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________________ अनेक रहस्यों को समेटे है जैविक घड़ी जैविक घडी प्रकृति का अनमोल उपहार है। नियत । होता है, अतः इसे "निशा हॉर्मोन" कहा जाता है तथा समय पर नींद आना, भूख लगना आदि शारीरिक क्रियाओं | पीनियल ग्रंथि को 'तृतीय नेत्र' की संज्ञा दी जाती है। का संचालन इसी घड़ी के द्वारा होता है। जैविक घड़ी इस हॉर्मोन के नियमित स्राव से मानवशरीर में नियत शारीरिक गतिविधियों को नियंत्रित करती है और यह | लयबद्धता का प्रादुर्भाव होता है। यह लयबद्धता दो प्रकार मेलाटोनिन नामक हॉर्मोन से नियंत्रित होती है। यह घड़ी | की होती है। प्रथम दैनिक प्रक्रिया जैसे-सोना, उठना, नियत समय एवं परिस्थिति के अनुरूप हमारी मानसिक | भूख लगना आदि। इसे 'सरकेडियन लय' कहते हैं। एवं भावदशा को विनिर्मित करती है, जिसकी सटीक | ऐसी ही प्रक्रिया जब वर्षभर में दोहराई जाती है तो इसे जानकारी व्यवहार-जगत में लाभदायक सिद्ध हो सकती | 'सरकेअनूअल लय' कहते हैं। मानव जीवन की शारीरिक है। अतः जैविक घडी हमारे शारीरिक क्रियाकलापों को प्रक्रियाएँ अपने ढंग से पुनरावृत्ति करती हैं। यह प्रक्रिया संचालित करने के साथ-साथ हमारे व्यवहार-जगत को | दिन और वर्ष में भी होती है। भी प्रभावित करती है। जैविक घड़ी अनेक रहस्यों को ऑस्ट्रेलिया में ट्रोवे विश्वविद्यालय के डॉ० जैनिरेडसमेटे हुए है। मान और उनके सहयोगियों ने अपने प्रयोग-परिणामों से मनुष्य के शरीर की जैविक घड़ी के अनुसार | कुछ रोचक तथ्यों को उद्घाटित किया है। इनके अनुसार व्यक्ति की शरीर-कायिकी 24 घंटे के अंतराल में बदलती मेलाटोनिन का प्रभाव निद्राकारी होने के साथ-साथ रहती है। इस घड़ी को नियमित-नियंत्रित करने के लिए | हिप्नोटिक भी होता है। यह मनुष्य के स्वभाव को शांत मेलाटोनिन हॉर्मोन की भूमिका महत्त्वपूर्ण है। जीवन की | और उदारवादी बनाता है। मानवीय व्यवहार के इस पक्ष दैनिक क्रियाओं को सुचारु रूप से संचालित करनेवाले | को मेलाटोनिन से जोड़कर देखनेवाले वैज्ञानिकों का तो । इस हॉर्मोन की खोज येल विश्वविद्यालय के त्वचा विज्ञान | यहाँ तक कहना है कि यह अँधेरे में स्रवित होता है के विशेषज्ञ डॉ. आरोन लरनर ने सन् 1958 में की थी। और ध्यानी, ऋषि-मुनि आदि अँधेरे कक्ष में दीर्घकाल मेलाटोनिन को एन-एसीटायल-5 मैथाक्सी ट्रीप्टामाईन भी | तक साधना करते हैं, जिससे उनके रक्त में इस हॉर्मोन कहते हैं। इसकी खोज से मानव जीवन का एक अनछुआ | की प्रचुरता होती है। इसी वजह से ये सामान्य व्यक्तियों पहलू उजागर हुआ। डॉ० लरनर के अनुसार यह रसायन | से अधिक उदारवादी होते हैं। त्वचा में उपस्थित कोशिकाओं में वर्णकों के संघनन को | जैविक घड़ी हमारे दैनिक जीवन के क्रिया-कलापों बाधित करके त्वचा के रंग को गहरा होने से रोकता | की निरंतरता को नियमित करती है। यह हमारे स्वस्थ है। इसकी खोज के पश्चात् इस हॉर्मोन का प्रयोग विभिन्न | जीवन का प्रतीक एवं पर्याय भी है। यह कई कारणों प्राणियों एवं मनुष्यों में किया गया। प्रयोग-अध्ययन से से प्रभावित होता है। इसके प्रभाव से परिणाम बड़े घातक पता चला कि मेलाटोनिन हॉर्मोन पीनियल ग्रंथी से स्रवित | होते हैं। आज के जैवविदों के अनुसार आधुनिक जीवन होता है। यह ग्रंथि मस्तिष्क के मध्य भाग में स्थित एक | की अव्यवस्थित एवं असंयमित जीवनशैली इसके व्यतिक्रम अंतःस्रावी ग्रंथि है, जो मटर के दाने के समान होती | में सबसे बड़ी भूमिका निभाती है। सोने के समय पर है। कुछ मात्रा में मेलाटोनिन नेत्र के रेटिना से भी स्रवित | जागना, खाना और इसके विपरीत कार्य करने वाले समय होता है। | पर नींद लेना आदि जैविक घड़ी की लय को तोड़तेमेलाटोनिन के स्रवण में एक विशेष प्रकार की | मरोड़ते हैं। अमेरिका के टेक्सास यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर दिन-रात की लयबद्धता पाई जाती है। नेत्र की प्रशासकीय | जे. राइटर का कहना है कि यह निषेधात्मक विचारों से झिल्ली सूर्य के प्रकाश से उद्भाषित होती है। इसकी भी प्रभावित होती है। इनके अनुसार निषेधात्मक विचार संवेदना मस्तिष्क तक पहुँचती है और मेलाटोनिन का | हमारी शारीरिक क्रियाओं को सबसे पहले प्रभावित करते स्रवण बंद हो जाता है। यह केवल रात्रि में ही स्रवित | हैं और इसके परिणामस्वरूप हमारी जैविक घड़ी की - मार्च 2008 जिनभाषित 26 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524326
Book TitleJinabhashita 2008 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2008
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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