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किया गया है और अनार्ष वेद वह है जिसमें हिंसा का उपदेश है। अनार्ष वेद जो कि पर्वत के द्वारा कहा गया है। प्राचीन काल में जो वेदों के मन्त्रों का अर्थ अहिंसक तरीके से यज्ञ करने का ही किया जाता था । इस अहिंसा को उन्होंने कहाँ से लिया, यदि यह पूछा जाय तो कहना होगा कि यह अहिंसा भगवान् ऋषभदेव से लिया गया । इस बात का सर्मथन उपर लिखे एक प्रसंग से होता है, जिसमें कहा गया है कि वेदों में भगवान् ऋषभदेव को स्वयंभू आदि कहा गया है। इससे ऐसा लगता है कि वैदिक आर्यों के पूर्वज भगवान् ऋषभदेव की परम्परा थी। वर्तमान में उपलब्ध वेद में भगवान् ऋषभदेव का
उल्लेख है, ऐसा विद्वानों का कहना है, जो कि हमारे विचारों का समर्थन करता है। इससे यह लगभग स्पष्ट होता जा रहा है कि जैनधर्म वैदिकधर्म से अतिप्राचीन है। इसके बारे में और स्पष्ट लिखने का प्रयास आगे फिर कभी करेंगे। इस लेखका आशय यही है कि वैद भगवान् ऋषभदेव की अहिंसा के ऋणी है और प्राचीन काल में उनका अर्थ अहिंसक रीति से ही किया जाता था। इस अहिंसा का श्रेय भगवान् ऋषभदेव को है, जो कि इस वर्तमान अवसर्पिणी काल में प्रथम तीर्थंकर थे। कर्मण्येवाधिकारस्ते
श्री दि. जैन श्रमण संस्कृति संस्थान, सांगानेर
ये जमीं पै जिनका था दबदबा, कि बुलन्द अर्श पै नाम था, उन्हें यों फलक ने मिटा दिया, कि मजार तक का निशा नहीं ।
बहुत कुछ पाँव फैलाकर भी मगर आखिर जगह हमने, न
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सादगी सबसे बड़ा गहना
सादगी को संसार में मनुष्य का सुंदरतम गहना माना गया है। इंग्लैण्ड के प्रधानमंत्री ग्लैडस्टोन बहुत सादा जीवन व्यतीत करते थे। वे अपने कपड़े तक स्वयं ही साफ करते थे और बाजार से सब्जी आदि भी स्वयं साइकिल पर लेकर आते थे ।
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एक बार रेलयात्रा के दौरान किसी समाचार पत्र के संपादक ने उनसे किसी स्टेशन पर मिलने की अनुमति माँगी। उन्होंने तुरंत हाँ कर दी। निर्धारित स्टेशन पर संपादक प्रथम श्रेणी के डिब्बे प्रधानमंत्री को ढूँढ़ने लगे, पर वे उन्हें कहीं दिखाई नहीं दिए।
अचानक एक युवक ने उनसे पूछा कि क्या आप प्रधानमंत्री को ढूँढ रहे हैं? वे तो दूसरी श्रेणी के डिब्बे में सफर कर रहे हैं। संपादक महोदय जब वहाँ पहुँचे तो उन्हें प्रधानमंत्री एक सीट पर अखबार पढ़ते मिले।
20 अग्रस्त 2008 जिनभाषित
चकबस्त
देखा 'शाद' दुनिया में, दो गज के सिवा पायी । शाद अजीमाबादी
संपादक महोदय ने आश्चर्य से पूछा, 'आप प्रधानमंत्री होकर भी दूसरे दरजे में सफर कर रहे हैं, वह तो अच्छा हुआ प्रथम श्रेणी में बैठे एक युवक ने मुझे आपका पता बता दिया, नहीं तो मैं शायद ही आपको खोज पाता ।'
ग्लैडस्टोन बोले, “हाँ, वहाँ मेरा बेटा बैठा है, उसी ने आपको मेरे बारे में बताया होगा।"
संपादक के आश्चर्यचकित होने पर प्रधानमंत्री का उत्तर था, 'भाई, मैं एक किसान का बेटा हूँ, पर वह तो प्रधानमंत्री का पुत्र है, उसे प्रथम श्रेणी में यात्रा करना सुविधाजनक लगता है और मुझे द्वितीय श्रेणी में । '
सादगीपूर्ण व्यक्तियों का आचरण अनुकरणीय है ।
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'बोध कथा' से साभार
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