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शाहपुर : (म.प्र.) में विद्यालय
क्षुल्लक श्री गणेश प्रसाद जी वर्णी शाहपुर में पञ्चकल्याणक था। प्रतिष्ठाचार्य श्रीमान् । केवलकल्याणक और निर्वाणकल्याणक के उत्सव क्रम पं० मोतीलाल जी वर्णी थे। यह नगर गनेशगंज स्टेशन | से सानन्द सम्पन्न हुए। मुझे देखकर अन्तरङ्ग में महती से डेढ़ मील दूर है। यहाँ पर पचास घर जैनियों के | व्यथा हुई कि लोग बाह्य कार्यों में तो कितनी उदारता हैं, प्रायः सभी सम्पन्न, चतुर और सदाचारी हैं। इस गाँव | के साथ व्यय करते हैं, परन्तु सम्यग्ज्ञान के प्रचार में में कोई दस्सा नहीं। यहाँ पर श्री हजारीलाल सराफ व्यापार | पैसा का नाम आते ही इधर-उधर देखने लगते हैं। जिस में बहुत कुशल है। यदि यह किसी व्यापारिक क्षेत्र में | प्रकार जिनेन्द्रदेवमुद्रा की प्रतिष्ठा से धर्म होता है, उसी होता, तो अल्प ही समय में सम्पतिशाली हो जाता, परन्तु | प्रकार अज्ञानी जनता के हृदय से अज्ञान-तिमिर को दूरकर साथ ही एक ऐसी बात भी है, जिसमें समाज के साथ | उनमें सर्वज्ञ वीतरागदेव के पवित्र शासन का प्रसार करना घनिष्ठ सम्बन्ध नहीं हो पाता।
भी. तो धर्म हैं। पर लोगों की दष्टि इस ओर हो तब जिनके यहाँ पञ्चकल्याणक था, वह सज्जन व्यक्ति | न। मन्दिरों में टाइल और संगमर्मर जड़वाने में लोग सहस्रों थे। उनका नाम हलकूलालजी था। उनके चाचा वृद्ध थे, व्यय कर देंगे, पर सौ रुपये शास्त्र बुलाकर विराजमान जिनका स्वभाव प्राचीन पद्धति का था। विद्या की ओर | करने में हिचकते हैं। उनका बिल्कुल भी लक्ष्य नहीं था। मैंने बहुत समझाया। इस प्रान्त में यह पद्धति है कि आगत जनता
ओर भी ध्यान देना चाहिये, परन्तु उन्होंने टाल | पञ्चकल्याणक करनेवाले को तिलक दान करती है, तथा दिया। यहाँ पर एक लोकमणि दाऊ थे। उनके साथ | पगड़ी बाँधती है। यदि गजरथ करनेवाला यजमान है, मेरा घनिष्ठ सम्बन्ध था। उनसे मैंने कहा कि 'ऐसा उपाय तो उसे सिंघई पदसे भषित करते हैं और सब लोग करना चाहिये कि. जिससे यहाँ पर एक पाठशाला हो | सिंघई जी कहकर उनसे जुहार करते हैं। इसी समय जावे, क्योंकि यह अवसर अनुकूल है। इस समय श्रीजिनेन्द्र | से लेकर वह तथा उसका समस्त परिवा भगवान् के पञ्चकल्याणक होने से सब जनता के परिणाम | सिंघई शब्द से प्रख्यात हो जाता है। अन्त में, जब यहाँ निर्मल हैं। निर्मलता का उपयोग अवश्य ही करना चाहिये।' | भी पञ्चकल्याणक करनेवाले को तिलकदान का अवसर दाऊ ने हमारी बात का समर्थन किया। | आया, तब मैंने श्रीयुत् लोकमणि दाऊ से कहा कि 'इन्हें
देवाधिदेव श्री जिनेन्द्रदेव का पाण्डुकशिला पर | सिंघई पद दिया जावे। चूँकि सिंघई पद गजरथ चलानेवाले अभिषेक था, पाण्डुकशिला एक ऊँची पहाड़ी पर बनाई | को ही दिया जाता है, अत: उपस्थित जनता ने उसका गई थी, जिसपर कल्पित ऐरावत हाथी के साथ चढ़ते | घोर विरोध किया और कहा कि यदि यह मर्यादा तोड़ हुए हजारों नर-नारियों की भीड़ बड़ी ही भली मालूम | दी जावेगी तो सैकड़ों सिंघई हो जावेंगे। मैंने कहा-'इस होती थी। भगवान् के अभिषेक का दृश्य देखकर साक्षात् | प्रथाको नहीं मिटाना चाहिये, परन्तु जब कल्याणपुरा में सुमेरु पर्वत का आभास हो रहा था। जब अभिषेक के | पञ्चकल्याणक हुए थे, तब वहाँ श्रीमन्त सेठ मोहनलाल बाद भगवान् का यथोचित्त श्रृंङ्गारादि किया जा चुका, | जी खुरईवाले, श्रीमान् सेठ ब्रजलाल चन्द्रभानु लक्ष्मीचन्द्र तब मैंने जनता से अपील की कि 'इस समय आप | जी वमरानावाले, श्रीमान् सेठ टडैयाजी ललितपुरवाले तथा लोगों के परिणाम अत्यन्त कोमल हैं, अत: जिनका | श्री चौधरी रामचन्द्रजी टीकमगढ़वाले आदि सहस्रों पञ्च अभिषेक किया है, उनके उपदेशों का प्रचार करने के | उपस्थित थे। वहाँ यह निर्णय हुआ था कि यदि कोई लिये यहाँ एक विद्या का आयतन स्थापित होना चाहिये।' | एक मुस्त पाँच हजार विद्यादान में दे, तो उसे सिंघई सब लोगों ने 'हाँ, हाँ, ठीक है, ठीक है, जरूर होना | पद से भूषित करना चाहिये। यद्यपि वहाँ भी बहुत से चाहिये।' आदि शब्द कहकर हमारी अपील स्वीकार की, | महानुभावों ने इसका विरोध किया था, परन्तु बहु सम्मति परन्तु चन्दा लिखाने का श्रीगणेश नहीं हुआ। सब लोग | से प्रस्ताव पास हो गया था। अतः यदि हलकूलालजी यथास्थान चले गये। इसके बाद राज्यगद्दी, दीक्षाकल्याणक, | पाँच हजार रुपया विद्यादान में दें, तो उन्हें यह पद दे
- अगस्त 2008 जिनभाषित 11
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