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________________ UPHIN/2006/16750 मुनि श्री क्षमासागर जी की कविताएँ काँधे सोच एक वे हैं जो ये सोचकर जी रहे हैं कि एक दिन मरने का तय है तो आज अभी ठाठ से जियो एक वे हैं जो ये सोचकर मर रहे हैं कि आज अभी यदि मौत आ जाए तो शान से मरो ये तो हम हैं जो इस सोच में न जी पा रहे हैं न मर पा रहे हैं कि वे क्यों शान से मर रहे हैं कि वे क्यों ठाठ से जी रहे हैं? मुझे मौत में जीवन केफूल चुनना है अभी मुरझाना टूटकर गिरना और अभी खिल जाना है कल यहाँआया था कौन, कितना रहा इससे क्या ? मुझे आज अभी लौट जाना है मेरे जाने के बाद लोग आएँ अरथी सँभालें काँधे बदलें इससे पहले मुझे खुद सँभलना है। मौत आये और जाने कब आये अभी तो मुझे सँभल-सँभलकर रोज-रोज जीना और रोज-रोज मरना है। 'अपना घर' से साभार स्वामी, प्रकाशक एवं मुद्रक : रतनलाल बैनाड़ा द्वारा एकलव्य ऑफसेट सहकारी मुद्रणालय संस्था मर्यादित, 210, जोन-1, एम.पी. नगर, भोपाल (म.प्र.) से मुद्रित एवं 1/205 प्रोफेसर कॉलोनी, आगरा-282002 (उ.प्र.) से प्रकाशित / संपादक : रतनचन्द्र जैन। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524326
Book TitleJinabhashita 2008 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2008
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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