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________________ श्री सेवायतन विमलकुमार सेठी [ शाश्वत सिद्ध क्षेत्र श्री सम्मेदशिखर जी की पावनता की सुरक्षा एवं विकास की सार्थक पहल परम पावन तीर्थराज श्री सम्मेदशिखर जी जैन । के प्रति बदले। आधुनिक प्रगति, सभ्यता, संस्कार और संस्कृति एवं जैन धर्मावलंबियों के आस्था का एक विकास की किरण उनके दरवाजों तक पहुँचाना होगा महत्त्वपूर्ण केन्द्र है। वर्तमान अवसर्पिणी युग के बीस | ताकि उनका सर्वांगीण विकास हो सके, वे भी हमारे तीर्थंकरों एवं असंख्यात मुनियों की निर्वाणभूमि होने कारण आपकी तरह सम्मानपूर्वक जीवन जी सकें। यदि ऐसा इस क्षेत्र का कण-कण पूजनीय है। परंतु आज हम जैन | हम करेंगे तब जैन समुदाय एवं उसकी समृद्धि यहाँ धर्मावलम्बियों की उपेक्षा, उदासीनता एवं अकर्मण्यता | के लोगों के लिए ईष्या का विषय नहीं श्रद्धा और अनुराग के कारण इस तीर्थराज की पावनता एवं सौन्दर्यता विलुप्त | का विषय बन जायगा और तब स्वतः ही इस परम होती चली जा रही है। क्षेत्र के विकास की बात तो | पावन तीर्थराज की पावनता, सुरक्षा और विकास का मार्ग दर इसकी सुरक्षा भी संदिग्ध हो चली है। इस चिन्तनीय | सहजता से प्रशस्त हो जायगा। विषय को लेकर अभी तक इस दिशा में कोई सार्थक पूज्य मुनिश्री की उपर्युक्त प्रेरणा एवं सत्प्रयत्नों पहल नहीं हुआ। | से जैन समाज के सशक्त कर्णधार सक्रिय हुये और पुण्योदय से संत शिरोमणि प. पू. १०८ आचार्य | उन्होंने इस परम पावन तीर्थराज की पावनता सुरक्षा एवं श्री विद्यासागर जी महाराज के परम प्रभावक, प्रखर वक्ता, | विकास के लिए, पू. मुनिश्री की भावना के अनुरूप यवा शिष्य प. पू. १०८ मुनि श्री प्रमाणसागर जी महाराज | श्री सम्मेदशिखर जी के तलहटी में बसे, गाँवों के सर्वांगीण का ससंघ इस पावन तीर्थ पर वंदनार्थ आगमन हुआ। विकास एवं मानव सेवा के उपक्रम के रूप में 'श्री प. मनि श्री का ध्यान जब इस तीर्थराज की बदहाली | सेवायतन' संस्था का गठन करके एक सार्थक पहल एवं दयनीय स्थिति की ओर आकृष्ट किया गया, तो | की। उनका हृदय पीड़ा से भर गया और उनके अन्तःकरण | श्री सेवायतन ने पर्वतराज की तलहटी में बसे में इस तीर्थराज के उद्धार की भावना स्वतः उमड़ने लगी। | १४ गाँवों में से प्रथम चरण में २ गाँव बगदाहा एवं पूज्य मुनिश्री ने अपने विभिन्न मांगलिक देशनाओं | बीरेनगड्डा को गोद लेकर उनके विकास का कार्य प्रारंभ के माध्यम से हमें बताया की इस परम पावन तीर्थराज | कर दिया है। ग्राम बगदाहा को 'आचार्य विद्यासागर आदर्श की पावनता को अक्षुण्ण रखने तथा क्षेत्र की स्थायी सुरक्षा | ग्राम' नाम देकर उसके समग्र विकास का कार्य किया सुनिश्चित करने एवं विकास का मार्ग प्रशस्त करने हेतु | जा रहा हैं। इस ग्राम में शुद्ध पेय जल उपलब्ध कराने जैन समाज को स्थानीय ग्रामीण जनता के सर्वांगीण विकास | के लिए चापाकल लगाए गये है, साक्षरता अभियान चलाया के लिए जनहित के कार्यो में लगना होगा। स्थानीय जनता | गया है। निःशुल्क चिकित्सा सेवा प्रदान की जा रही के उद्धार बिना इस क्षेत्र का उद्धार असंभव है। पूज्य | है, बच्चों के लिए पाठशाला खोली गयी है। नव चेतना मुनिश्री ने कहा कि अब स्थानीय ग्रामवासियों को भिक्षा | शिविर लगाकर प्रौढ़ शिक्षा का अभियान चलाया गया नहीं व्यवस्था देनी होगी। उन्हें स्वावलम्बी बनाना होगा। जिसके परिणाम स्वरूप ९० प्रतिशत लोग साक्षर हो गये उन्हें शिक्षा और संस्कार देना होगा। उन्हें इतना समर्थ | हैं। सरकारी सहयोग से स्ट्रीट लैम्प, बिजली, संपर्क सड़क बना देना होगा की अब उनका हाथ लेने के लिए नहीं| प्रत्येक परिवार को सोलर लैंप आदि आधारभूत सुविधाएँ देने के लिए उठने लगे। आज आवश्यकता है यहाँ के | प्रदान की जा रही हैं। लोगों के जीवन स्तर को ऊँचा उठाने में जैन समाज | दूसरा गाँव 'विरेनगड्डा' को 'मुनि प्रमाणसागर सहभागी बने तथा उनके दुःख दर्द में शामिल हो ताकि | निरोगी ग्राम' नाम दिया गया है। इस ग्राम को भी बगदाहा कुंठा और निराशा से ग्रसित लोगों की सोच हम जैनियों ग्राम की तरह विकसित किय जा रहा है। संपूर्ण चिकित्सा मई 2008 जिनभाषित 25 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524328
Book TitleJinabhashita 2008 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2008
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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