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हो जायेगा और दूसरों को जीने देगा। आपका जीवन | योगी स्वधाम तज बाहर भूल, आता, स्वयं के लिये तो खतरा है ही नहीं, किन्तु दूसरे के
सध्यान से स्खलित हो अति कष्ट पाता। लिये भी तभी तक खतरा है जब तक आप प्रमादी
तालाब से निकल, बाहर मीन आता, बने रहेंगे आकुलता का कारण प्रमाद है, आज का समाज
होता दुःखी तड़पता मर शीघ्र जाता। इसी का द्योतक है। 'अप्रमत्तो भव', प्रमाद न करो, एक
बाहर आना ही उसके लिये अभिशाप का कारण क्षण के लिये भी प्रमाद मत करो, अप्रमत्त दशा में लीन
बना। तालाब से मीन (मछली) बाहर आ जाता है तो रहो। आत्मा में विचरण करना ही अप्रमत्त दशा का प्रतीक | तड़पता है, दुःखी होता है और मरण को प्राप्त हो जाता है, वहाँ राग नहीं, द्वेष नहीं, इसलिये वहाँ पर हिंसा | है। इसी प्रकार योगी भी क्यों न हो, भोगी की तो बात नहीं अहिंसा पल रही है इसकी जय घोषणा आचार्य | ही क्या, जिस समय वह अपनी सीमा का उल्लंघन कुन्दकुन्द ने समयसार में की है। बंधन में वही बंधेगा, कर देता है अर्थात् अप्रमत्तदशा को खोकर पागलपन का फँसेगा जो राग करेगा, द्वेष करेगा. मद करेगा. प्रमाद | अनुकरण करना प्रारम्भ कर देता है तो फिर ध्यान रहे करेगा और अपनी आत्मा से बाहर दूर रहेगा, चाहे वह |
कि योगी का बस नहीं कि वह कर्मबंधन को रोक संसार की किसी भी गति का प्राणी क्यों न हो। वह | सके। बाहर आना ही हिंसा है और अन्दर रहना ही देव भी हो सकता है, तिर्यंच भी हो सकता है, नारकी | अहिंसा है। अहिंसा की इतनी अमूल्य परिभाषा हमें अन्यत्र भी हो सकता है और मनुष्य भी हो सकता है। मनुष्य | नहीं मिलती और यहाँ पर आकर सब दर्शन रुक जाते में भी गृहस्थ हो सकता है, और त्यागी भी हो सकता | हैं, महावीर भगवान् की जयपताका आगे बढ़ जाती है। है, संत भी हो सकता है, ऋषि भी हो सकता है। जिस आत्मविजय ही एक मात्र विजय है, आत्मा को हिंसा समय वह अपनी राग-द्वेष प्रणाली को और भी जागरित से बचाने का यदि कोई रास्ता है तो उसे राग और द्वेष कर देता है, उस समय उससे हिंसा, स्वयं का पतन |
से भी बचा सकते हैं। या हत्या हुये बिना नहीं रहती।
आज भी अहिंसा का अप्रत्यक्ष रूप से प्रयोग होता देर-सबेर रात-दिन. चौबीस घण्टे या अप्रमत्तदशा | है, न्यायालय में। वहाँ पर भाव हिंसा को स्थान प्राप्त की ओर बढ़ते रहना. प्रारंभ करें तभी कल्याण है। उस | है, द्रव्य हिंसा को स्थान नहीं है। भाव हिंसा के आधार ओर बढ़ो जिस ओर प्रमाद को कोई स्थान नहीं हो, | से ही न्याय करते हैं। एक व्यक्ति ने बन्दूक से निशाना वहीं पर अहिंसा पल सकती है। हिंसा वहाँ पर पलती लगाकर गोली मार दी, निशाना मात्र सीखने के लिये है जहाँ पर प्रमाद हो 'प्रमाद' का अर्थ क्या है? यह
मारा था, निशाना चूक गया और गोली जाकर लग गई कोई सैद्धांतिक शब्द नहीं. जिससे अच्छा लग रहा हो
एक व्यक्ति को और उसकी मृत्यु हो गई। गोली मारने आप लोगों को।'प्रमाद' का अर्थ है बावलापन. उन्मत्तदशा. | वाले व्यक्ति को पुलिस ने पकड़ लिया और उससे पूछा आपे में न रहना। जब हाथी मदोन्मत्त हो जाता है तब | गया तुमने गोली मारी? 'मारी है किन्तु मेरा अभिप्राय वह आपे में नहीं रहता। सबसे अधिक खतरनाक चीज | कुछ और था' मैं निशाना लगाना सीख रहा था, निशाना है, आपे में नहीं रहना। आप किसी व्यक्ति को जान चूक गया और गोली लग गयी। उसका (इनटेनशन) सकते हैं, मौन धारण करा सकते हैं, सब कुछ करा
अभिप्राय खराब नहीं था। उसका संकल्प मारने का नहीं सकते हैं, किंतु जिसका मस्तिष्क आपे में नहीं हो उसके | था, उसका संकल्प विद्या सीखने का था, वह चूक गया, ऊपर आपका कोई अधिकार नहीं रहता। वह उत्तेजित | यह उसका प्रमाद हुआ। दूसरा व्यक्ति निशाना लगाकर है और उन्मत हो रहा है तो उसकी सरक्षा करना बहत | किसी की हत्या करना चाहता है, वह गोली मारता है. कठिन है। विदेशों में वैज्ञानिक विकास बहत हो रहा | गोली लगती नहीं और वह बच जाता है वह गोली मारने है किंतु फिर भी वहाँ आत्महत्यायें बहत अधिक होती | वाले को पुलिस को पकड़वा देता है। पुलिस पूछती हैं, ऐसा क्यों? इसमें कारण है- कि जो आपे में नहीं | है- तुमने गोली मारी? मारी तो है, पर उसे गोली लगी रहते हैं वही आत्महत्या करता है वही प्रमत्त बन जाता | कहाँ? लगी तो नहीं किन्तु मारी है कि नहीं, बंद कर
| दो इसे जेल में, क्यों भैय्या! जीव की हत्या तो हई
मार्च 2008 जिनभाषित 7
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