SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 24
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ माता बहिन सुता पहचानो डॉ० ज्योति जैन (खतौली) सुबह होते ही अखवार की सुर्खियाँ पढ़कर लगता | परम आवश्यकता है। है कि क्या हो गया है हमारे पारिवारिक, सामाजिक मूल्यों आज हम पाँचों इन्द्रियों और मन के विषयों के कों? मानवीय संबंधों को जोड़ने वाले, परिवार को सूत्र | दास होते जा रहे हैं, यही कारण है वाणी और काय में बाँधने वाले सभी रिश्ते तार-तार हो टूटकर अपनी की अपेक्षा मन से अधिक पाप करते हैं। वस्तुतः देखा मर्यादायें खोते जा रहे हैं। सुर्खियाँ भी अखवारों की ऐसी | जाए, तो शारीरिक व्यभिचार न भी करें, तो भी मन कि लगता है कि हम किस संवेदनहीन समाज की ओर | कहाँ-कहाँ भकटता, किस-किस से संबंध नहीं बनाता? बढ़ रहे हैं। मनुष्य का इससे बड़ा पतन क्या होगा, जब एक स्वथ्य मानसिकता बनाते हुए अपने भावों हम पढ़ते हैं कि 'बाप ने किया बेटी को गर्भवती' | व परिणामों में निर्मलता, पवित्रता रखते हुए इन्द्रियसंयम एक महिला के साथ हुआ सामूहिक बलात्कार, 'कलयुगी | अपनाना ब्रह्मचर्य हैं। मन में विकार आए तो विचारों भाई ने किया बलात्कार', 'दो वर्ष की मासूम हुई हैवानियत | में विकृति आती ही है। और फिर सही गलत का विवेक की शिकार' आदि न जाने कितनी घटनाएँ रोज पढ़ने- भी नहीं रह पाता अतः अच्छे दोस्तों और अच्छी संगति सनने को मिलती है। आज पुरुष की हवस का शिकार | में रहें सदैव स्वस्थ भावना रखें, भक्ति, पूजा-पाठ स्वाध्याय, बनने के लिए बालिग होना जरूरी नहीं रहा गया है। योग, ध्यान, प्राणायम आदि से भी भावों में निर्मलता उसका स्त्री रूप होना ही पर्याप्त है। नारी के यौन उत्पीड़न आती है और विषयों में आसिक्त कम होती है। अतः का इतिहास मानव जीवन के इतिहास की तरह ही पुराना | इनका पालन करें। है पर आज जिस तरह से रिश्तों की मर्यादाएँ टूट रही शीलव्रत स्त्री पुरुष का श्रृंगार है। शील का सदैव हैं, और संयमहीनता सामने आ रही है वह हमारी शून्य | पालन करना चाहिए। शील के अठारहहजार भेद बताए होती संवेदनाओं को दर्शा रही है। गए हैं। और शील की नौ बाड़ों के द्वारा रक्षा करने यह भी सच है कि मनुष्य काम-भोग का दास | के सूत्र भी बताए गए हैं। जो इनका पालन करता है, बना हुआ है। काम का आकर्षण उसके जीवन को भोगमय | वही ब्रह्मचर्य का पालन करता है। आचार्यों ने गहस्थें बना रहा है। यह भी सच है कि काम वासनाओं से | को 'स्वदार संतोष व्रत' का पालन करने को प्रेरित किया कभी तृप्ति नहीं मिलती और मनुष्य ही संसार का ऐसा | है। अपनी स्त्री से संतोष रखना और अन्य को माँ बहनप्राणी है जिसके काम सेवन का कोई समय निश्चित | बेटी के समान समझना स्वदार व्रत (ब्रह्मचर्याणुव्रत) है। नहीं है। समस्त प्रकार की वासनाओं में कामवासना तीव्रतम | हमारी संस्कृति में संयम को ही जीवन कहा गया है। है। अन्य इन्द्रियों का दमन करना तो सरल है, किंतु 'संयमः खलु जीवनम्' कामेन्द्रिय को वश में करना कठिन है। काम और भोग हमारे ग्रंथों में सैकड़ों कथानक हैं, जो हमें बताते भटकाने वाले तत्त्व हैं। हैं, कि किस तरह ब्रह्मचर्य धर्म का पालन कर लोगों इन्द्रियसंयम के कामावासना को जीता जा सकता | ने अपने कल्याण का मार्ग प्रशस्त किया। ब्राह्मी-सुंदरी है। इन्द्रिय संयम ही ब्रह्मचर्य है। आचार्यों धर्म गुरुओं ने ब्रह्मचर्यव्रत धारण किया और आज भी प्रेरणा दे रही ने कामवासनाओं को जीतने के लिए ब्रह्मचर्य का उपदेश | हैं कि किस तरह नारियाँ यह व्रत धारण कर आत्म दिया है। 'ब्रह्मणि आत्मनि चरणं ब्रह्मचर्यम्' स्वयं की कल्याण की ओर बढ़ सकती हैं। महासती सीता ने अग्नि आत्मा में रमण करना ब्रह्मचर्य है। जैन परम्परा में इसे परीक्षा देकर अपने शील धर्म को दिखाया। सेठ सुदर्शन सबसे बड़ा व्रत कहा गया है। दस धर्मों में इसे सबसे | ने स्वदार-संतोषव्रत का पालन किया तो शूली सिंहासन बड़ा धर्म कहा गया है। जिस तरह रोग से मुक्त होने | बन गई। विजय सेठ, विजया सेठानी, जिन्होंने अलगके लिए औषधि का सेवन करना आवश्यक है, उसी | अलग शुक्लपक्ष-कृष्णपक्ष के ब्रह्मचर्यव्रत का पालन किया तरह भवरूपी रोग से मुक्त होने के लिए ब्रह्मचर्य की | और जीवन पर्यंत उसका निर्वाह किया। देशभूषण, - जनवरी 2008 जिनभाषित 22 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524324
Book TitleJinabhashita 2008 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2008
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy