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________________ द- सियाटल कला संग्रहालय, सियाटल इस संग्रहालय में सबसे महत्त्वपूर्ण भगवान् पार्श्वनाथ इस संग्रहालय में भी मध्य प्रदेश से प्राप्त कई | की त्रितीर्थिक प्रतिमा है, जो राजस्थान में नवमी सदी मध्यकालीन जैन प्रतिमाएँ विद्यमान हैं। इसके अतिरिक्त | में बनी प्रतीत होती है। इसमें मध्य में पार्श्वनाथ ध्यान यहाँ गुजरात से मिली भगवान् कुन्थुनाथ की एक पंचतीर्थी | मुद्रा में विराजमान हैं सर्प के फणों की छाया में, और है, जिसकी पीठिका पर सन् १४४७ ई० का लघु लेख | उनके दोनों ओर एक-एक तीर्थंकर को खड़ा दिखाया उत्कीर्ण है। साथ ही, यहाँ आबू क्षेत्र से प्राप्त नर्तकी | गया है। सिंहासन की दाहिनी ओर सर्वानुमूर्ति तथा बाईं नीलांजना की भी सुन्दर मूर्ति प्रदर्शित है, जिसका प्राचीनतम | ओर अम्बिका दर्शायी गयी हैं। सामने दो मृगों के मध्य अंकन हमें मथुरा की कुषाण कला में देखने को मिलता | धर्मचक्र तथा अष्ट-ग्रहों के सुन्दर अंकन हैं। उपर्युक्त संक्षिप्त विवरण से विदित होता है कि य- एसियन कला संग्रहालय, सेन फ्रासिन्सको, | जैनधर्म ने भारतीय मूर्तिकला के क्षेत्र में अपना एक कैलिफोर्निया विशिष्ट योगदान दिया है। सम्पूर्ण भारत के विभिन्न भागों इस संग्रहालय में भी देवगढ़ क्षेत्र से प्राप्त कई | में निर्मित देवालयों के अतिरिक्त देश-विदेश के अनेक जैन मूर्तियाँ प्रदर्शित हैं, जिनमें जिन के माता-पिता की | संग्रहालयों में भी जैनधर्म से संबंधित असंख्यकला-मूर्तियाँ प्रतिमा काफी महत्त्व की है। यहीं पर अंबिका की भी | सुरक्षित हैं, जिनका वैज्ञानिक एवं पुरातात्त्विक दृष्टि से एक सुन्दर मूर्ति विद्यमान है, जिसमें वह आम के वृक्ष | अध्ययन होना परमाश्यक है। अधिक नहीं, यदि सभी के नीचे त्रिभंग-मद्रा में खडी है और पैरों के निकट उसका वाहन-सिंह अंकित है। किया जा सके, तो वह भी बड़ा पुनीत कार्य होगा और र– बर्जीनिया कला संग्रहालय, रिचमोन्ड, बर्जीनिया | इससे न केवल जैनधर्मावलम्बियों, वरन् शोधकर्ताओं को भी बड़ा लाभ होगा। दर्दो के हरकारे गीत हमारे संग में हँसते संग में रोते हैं। गीत रचयिता नहीं कभी एकाकी होते हैं। शब्द अर्थ के चंदा सूरज ले भावों के तारे ताना बाना बुनते रहते बैठे नदी किनारे। काँधों पर संसारसृजन का अपना ढोते हैं। मथ देते हैं युग चिंतन के सागर को ये पल में दिखला देते ये भविष्य को वर्तमान के तल में सारस्वत संगम में नित्य लगाते गोते हैं। वेद ऋचाओं से भी बढकर इन्हें गीत की बोली मनोज जैन 'मधुर' ढूँढ लिया करते गीतो में ईद दशहरा होली। मन की प्यास बुझानेवाले मनहर सोते हैं। गीत अमर है, कब मरता है कभी किसी के मारे। संवाहक ये गीत विद्या के दों के हरकारे बीज गीत के सदा सृष्टि में गहरे बोते हैं। गीत धरा का संस्कार है गीत गगन की आशा गीत शक्ति का तेज पुंज है गीत हृदय की भाषा गीत हमारे अंतर्मन कल्मष धोते हैं। सी एस १३, इंदिरा कॉलोनी बाग उमराव दूल्हा, भोपाल -१० - जनवरी 2008 जिनभाषित 13 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524324
Book TitleJinabhashita 2008 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2008
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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