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पूरी करवै सवई की आसा, वे जानत मन की भाषा । मन के हरत सबई विकार, सरन चल कुण्डलपुर बाबा ॥ बड़े बाबा की भक्ति में लोग इतने सराबोर हैं कि उन्हें सपने में भी बड़े बाबा मुक्ति का मार्ग बताते हुए दिखाई देते हैं । 'निपुण सराफ' ने अपने इस गीत में इन्हीं भावों को प्रस्तुत किया है
रात सपने में मोरे आय गये री सबसे बड़े बाबा | सोते से मोय जगाय गये री, कुण्डलपुर के बाबा ॥ मिथ्यातम में सोई पड़ी थी ।
समकित की लौं लगाय गये री कुण्डलपुर के बाबा ॥ अब तक करत रई काया की पूजा ।
चेतन की पूजा सिखाए गये री कुण्डलपुर के बाबा ॥ माया के पीछू भई ती दीवानी ।
आखों की पट्टी हटाय गये री कुण्डलपुर के बाबा ॥ जब मैंने निपुण पकर लइ पैंया ।
मुकति का मारग बताये गये री कुण्डलपुर के बाबा ॥
दूर-दूर के गाँव-देहात के सभी समाज के लोग कुण्डलपुर का वार्षिक मेला तथा दीपावली जैसे अनेक
कल्लु चमड़ी जाये पे दमड़ी न जावै ।
एक और भावयुक्त गीत -
नइया कोउ को कोउ सहाई, सबरे स्वारथ के हैं भाई । विपत समय एक तुमाय बिना, कोउ न देत दिखाई ॥ मरे बिना सुरग ने मिल है, मंत्रर तुमी से पाई । सबरे मिल लोग लुगाई, बड़े बाबा से आस लगाई ॥ नइया कोउ को कोउ सहाई ।
विशेष अवसरों पर बड़े बाबा के दरबार में अपनी हाजिरी ★ लगाने जरूर आना चाहते । साथ ही अपनी समस्याओं और शिकायतों तथा अपनी भावनाओं को अपने लोकगीतों में व्यक्त करते हुए चलते हैं
चलो चलिए कुण्डलपुर खों आज,
उतै तो बड़ी भीर जुरी ।
जा देखो जा ठाड़ी फसल है,
बिटिया को करने काज उतै तो बड़ी भीर जुरी । को लक्ष्य करके गाया जाता हैके दद्दा खों को समझावै,
मोरे आरत के भये हैं भाव,
लंगुरिया चलो सु आरति कर आइये 1 वे तो सज-धज के बस आये है, उनने मंगल दीप जलाये हैं । पग घुंघरुं की सुन झंकार, लंगुरिया चलो सु आरति कर आइये । उनकी महिमा को कवि कोई गा न सके उनसे हारे हैं, सूरज चांद, लंगुरिया, चलो सो आरति कर आइये ॥
महापर्व दीपावली के अवसर पर 'लाडू' चढ़ाने के लिए यहाँ हजारों की संख्या में लोग पहुँचते हैं तथा विशेष भजन - आरती आदि के कार्यक्रम होते हैं । सन्मतिमंडल
यहाँ बच्चों का पहला मुंडन कराना शुभ माना जाता है । अतः बच्चों के मुंडन के समय गाये जानेवाला एक लोकगीत चिर- नवीन है। इसमें बड़े बाबा से उलाहना के रूप में भाव व्यक्त है कि बाबा आप स्वयं तो बड़ेबड़े वालों वाले हैं, परन्तु हमारा मुंडन क्यों? -
कुण्डलपुर के बाबा जटाधारी मोरी पकर चुटइया मुड़ा डारी । कुण्डलपुर के बाबा कलाधारी मोड़ा की चुटइया मुड़ा डारी ॥
बड़े बाबा के अभिषेक पूजन के साथ-साथ सायंकालीन भव्य आरती का बहुत महत्त्व है। यहाँ कहा सुना जाता है कि मनुष्य तो मनुष्य देवता तक बड़े बाबा की आरती करने आते हैं। कुछ लोगों का कहना है कि आधी रात के सन्नाटे में बड़े बाबा के बंद मंदिर से संगीतमय नृत्य गीतादि की आवाजें सुनी जाती रही हैं। इस तरह बड़े बाबा का बहुत अतिशय माना जाता है। लोकगीतों की अनेक राग रागनियों में से एक विशेष राग को 'लंगुरिया' कहा जाता । इसके
गाने की एक विशेष लय होती है । बड़े बाबा की महाआरती
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उनमें के मंसेलू आय । उतै तौ बड़ी भीर जुरी । बड़े बाबा मात्र जैनों के ही नहीं, बल्कि जनजन के इष्टदेव हैं। कितने ही घर परिवार उन्हें अपना कुलदेवता पीढ़ियों से मानते आ रहे हैं। उनका हर शुभकार्य बड़े बाबा का नाम लेकर प्रारंभ होता है और हर कार्य की सफलता का भरोसा बड़े बाबा पर है। देखिए क्या चाहते हैं लोग अपने इष्टदेव बड़े बाबा सेमुगलबादशाह डर के भागे, छत्रसाल जू ने पाँव पखारे । आ जइयो काम हमारे, बड़े बाबा आ जइयौ काम हमारे ॥ बैठे हाथ पे हाथ पसारैं, नासा पर दृष्टि हैं धारें। सबरें करम तुम से हैं हारे, बड़े बाबा आ जइयौ काम हमारे । खमरिया, का यह गीत प्रस्तुत हैं
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फरवरी 2008 जिनभाषित 23
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