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________________ जैन एकता के लिए ठोस एवं प्रभावी प्रयास करें सुरेश जैन, आई. ए. एस. (से.नि. ) यह अत्यधिक सराहनीय है कि कमेटी ने नव निर्वाचित अध्यक्ष श्री आर. के. जैन ने घोषित किया है कि नई कमेटी में तन से, मन से और धन से योगदान देनेवाले व्यक्ति सम्मिलित किए गए हैं। अतः भूतकाल में जो परिणाम पाँच साल में आये थे, वे एक साल में नजर आने लगेंगे। वर्तमान ध्रुवफण्ड में से भविष्य में कोई व्यय नहीं किया जावेगा। नई राशि एकत्रित कर तीर्थों की सुरक्षा एवं जीर्णोद्धार के कार्यों पर व्यय की जावेगी । भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी के मुखपत्र 'जैन तीर्थ वंदना,' (अगस्त, २००८) में कमेटी के महामंत्री श्री चक्रेश जैन ने कमेटी की प्राथमिकता का उल्लेख करते हुए बताया है कि सीधे एवं सकारात्मक संवादों के माध्यम से तीर्थों के विवाद समाप्त हों। हम उनकी इस घोषणा का स्वागत करते हैं। इसी पत्रिका में मध्यप्रदेश में स्थित जैन अतिशय क्षेत्र मक्सी पार्श्वनाथ में हुए विवाद समापन की शुरुआत का उल्लेख श्री बाहुबली पाण्डया ने किया है। इस क्षेत्र के विवाद को समाप्त करने में आध्यात्मिक क्षेत्र में सुस्थापित आचार्य श्री पद्मसागर जी एवं मुनिराज श्री क्षमासागर जी के आशीर्वाद ने महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया है। स्थानीय न्यायाधीश श्री गंगाचरण दुबे की प्रेरणा एवं इस क्षेत्र पर पूर्ण निष्ठापूर्वक कार्यरत श्री मदनलाल दलाल एवं श्री पद्मकुमार पाटोदी के सतत प्रयत्न अत्यधिक सराहनीय एवं अनुकरणीय रहे हैं। श्री दलाल ने ७० के दशक में देवास में मेरे साथ पाँच वर्ष तक सफलतापवूक शासकीय कार्य करते हुए ग्रामीण विकास के क्षेत्र में अनेक कीर्तिमान स्थापित किए हैं। अनेक अवसरों पर मक्सी पहुँचकर मुझे एवं मेरी पत्नी श्रीमती विमला जैन को १२५ वर्ष पुराने विवाद के समाधान में श्री दलाल एवं श्री पाटोदी को मार्गदर्शन देने ओर विवाद समाप्त होने पर बधाई देने का सुअवसर प्राप्त हुआ है । राष्ट्रीय नेतृत्व से मेरा निवेदन है कि सामाजिक एकता में असाधारण योगदान देनेवाले इन दोनों समाजसेवकों का सम्मान राष्ट्रीय स्तर पर किया जाय । श्री दीपचन्द्र गंगवाल ने अपने आलेख तीर्थ संरक्षण और हमारे दायित्व में अपेक्षा की है कि धर्म, तीर्थ संरक्षण और समाज की चतुर्मुखी प्रगति के लिए सौहार्द्र, प्रेम और सहयोगपूर्वक कमेटी को आगे बढ़ना होगा। सम्पूर्ण राष्ट्र में फैले हुए कमेटी के ३२०० सदस्यों को अपने कर्त्तव्यों को समझना होगा। जैन दर्शन, धर्म, संस्कृति और इतिहास का ज्ञान प्राप्त करना होगा। संयमित जीवन जीने की कला सीखना होगी। उन्होंने यह महत्त्वपूर्ण सलाह दी है कि समाज के विशाल भवनों में विश्व स्तर के तकनीकी एवं प्रशासनिक शिक्षा के केन्द्र खोले जायें । Jain Education International यह उल्लेखनीय है कि श्वेताम्बरसंघ की ओर से श्री ललित नाहटा ने स्थूलभद्रसंदेश वर्ष १२ अंक८, अगस्त, २००८ में प्रकाशित अपने संपादकीय में यह विश्वास प्रगट किया है कि श्री आर. के. जैन धार्मिक झगड़ों को मिटाने की हार्दिक इच्छा रखते हैं और उन्हें निश्चित रूप से अपने प्रयासों में सफलता मिलेगी और सौहार्दपूर्ण वातावरण निर्मित होने पर जैनसंघ अपने पुराने गौरव को प्राप्त करेगा। श्री नाहटा का यह सकारात्मक संकेत अत्यधिक सराहनीय और सभी पक्षों के लिए अनुकरणीय है। जैन समाज के राष्ट्रीय नेताओं का तीर्थसंरक्षण का उत्तरदायित्व केवल न्यायालय में मामला प्रस्तुत कर देने से ही पूरा नहीं हो जाता हैं। सभी घटक अपने तीर्थों के विवादों को हल करने के लिए केवल न्यायालय और वकीलों के ऊपर ही निर्भर न रहे। हमारे समाज के वरिष्ठ न्यायाधीश, प्रशासक पुलिस, आयकर अधिकारी एवं प्रबुद्ध व्यक्ति भी इन विवादों के समाधान में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका वहन कर सकते हैं। इस अभियान में समाज के सभी प्रमुख व्यक्तियों को अपनी भूमिका का निर्वाह करना चाहिए। तीर्थों के विवाद पर बहस का समय अब गुजर चुका है। अब गुणवत्तापूर्ण क्रियान्वयन एवं जवाबदेही का समय आ चुका है। एकता को हम सामाजिक गौरव का विषय बनायें। सभी पक्षों के बीच एकता का माहौल बनाने के लिए सतत प्रयास करें। एकता के प्रयत्नों को प्रोत्साहित करें। हमारा नेतृत्व दिगम्बर और श्वेताम्बरों के बीच विद्यमान छोटे से छोटे संदेह को सतत बातचीत और संपर्क के माध्यम से दूर करे। हम ऐसे संदेहों की ओर अक्टूबर 2008 जिनभाषित 23 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524332
Book TitleJinabhashita 2008 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2008
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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