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________________ ग्रन्थसमीक्षा आन-बान-शान की धरोहर : बेटियाँ पुस्तक : बेटियाँ हमारी शान, लेखक : श्री विनोद कुमार जैन 'नयन', पृष्ठ: 32, सहयोग राशि : बीस रुपये, प्रकाशक : नमन-सृजन सामाजिक कल्याण समिति, भोपाल जब भी भारतवर्ष के गौरव की चर्चा की जाती है, तो वह माँ से शुरू होती पाई गई है, माँ, जो कल किसी की पुत्री थी। बेटी का चरमोत्कर्ष माँ है और पूज्य माँ का आधार है योग्य बेटी । कहें योग्य बेटी ही पूज्य माँ बन सकती है। अयोग्य तो गणिका, कुलटा आदि का रंग-रूप- सरूप ही धारण कर पाती है। भारत का अतीत योग्य बेटियों और पूजनीय माताओं से भरा पड़ा है। यहाँ हर घर में उनके दर्शन होते रहे हैं। योग्य बेटियों की परम्परा निरंतर थी, है, परन्तु अभी एकदो दशकों से बेटियों पर कुठाराघात करने की गोपनकार्रवाई शुरू की गई है, जिसके फलस्वरूप देश में बेटियों की संख्या कम हो पड़ी है। जाहिर है कि बेटियाँ कम जन्मेंगी, तो बधुएँ भी कम नजर आयेंगी और माताएँ भी । इसी चिंता पर गीतकार श्री विनोद कुमार 'नयन' ने गहन विचार किया है, फलस्वरूप उनकी लेखनी ने प्रस्तुत पुस्तक 'बेटियाँ हमारी शान' को जन्म दिया। सम्पूर्ण पुस्तक में सहज-सरल शब्दों और साधारणतुकबंदी के माध्यम से उन्होंने उस विराट् सत्य के दर्शन करा दिये हैं, जिसे बड़े-बड़े महाकवि अपने कीमती 'महाकाव्य' में नहीं करा पाये, तब लगा कि सचाई अपना लेने से तुकबंदी का वजन भी महाकाव्य जितना हो जाता है। स्लोगन / नारों का अपना एक अस्तित्व होता है, प्रभाव होता है। जो कार्य सौ तलवारों से सौ बहादुर नहीं कर सकते, वह कार्य एक नारे से सौ साधारण - आदमी कर सकते है, यही है इस पुस्तक की उपस्थिति का सरोकार । नारे 'स्थायी महत्त्व का साहित्य' बन सकते है, यह श्री 'नयन' ने सिद्ध करके दिखला दिया है। यह उनके सोच का सफल प्रयास है। पढ़ें बेटी तो बोझा लगे, बचपन से ही यार । प्यारा है बेटा, भले मूरख और गँवार ॥ Jain Education International समीक्षक : श्री सुरेश जैन 'सरल' इसी तरह भ्रूणहत्या के विरुद्ध तुकबंदी कर, ' ने भारी प्रभावशाली पंक्तियाँ दी हैं 'नयन' जो बेटे, बेटी में भेद करे, अरे वह कैसी महतारी है ? जो कोख में बेटी को मारे, वह जननी नहीं, हत्यारी है। एक कविता सास-बहू-संबंधी है, तो एक दहेज के विरुद्ध शंखनाद कर रही है। एक कविता में बेटियों अथक कार्यों और आरामाभाव पर दृष्टि डालते हैं'बेटियाँ कितना काम करें? नहिं पलभर आराम करें।' के यह पीड़ा पिता, भाई, चाचा, और माँ को सबसे पहले समझनी चाहिए, तभी तो बाद में ससुर, देवर, ननदोई और सासें-ननदें समझेंगी। क्योंकि विदा के बाद माता-पिता बेटी की बहुत याद करते हैं, चिन्ता करते हैं, अतः वह बिदा के पूर्व भी करनी चाहिए। पढ़ेंपुस्तक में 'याद आये बेटियाँ' गीत । For Private & Personal Use Only कवि - गीतकार श्री 'नयन' ने एक रचना के माध्यम से नारी शक्ति पर भी कलम चलायी है, जो प्रेरक और भावपूर्ण है। इसी क्रम में 'माँ को समर्पित स्लोगन', नारी-महिमा, दमदार बेटियाँ, लड़ रही बेटियाँ, बाल विवाह के खिलाफ, बेटियाँ बहक जायें ना, आदि रचनाएँ भी पठनीय हैं। बेटियों के पक्ष में कवि एक सशक्त मंच से बोलता - मिलता है हर रचना में। उनकी भावनाएँ आदर पायेंगी । अध्ययनाभाव के कारण कवि उत्तम-शब्दशक्ति संयोजित नहीं कर पाते, यह सत्य सभी विद्वानपाठकों को गड़ेगा । फिर भी, मानवीय धरातल जुटाने की आशा में, देश की बेटियाँ और बेटियों को स्नेहादर देनेवाले सुसंस्कृत परिवार, इस संकलन की भूरि-भूरि सराहना करेंगे, श्री 'नयन' के रचनाधर्म को आदर देंगे । १९ मार्च १९५३ को जन्मे 'नयन' शीघ्र ही वरिष्ठ नागरिकों और वरिष्ठ साहित्यकारों की सूची में अपना स्थान बनानेवाले हैं, किन्तु यह संकलन वरिष्ठों जितना सम्मान उन पर बरसाने में सफल रहा है । ४०५, सरल कुटी गढ़ाफाटक, जबलपुर (म.प्र.) जून - जुलाई 2008 जिनभाषित 45 www.jainelibrary.org
SR No.524329
Book TitleJinabhashita 2008 06 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2008
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size6 MB
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