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________________ स्थिरता प्रदान करती है, जो ध्यान की सिद्धि और कर्मनिर्जरा । ९. उन्नमन दोष- शिर को बहुत ऊँचा उठाकर का साधन है। कायोत्सर्ग करना। कायोत्सर्ग का स्वामी और मुद्रा १०. धात्री दोष- जैसे धाय, बालक को दूध पिलाने मोक्षार्थी जितनिद्रकः सुकरण: सूत्रार्थविद् वीर्यवान् । | के लिए अपने स्तन को ऊँचा उठाती है, उसी प्रकार शुद्धात्मा बलवान् प्रलम्बितभुजायुग्मो सदास्तेऽचलम्। | अपने वक्षस्थल को ऊँचा उठाकर कायोत्सर्ग करना। ऊर्ध्वजुश्चतुरगुलान्तरसमाग्रांधिर्निषद्धाभिधा ११. वायस दोष- काक के समान चंचल नेत्र द्याचारात्ययशोधनादिह तनूत्सर्गः स षोढा मतः॥ के द्वारा सर्व और पार्श्वभाग में देखते हुए कायोत्सर्ग अनगारधर्मामृत / ८/७०। करना। अर्थात् मुक्ति का इच्छुक, निद्रा को जीतनेवाला, | १२. खलीन दोष- खलीन (लगाम) से पीड़ित शुभक्रिया और परिणामों से युक्त, आगम के अर्थ का | घोड़े के समान कायोत्सर्ग करना। ज्ञाता, वीर्यवान्, बलवान्, असंयत, सम्यग्दृष्टि आदि भव्य, | १३. गज दोष- जिसके कंधे पर महावत बैठा कायोत्सर्ग करनेवाला श्रेष्ठ पात्र कहा है। है ऐसे हाथी के समान ग्रीवा को ऊँची नीची करते हुए दोनों हाथों को नीचे लटकाकर और दोनों चरणों के मध्य में चार अंगुल का अंतर देकर, तथा उनके १४. कपित्थ दोष- हाथ में कपित्थ लिए के समान अग्रभाग को बिल्कुल समरूप में रखते हुए निश्चल खड़े | मुट्ठी बाँधकर कायोत्सर्ग करना। होकर कायोत्सर्ग करना चाहिए। हाथ, पैर, गर्दन, आँख, १५ शिर कम्पित दोष- शिर को पाने द्वारा भौं आदि को निश्चल रखना विशुद्ध कायोत्सर्ग मुद्रा है। कायोत्सर्ग करना। इससे ही कायोत्सर्ग की सिद्धि है। दोषसहित कायोत्सर्ग १६. मूक दोष- गूंगे पुरुष के समान अंगों से से कार्य की सिद्धि नहीं होती है। बैठकर भी कायोत्सर्ग | संकेत करते हुए कायोत्सर्ग करना। किया जा सकता है। १७. अंगुली दोष- अंगुली गिनते हुए कायोत्सर्ग कायोत्सर्ग के अतीचार- कायोत्सर्ग के बत्तीस | कर अतीचार हैं। १८. भूदोष- भ्रुकुटि नचाते हुए कायोत्सर्ग करना। १. घोटक दोष- घोड़े के समान एक पैर उठाकर | १९. दिग्वेक्षण दोष- दिशाओं को देखते हुए कायोत्सर्ग करना। कायोत्सर्ग करना। २. लता दोष- वायु से कम्पित लता के समान | २०. मदिरापायी दोष- मदिरापान से व्याकुल पुरुष शरीर के ऊपरी भाग को सर्व ओर घुमाते हुए कायोत्सर्ग | के समान घूमते हुए कायोत्सर्ग करना। करना। २१. ग्रीवोर्ध्वनयन दोष- ग्रीवा को अधिक ऊँची ३. स्तम्भ-कुड्य दोष- स्तम्भ, भित्ति आदि का | करके कार्योत्सर्ग करना। आश्रय लेकर कायोत्सर्ग करना। २२. ग्रीवाधोनयन दोष- ग्रीवा को अधिक नीची ४. पट्टिका दोष- पाटे आदि के ऊपर खड़े होकर | करके कायोत्सर्ग करना। कायोत्सर्ग करना। २३. निष्ठीवन दोष- कायोत्सर्ग करते हुए थूकना। ५. माला दोष- शिर पर माला का आलंबन लेकर | २४. वपुःर्पशन दोष- कायोत्सर्ग करते समय अंगों कायोत्सर्ग करना। का स्पर्श करना। ६. निगड दोष- बेड़ी से बँधे हुए पुरुष के समान २५. प्रपंचबहुल दोष- छल प्रपंच के भाव के टेढ़े पैर रखकर कायोत्सर्ग करना। | साथ कार्योत्सर्ग करना। ७. किरातयुवति दोष- दोनों हाथों से भीलनी के | २६. विधिन्यून दोष- आगमोक्त विधि से हीन समान जघनभाग को ढककर खड़े होकर कायोत्सर्ग करना। | कायोत्सर्ग करना। ८. शिरोनमन दोष- शिर को बहुत नीचे झुकाकर । २७. वयोऽपेक्षादिवर्जन दोष- अपनी आयु की कायोत्सर्ग करना। जून-जुलाई 2008 जिनभाषित 33 www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.524329
Book TitleJinabhashita 2008 06 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2008
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size6 MB
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