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साधु लौकिक जनों के साथ संपर्क से बचते हैं। । चलते थे। जिससे मुनिजन और गृहस्थ दोनों स्वकल्याण
आज तो साधुगण शुभोपयोगी ही हैं। आचार्य | करते थे। लोग आपसे सविनय यह जानना चाहते हैं विद्यासागर जी शुभोपयोगी श्रमणों का कर्तव्य पालन करते | कि आप बिना बताये विहार कर जाते हैं। क्या बता हैं अतः लौकिक जनों के संपर्क से बचते है। आज | देने से महाव्रत में क्षति होगी?" के साध तो प्रायः जिनपजा के उपदेश में ही प्रवृत्ति | महाराज ने इसका कोई उत्तर नहीं दिया, क्योंकि न करके जिन पूजा में भी प्रवृत्ति करते हैं। प्रोग्राम बताकर, श्रावक प्रतिमा लेकर साथ में चले यह
प्रतिदिन देवदर्शन, देवपूजा, जिन मंदिर व मूर्तियों | तो इसी युग की प्रवृत्ति है। आज मुनिगण स्वयं अपने के निर्माण में श्रावको का कर्त्तव्य श्रावकाचार में कहा | साथ मूर्तियाँ रखते हैं, जबकि आगम में इस तरह का है, किन्तु आज तो वह सब साधुगण भी करते हैं। उनका | कोई उल्लेख नहीं है। मुनि स्वयं आत्मस्वरूप के ज्ञाताउपयोग आत्मोन्मुख न होकर वहिर्मुखी होता है। दृष्टा होते है तथा आत्मस्वरूप को जानने के लिए ही
किन्तु आचार्य विद्यासागर जी पूजा-पाठ के प्रपंच | श्रावक देव दर्शन करते हैं। जब साधुगण जंगलों में रह में नहीं हैं। वे तो अपने शिष्यों को पढ़ाते हैं, स्वयं | कर विहार करते थे, तब यह सब प्रवृत्ति नहीं थी। आज पढ़ते हैं और श्रावकों को दर्शन और ज्ञान का सदुपदेश | तो साधुगण मात्र शरीर से नग्न होते हैं, किन्तु उनके देते हैं।
अन्तरंग में अपनी पूजा-प्रतिष्ठा की भावना रहती है। उन्हें पं० सुमेर चन्द्र जी दिवाकर ने लिखा था | आचार्य विद्यासागर जी में ऐसी भावना नहीं है, इसी 'आपके द्वारा जैन-अजैनों में धर्म की प्रभावना हो रही | से वे चतुर्थकाल के मुनि-तुल्य हैं। है। लोग पूछते हैं- "आचार्य शांतिसागर जी महाराज बाहर
प्रस्तुति- डॉ० श्रीमती ज्योति जैन, खतौली जाते समय अपना प्रोग्राम कह दिया करते थे। उनके
सह सम्पादिका - 'जैन सन्देश' संघ में चलनेवाले श्रावक समूह जिनप्रतिमा को लेकर
समाधिमरण-पूर्वक देहत्याग | के जुटाने में सहयोग किया। ४७ भाइयों एवं बहनों हिम्मतनगर (गुजरात) निवासी धर्मप्रेमी श्री सुरेश | ने जैनधर्म के प्रसिद्ध ग्रंथ छहढाला, द्रव्यसंग्रह, तत्त्वार्थसूत्र गाँधी की पूजनीय माताश्री ब्र० चम्पावेन भजीलाल गाँधी | | का अध्ययन किया। परीक्षा के बाद प्रथम, द्वितीय ने दिनांक 29.10.07 को प्रभुस्मरण करते हुये देहत्याग एवं तृतीय स्थान प्राप्त प्रशिक्षणार्थियों को विशेष पुरस्कार कर दिया। आप सप्तम प्रतिमाधारी विदुषी महिला थीं। | एवं सभी को प्रोत्साहन पुरस्कार से सम्मानित किया कई वर्षों से आप साधना में लगी हुई थीं। प्रभु से | गया। कामना है कि आपको सद्गति प्राप्त हो।
केसरीभाई परिख विद्यासागर तपोवन, तारंगाजी में शिविर सम्पन्न हुआ
विद्यासागर तपोवन, तारंगाजी, परम पूज्य आचार्य श्री १०८ विद्यासागर जी एवं
श्री विमलचन्द्र जी गोधा का निधन । १०८ सुधासागर जी महाराज के आशीर्वाद . दिल्ली निवासी श्री विमलचन्द्र जी गोधा ने 76 से, तपोवन ट्रस्ट के सक्रिय सहयोग से डॉ० नेमिचंद | वर्ष की आयु में शान्त-निराकुल परिणामों सहित सर्व जी जैन खुरई के मार्गदर्शन में, सर्वोदय आध्यात्मिक | सम्पन्न परिवार जनों से निर्मोही हो, इस मनुष्यपर्याय जैन धार्मिक शिक्षण शिविर दिनांक २१.१२.०७ से | को सार्थक करते हुये 30 नवम्बर, 2007 को दोपहर ३१.१२.०७ तक सम्पन्न हुआ।
2:30 बजे शरीर का परित्याग किया। शिविर में शिक्षण में सहयोग सांगानेर (जयपर. | आप तीर्थ क्षेत्रों, सस्थाओं एवं मन्दिरों के उत्थान राजस्थान) के आचार्य श्री १०८ ज्ञानसागर छात्रावास | हेतु बिना पद एवं नाम की आकांक्षा के, उदारभाव के छात्र पंडित भरत जी, पंडित वैभव जी शास्त्री | से जीवन भर कार्य करते रहे। आप परम मुनिभक्त एवं तपोवन के ही बाल ब्र० पंडित चेतन जी ने दिया। | थे। जिनभाषित परिवार शोकसन्तप्त परिवार के प्रति बाल ब्र० सुनील जी ने शिविर के लिये उचित साधनों | समवेदना प्रकट करता है।
- फरवरी 2008 जिनभाषित 17
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