंखला में श्रीमती शुचि धर्मपत्नी विनीत बार महासमिति का महाअधिवेशन किया गया। पाटनी पुत्रवधु श्रीमती सुशीला पाटनी ने कहा कि ऐसी इस महासम्मेलन में 20 सम्भागों की लगभग सरलस्वभावी सुसंस्कारित सास सभी को मिले। जो 1000 महिला सदस्यों ने इस अधिवेशन में सक्रिय | अपने मुदल व्यवहार से हम सब को एकता के सत्र भाग लिया। में बाँधे हुए हैं। प्रत्येक सम्भाग की अध्यक्ष एवं मंत्री आदि परम पूज्य मुनि पुंगव 108 श्री सुधासागर जी ने स्टेज पर संकल्प किया कि समाजोत्थान हेतु परिवारों | महाराज ने विशाल जन समुदाय के समक्ष अत्यंत में चल रही कुरीतियों का बहिष्कार करेंगी। मार्मिक एवं महत्त्वपूर्ण रविवारीय प्रवचन में कहा कि श्रीमती सुशीला जी पाटनी धर्मपत्नी विश्वविख्यात | नारी ही अपने त्याग, सेवा, सद्व्यवहार से देश, समाज जैनगौरव श्री अशोक जी पाटनी, आर.के. मार्वल परिवार | | एवं परिवार में अलख जगा सकती है। आज के इस का इस शुभावसर पर अभिनन्दन किया गया। रजतपत्र | चकाचौंधपूर्ण भौतिकवाद के वातावरण में एकमात्र पर स्वर्णाक्षरों से अंकित अभिनन्दन पत्र का वाचन | महिला ही एक ऐसी कड़ी है जो स्वयं के संस्कारों श्रीमती डॉ. वन्दना जैन जयपुर ने किया। श्रीमती | से करुतियों एवं कसंस्कारों को बदल सकती है। अतएव सशीलाजी पाटनी को श्राविकाशिरोमणि के अलंकार | धार्मिक संस्कारों को बढ़ाने में अपने परिवार में अधिक से अलंकृत करते हुए उपस्थित जनसमुदाय ने अपने | से अधिक योगदान देने का संकल्प करें। आपको गौरवान्वित अनुभव किया। लगभग 20 सम्भागों । भीकमचंद पाटनी, सं. सचिव 18 नवम्बर 2008 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524333
Book TitleJinabhashita 2008 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2008
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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