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________________ केवल शान-शौकत से नहीं बनता अच्छा व्यक्तित्व डॉ. एस. बी. सिंह टीवी-फिल्मों से घिरा बचपन, भागदौड़ में लिप्त अभिभावक, आखिर इनके बीच एक बच्चे का सकारात्मक विकास कैसे हो? लेखक वरिष्ठ मनोवैज्ञानिक हैं और मनोविज्ञान व व्यवहारशास्त्र के विशेषज्ञ हैं। . समाज में जो कुछ भी घटता है, चाहे वह अपराध | नहीं। बच्चा क्या कर रहा है, कहाँ जाता है, कैसे रहता हो या कुछ और उसका सीधा असर बच्चे के मस्तिष्क | है? उसे यह पता करने का समय ही नहीं है। इतने समेत उसकी सोच पर पड़ता है। यही वजह है कि अभावों और उपेक्षा में पला-बढ़ा बच्चा बड़े होने पर सामाजिक घटनाओं से जुड़ी मनोवैज्ञानिक विकृतियाँ अब उच्च वर्ग के लोगों के लिए आक्रामक हो सकता है। स्कूली बच्चों को भी निगलने लगी हैं। यौन शोषण एवं समाज और मान्यताओं के प्रति बगावत कर सकता है। यौन अपराध अपनी सीमाएँ लाँघ रहे हैं, तो संवेदनहीन | उनको लूट मारकर अपना वर्चस्व स्थापित करना चाहता नई पीढ़ी से तंग आकर वृद्धाश्रम की शरण लेनेवाले | है। इससे उसको सुकून और शांति मिलती है। मनोवैज्ञानिक माँ बाप की संख्या भी बढ़ रही है। इसे देख स्वाभाविक | दृष्टि से ऐसे बच्चों के अवचेतन मन में शक्ति..प्रदर्शन प्रश्न उठता है कि नई पीढ़ी की इस वर्तमान स्थिति | एवं प्रभुत्व स्थापित करने की इच्छा होती है। यह तब और भविष्य के लिए कौन उत्तरदायी है? | है जब सामाजिक, राजनीतिक एवं आर्थिक कारणों से मनोविज्ञानी मानते आए हैं कि यदि बच्चे का विकास | समाज में अमीरी-गरीबी की खाई बढ़ती जा रही है। समुचित ढंग से नहीं हुआ या उसके सामान्य विकास दूसरी ओर हैं आज के व्यस्त आधुनिक माँ-बाप, में अवरोध उत्पन्न हुए तो उसका व्यक्तित्व नकारात्मक | जो भौतिकता में इतने लिप्त हैं कि उनको पैसा कमाने ढंग से प्रभावित होता है। माँ-बाप के बीच झगड़े, तलाक, | की सनक चैन से रहने ही नहीं देती, नतीजतन बच्चों अलगाव आदि का प्रभाव बच्चे के कोमल मन पर पड़ता | को माँ-बाप का सान्निध्य नसीब नहीं हो रहा है। ऐसे है और वह असुरक्षा की भावना, आत्मविश्वास की कमी, | माँ-बाप भूल जाते हैं कि सान्निध्य एवं साहचर्य से ही हीनता एवं अस्थिरता का शिकार हो जाता है। हाल ही | प्रेम की उत्पत्ति होती है। बच्चों को सुबह-सुबह सोते में हुए कई मनोवैज्ञानिक अध्ययनों से यह पता चला | से उठाकर, मुँह धुलाकर, खाना टुसाकर बोरे की तरह है कि यदि माँ-बच्चे का संबंध सुरक्षात्मक और प्रेमपूर्ण | बस में डाल दिया जाता है। विद्यालय से आते ही फिर है तो बच्चे के व्यक्तित्व में सकारात्मक गुणों का विकास | खिला-पिलाकर सुला दिया जाता है, क्योंकि शाम को होता है। ऐसा न होने पर वह किशोरावस्था या युवावस्था ट्यूशन पर जाना है। पुनः आना, खाना, पीना और सो में क्रोध, आक्रामकता एवं अपरिपक्वता से ग्रसित हो जाना। जहाँ माँ-बाप दोनों नौकरी में हैं वहाँ बच्चों का जाता है। एक अन्य मनोवैज्ञानिक विचारधारा के अनुसार पालन-पोषण नौकरों द्वारा होता है या बहुत यांत्रिक ढंग मनुष्य का सारा व्यवहार अर्जित है। परिवार के पालन- | से। यह विचारणीय है कि ऐसे वातावरण में यदि बच्चा पोषण का तरीका और घर का वातावरण बच्चे के व्यक्तित्व पलेगा-बढ़ेगा तो बिलकुल रोबोट हो जाएगा। इसमें यदि एवं व्यवहार का कारण बनता है। चाबी गड़बड़ लग गई तो वह या तो विध्वंसक हो जाएगा आज समाज का एक वर्ग आर्थिक समस्याओं से | या फिर चलेगा ही नहीं। जूझ रहा है। उसे दो वक्त की रोटी जुटाने के लाले सीखने का एक और सिद्धांत है जिसे हम आदर्श पड़े हैं। ऐसे में उसे बच्चे के भविष्य से कोई सरोकार | का अनुकरण कहते हैं। इसके मुताबिक बच्चे के सामने ही नहीं रह गया है। उसे कुछ सोचने की फुर्सत ही जो आदर्श होते हैं वह उन्हीं का अनुकरण करके सीखता नहीं है। सिवाय इसके कि घर में चूल्हा जलेगा कि | है। आज के दौर में जो जितना भ्रष्ट वह उतना ही जनवरी 2008 जिनभाषित 20 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524324
Book TitleJinabhashita 2008 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2008
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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