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कराती है। जीवन में प्रमाद, एक प्रकार से हत्या का | रह सकता। समर्थन है। जो कोई भी प्रमाद को हिंसा की कोटि में मेरे गृहस्थाश्रम की बात है, लगभग पन्दह वर्ष गिनने वाले हैं वे सब भगवान् महावीर के उपासक हैं। पूर्व की। माँ ने कहा- 'अंगीठी के ऊपर भगौनी में
अपना ज्ञान, अपना दर्शन ही प्राण है। जो कुछ | दूध है, उसे नीचे उतार कर-दो बर्तनों में निकाल लेना। अपना जीवन है, वही है उपयोग, वह राग के द्वारा, | एक बर्तन में दही जमाना है और एक में दूध ही रखना द्वेष के द्वारा, क्रोध-मान-माया-लोभ के द्वारा विकृत हो | है। छोटे बर्तन में जामण (दही जमाने हेतु) है और जाता है। 'उपयोग' ही, जीवन में क्या उपयोगी है, क्या | बड़े बर्तन में नहीं है, यह ध्यान रखकर छोटे बर्तन को अनुपयोगी है, इसका सही-सही भेद, सही-सही ज्ञान | आधा रखना और बड़े बर्तन को पूरा भर देना। दोनों करा सकता है।
को पृथक्-पृथक् कमरे में रख देना।' सारा काम तो ____ हिंसा दो प्रकार की होती है- प्रथम, द्रव्यहिंसा | कर लिया पर दोनों को पृथक् कमरों में न रखकर एक और द्वितीय भावहिंसा। शारीरिक गुणों का घात करना | ही कमरे में इक के ऊपर एक बर्तन रख दिया। परिणाम द्रव्य हिंसा है और आध्यात्मिक जीवन में व्यवधान करना | यह निकला कि प्रात: दोनों जमे हुये थे। एक में जामण भाव हिंसा है, यह स्व की भी हो सकती है ओर पर | था दूसरे में नहीं था फिर भी वह जम कैसे गया? की भी हो सकती है। जहाँ पर 'स्व' है वहाँ पर 'पर' परिवर्तन प्रत्येक समय, प्रत्येक प्राणी में, प्रत्येक भी नियमरूप से है। एक व्यक्ति रोता है तो वह दूसरे | द्रव्य में हो रहा है और अड़ोस-पड़ोस में उसका प्रतिबिम्ब को भी रुलाता है। एक व्यक्ति हँसता है तो दूसरा रोता | पड़ रहा है, प्रतिबिम्ब पड़े बिना रह नहीं सकता। जिसमें हुआ व्यक्ति भी हँस पड़ता है। फूल को देखकर बच्चा | जामण था वह जम गया और जिसमें जामण नहीं था बहुत देर तक रोता नहीं रह सकता। फूल हाथ में पकड़ा | वह भी जम गया। जब जड़ दूध में (संगति से) परिवर्तन दो तो वह रोता-रोता भी खिल जायेगा, हँस जायेगा और | हो गया तो क्या चेतनद्रव्य में परिवर्तन नहीं होगा, परिवर्तन माँ को भी हँसा देगा। हँसाये ही, यह नियम नहीं है | होगा तो एक दूसरे पर भी उसका प्रभाव पड़ेगा। एक किंतु जिस समय वह चक्षुरिन्द्रिय का विषय बनेगा उस हँसेगा तो दूसरे पर भी उसका प्रभाव पड़ेगा। वह भी समय परिवर्तन आये बिना नहीं रह सकता। कोई अकेला | हँसेगा हम इस रहस्य को समझ नहीं पाते। इसलिये रो रहा हो तो किसी दूसरे को क्या दिक्कत हो सकती | आचार्यों ने कहा है कि प्रमादी मत बनो, इससे तुम है? आप अपनी दृष्टि से कह सकते हैं कि मेरा रोना | द्रव्यहिंसा व भावहिंसा दोनों से बचोगे और इसके किसी दूसरे के लिये हानिकारक नहीं है किंतु आचार्य | परिणामस्वरूप दूसरे के लिये भी इस प्रकार रास्ता खुल उमास्वामी कहते हैं कि शोक करना/दीनता अभिव्यक्त | सकता है। वह भी अहिंसा के मर्म को समझ सकता करना सामने वाले व्यक्ति पर भी प्रभाव डाले बिना नहीं | है और महावीर भगवान् के पद-चिन्हों पर चलकर वह रहते।
भी वहाँ तक पहुँच सकता है जहाँ महावीर भगवान् पहुँचे आप बैठकर दत्तचित्त होकर खाना खा रहे हैं, | हैं। यह गहराई बहुत गहरी है, यह रहस्य इतना गुप्त किसी भी प्रकार के विकार-भाव आपके मन में नहीं | है कि आज तक हमारी बद्धि में भी वहाँ तव हैं, ऐसे समय आपके सामने, एक दस दिन का भूखा | है। व्यक्ति रोटी माँगता हआ. गिडगिडाता हआ. आ जाता | बद्ध कहते हैं कि प्राणियों को ब है तो आपमें परिवर्तन आये बिना नहीं रहेगा। उसका | हैं कि प्राणियों को बचाओ. नानक कहते हैं कि दसरे रोना आपके ऊपर प्रभाव डालता है, यह असातावेदनीय | की सुरक्षा करो, अमुक कहते हैं कि ऐसा करो-वैसा कर्मबंध के लिये भी कारण बन सकता है।
करो किंत भगवान महावीर कहते हैं ऐसा मत समझिये कि हम राग कर रहे | दसरे को बचाओगे? दसरे को बचाने जाओगे तो. और हैं, द्वेष कर रहे हैं, हिंसा कर रहे हैं, अपने आप में | किसी की हत्या कर दोगे, तम बचा नहीं सकते इसलिये तड़प रहे हैं, दूसरे के लिये क्या कर रहे हैं? आचार्य | स्वयं बचो। 'जीओ और जीने दो' तुम खुद जीओगे यही कहत है इनका प्रतिच्छाया, प्रतिबिम्ब पड़े बिना नहीं । पर्याप्त है, जो खुद जीयेगा वह दूसरे के लिये अबाधित
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पाते
- मार्च 2008 जिनभाषित 6
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