SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 29
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लयबद्धता में कमी आती है। पड़ता है। सर्दी के कारण दिन में कम प्रकाश रहता रात्रि में कार्य करनेवाले लोगों की भी नियमित | है। ये सब कारक मेलाटोनिन हॉर्मोन के स्राव में सहायक जैविक घड़ी में व्यवधान आ जाता है और वे अनिद्रा होते हैं। अतः इन परिस्थितियों में नींद की अधिकता के शिकार हो जाते हैं। रात्रिजागरण करने वाले व्यक्ति | होती है। ये विकार अधिक समय तक बने रहने पर जब दिन में सोते हैं, तो उन्हें सलाह दी जाती है कि | कई प्रकार की बीमारियों को जन्म देते हैं। अतः इन्हें शयनकक्ष में पूर्ण अंधकार हो, ताकि मेलाटोनिन का | समय रहते दूर करने की सलाह दी जाती है। वर्तमान अधिकाधिक संश्लेषण हो सके और नींद चक्र पूरा हो। | समय में यौगिक आसनों एवं प्राणायामों के माध्यम से इसके अलावा जब कोई व्यक्ति किसी तीव्रगामी वाहन, जैविक घड़ी की नियमितता को बनाए रखने का प्रयास यानी हवाई जहाज में यात्रा करता है तो पूर्व-पश्चिम किया जा रहा है। यह प्रयास उत्साहवर्द्धक सिद्ध हो या पश्चिम से पूर्व दिशा की ओर जाते समय नियमित | रहा है। प्रकाशीय अवधि में बदलाव आ जाता है। . प्राचीन ऋषियों-मनीषियों के अनुरूप आज नियमित जैविक घड़ी बाधित होने से अनिद्रा, भूख | वैज्ञानिक मानने लगे हैं कि समय-विशेष के अनुसार की कमी, सिरदर्द और मानसिक तनाव आदि घर कर | कार्य करना चाहिए। क्योंकि उस समय शरीर में विशेष जाते हैं। एक बार इसके बाधित होने के पश्चात् इसके | हॉर्मोन का स्राव होता है। वैज्ञानिक कहते हैं कि किसी नियमित होने में 5 से 7 दिन लग जाते हैं। ऐसी स्थिति | अधिकारी विद्वान् से वैचारिक कार्य करने के लिए उसके में मेलाटोनिन दवाओं का भी प्रयोग किया जाता है। | पास प्रात:काल जाना चाहिए। किसी को यदि भावनात्मक परिवर्द्धन-विज्ञान के विशेषज्ञों ने अपने अनुसंधान रूप से अपने पक्ष में करना हो, तो उससे संध्या समय में पाया है कि शिशु एवं वाल्यावस्था में मेलाटोनिन का | मिलना चाहिए। ऐसे अनेक काल एवं समय हैं, जिन्हें स्तर अधिक होता है. परंत अवस्था एवं उम्र के बढने | जान समझकर उनका कशलतापूर्वक उपयोग किया जाता के साथ-साथ पीनियलग्रंथि से इसके स्राव की प्रक्रिया | है। इस तरह जैविक घड़ी जीवन के कई अनछुए पहलुओं धीमी पड़ जाती है। इसी कारण बच्चों को वृद्ध लोगों | | को समेटे हुए है। उन्हें अनावृत कर यदि इसका उपयोग की अपेक्षा अधिक एवं अच्छी नींद आती है। वृद्धों का | किया जा सके तो इसके कई लाभ हो सकते हैं। प्राकृतिक अपनी उम्र के प्रति नकारात्मक भाव शारीरिक के साथ | | जीवनचर्या ही इसका प्रमुख आधार है। अतः हमें संयमित, मानसिक रोगों को जन्म देता है, जिससे जैविक घड़ी | | सहज, सरल प्राकृतिक जीवनचर्या को अपनाना चाहिए, प्रभावित होती है। इस उम्र में सबसे अधिक अनिद्रा | ताकि जैविक घड़ी सुचारु रूप से अपना कार्य कर सके। की शिकायत रहती है। 'अखण्डज्योति' 2006 से साभार ___ऋतुजन्य परिस्थिति में जैविक घड़ी प्रभावित होती प्रस्तुति- निर्मलकुमार पाटौदी है। शीत ऋतु में रातें लंबी और दिन छोटे होते हैं। 22, जाय बिल्डर्स कॉलोनी, इस कारण लोगों को अधिक समय तक अंधेरे में रहना। इन्दौर (म.प्र.) अपना स्वाभिमान रत्नकरण्डक श्रावकाचार की कक्षा में रात्रिभोजन-त्याग का व्याख्यान करते हुए आचार्य श्री ने बताया कि पहले जैनी लोग राजदरबार में कोषाध्यक्ष जैसे बड़े-बड़े विश्वस्त पदों पर नियुक्त किये जाते थे। उन जैनी भाइयों को सारे राज्य में विश्वस्त एवं ईमानदार माना जाता था और रात्रि होने से पूर्व ही उन्हें राज्यसभा से छुट्टी मिल जाती थी, क्योंकि उनका रात्रिभोजन का संकल्पपूर्वक त्याग रहता था। इसलिए राजा भी उनकी धर्म, नियम के प्रति निष्ठा देखकर उनका उन नियमों को पालन करने में सहयोग देते थे। पहले जैनियों में संकल्प के प्रति इतनी आस्था और निष्ठा रहती थी, लेकिन बड़े दुःख की बात है कि आज जैनी भाई स्वयं कह देते हैं कि मुझे रात में सब चलता है और यदि रात्रि भोजन त्याग का नियम भी लेते हैं तो बाहर की छूट रखते हैं। यह एक अफसोस की बात है कि आज जैनी स्वयं अपना स्वाभिमान खोते चले जा रहे हैं। मुनि श्री कुन्थुसागरकृत 'संस्मरण' से साभार - मार्च 2008 जिनभाषित 27 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524326
Book TitleJinabhashita 2008 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2008
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy