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________________ ग्रन्थ-समीक्षा चिन्तामणि - त्रय - समीक्षा समीक्ष्य कृति का नाम पं० लालचन्द्र जैन 'राकेश' 'चिन्तामणि' त्रय समीक्षा, लेखक - डॉ. अनिलकुमार जैन, निर्देशन एवं सम्पादक- प्रोफेसर डॉ. भागचन्द्र जैन 'भागेन्दु', प्रकाशक - डॉ. शीतलचन्द्र जैन, मानद मंत्री, वीर सेवा मंदिर ट्रस्ट, 81/ 94, नीलगिरी मार्ग, मानसरोवर, जयपुर (राजस्थान), मूल्य- 125/-, समीक्षकधर्मदिवाकर पं. लालचन्द्र जैन 'राकेश' अध्यात्म और दर्शन के रचयिता के मूल भावों को अपनी सहज-सरल भाषा से सर्वग्राह्य बना दिया है। चतुर्थ अध्याय में चिन्तामणि त्रयों का साहित्यिक अनुशीलन प्रस्तुत किया है। जिसमें ग्रन्थ का उद्देश्य नामकरण, भावपक्ष ( रस, रीति, गुण) एवं कलापक्ष ( अलंकार, छन्द, भाषा) पर प्रकाश डाला गया है। चतुर्थ अध्याय में चिन्तामणि -त्रयों का पृथक्-पृथक् दार्शनिक विवेचन प्रस्तुत किया है। सम्यक्त्व - चिन्तामणि के दार्शनिक अनुशीलन के अन्तर्गत सम्यग्दर्शन का लक्षण, सम्यग्दर्शन की सम्प्राप्ति, सम्यग्दर्शन के अंग, सम्यग्दर्शन के भेद, सम्यग्दर्शन का महत्त्व, इसके अतिरिक्त सात तत्त्व, नौ पदार्थ, षड्द्रव्य गुणस्थान, पर्याय, प्राण, संज्ञा, मार्गणा, गति, कषाय, लेश्या, समुद्घात, गुण, पदार्थ, मिध्यात्व, कर्म, युक्ति तथा परीषहों का विवेचन किया है। शोधकर्त्ता का वेशिष्ठ्य यह है कि उसने पण्डित जी द्वारा प्रणीत ग्रन्थ का आश्रय तो लिया ही है साथ ही रत्नकरण्ड श्रावकाचार, गोम्मटसार (जीवकाण्ड) आदि प्राचीन एवं अतिप्रसिद्ध ग्रन्थों का भी आश्रय लेकर रचना को अधिक उपयोगी बना दिया है । सम्यग्ज्ञान चिन्तामणि की विषयवस्तु की विवचेना के अन्तर्गत शोधार्थी ने सम्यग्ज्ञान, सम्यग्ज्ञान भेद, नवध्यान तथा, द्वादशांग का वर्णन किया है। विषय को सर्वोपयोगी एवं सर्वग्राह्य बनाने के लिए प्राचीन ग्रन्थों का सहारा लेकर प्रतिपाद्य विषय का समीक्षात्मक एवं तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया है। फलतः इस अध्याय में प्राचीन भाषा शास्त्र, दर्शन, साहित्य, इतिहास और संस्कृति के विविध पक्ष उजागर हुए हैं। अनथक शोधकर्ता श्री अनिलकुमार जैन ने पण्डित जी के सम्पूर्ण साहित्य का आलोढ़न कर इस शोधग्रन्थ का प्रणयन किया है। शोधकर्ता ने समीक्ष्य कृतियों के विषय को ६ अध्यायों में विभाजित कर विवेचना की है। प्रथम एवं द्वितीय अध्याय में पण्डित जी के व्यक्तित्व, कृतित्व, वैदुष्य एवं जीवनवृत्त का चित्रण है, जो उनकी गुण- गरिमा के अनुकूल बन पड़ा है। शोधकर्ता सम्यक्चारित्र-चिन्तामणि के विवेचन के अन्तर्गत सम्यक्चारित्र का स्वरूप, सम्यक्चारित्र की सम्प्राप्ति, सम्यक् चारित्र के भेद, पंचमहाव्रत, पंचसमिति, षट् आवश्यक, ने तृतीय अध्याय में चिन्तामणि त्रयों के प्रतिपाद्य विषय । इन्द्रियजय, सप्तअन्यगुण, द्वादश अनुप्रेक्षा, अणुव्रत, गुणव्रत, अगस्त 2008 जिनभाषित 29 समीक्ष्य कृति 'चिन्तामणि' - त्रय समीक्षा श्रद्धेय साहित्याचार्य डॉ. पन्नालाल जी जैन सागर द्वारा विरचित 'सम्यक्त्व चिन्तामणि', 'सम्यग्ज्ञान- चिन्तामणि' एवं ' सम्यक्त्व चारित्र'-चिन्तामणि इन कालजयी त्रय कृतियों का समीक्षात्मक अध्ययन है। इसके प्रणेता है डॉ. श्री अनिलकुमार जैन। यह एक शोध-प्रबन्ध है जो स्नातकोत्तर शासकीय महाविद्यालय, दमोह के ( तत्कालीन) विभागाध्यक्ष प्रो. डॉ. भागचन्द्र जैन ' भागेन्दु' के समर्थ निर्देशन में डॉ. हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर से पी-एच.डी. की उपाधि प्राप्त करने हेतु तैयार किया गया था । इस शोध प्रबन्ध को डॉ. हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर ने उत्कृष्ट, मौलिक शोधकार्य स्वीकार कर श्री अनिलकुमार जैन को पी-एच.डी. की उपाधि से अलंकृत किया । डॉ. पं. पन्नालाल जी 'बसंत' सागर नव-नवोन्मेषशालिनी प्रतिभा से सम्पन्न बहुश्रुत - व्रती विद्वान् थे । आपने संस्कृत - प्राकृत जैन ग्रन्थों के सम्पादन, अनुवादन, टीका एवं स्वतन्त्र लेखन में अग्रगामी रहकर ऐतिहासिक कार्य किया है। सम्यक्त्व-चिन्तामणि, सम्यक्त्व चिन्तामणि, सम्यक्त्व चारित्र चिन्तामणि (चिन्तामणि -त्रय) उन्हीं विद्वत्रन की रचनाएँ हैं। जिनमें कुल मिलाकर ७७२ पृष्ठ व ३६८५ पद्य हैं, एवं लगभग ३० प्रकार के छन्दों का प्रयोग किया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524330
Book TitleJinabhashita 2008 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2008
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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