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________________ आचार्य श्री विद्यासागर जी के दोहे 19 भूल नहीं पर भूलना, शिव-पथ में वरदान। नदी भूल गिरि को करे, सागर का संधान॥ 20 प्रभु दिखते तब और ना, और समय संसार। रवि दिखता तो एक ही, चन्द्र साथ परिवार ॥ 21 सुर-पुर भी नीरस रहा, रस का नहीं सवाल। क्षार रसातल और हैं, देती 'रसा' रसाल॥ 22 रसाल सुरभित सूंघ, छू रस का हो अनुमान। विषय-संग बिन सन्त में, विरागता को मान॥ 23 प्रभु को लख हम जागते, वरना सोते घोर। सूर्योदय प्रभु आप हैं, चन्द्रोदय हैं और॥ 28 भाँति-भाँति की भ्रान्तियाँ, तरह-तरह की चाल। नाना नारद-नीतियाँ, ले जातीं पाताल ॥ 29 लोकतन्त्र का भेष है, लोभ-तन्त्र ही शेष। देश-भक्त क्या देश में, कहीं हुए निश्शेष? ॥ 30 सत्ता का ना साथ दो, सदा सत्य के साथ। बिना सत्य सत्ता सुनो, दे न सम्पदा साथ ॥ 31 अनाथ नर हो धर्म बिन, धर्म-धार हो नाथ। पुजता उगता सूर्य ही, नहीं डूबता भ्रात! | 32 24 कार्य देखकर हो हमें, कारण का अनुमान। दिशा दिशान्तर में दिखा, सूर्य तभी गतिमान॥ 25 अनुभव ना शिव-पंथ में, आतम का अविकार।। लवण मिला जल शुचि दिखे, किन्तु स्वाद तो खार॥ मानी में क्षमता कहाँ?, मिला सके गुणमेल। पानी में क्षमता कहाँ?, मिला सके घृत, तैल॥ 33 घूघट ना हो राग का, मरघट जब लौं होय। जमघट, पनघट पर रहे, पर ना दल-दल होय॥ 34 ठोकर खा-खा फिर रहा, दर-दर दूर दरार। स्व-पर दया कर, दान कर, कहते दीन-दयाल॥ 35 यकीन किन-किन पर करो, किन-किन के हो दास। उदास क्यों हो? एक ही, उपास्य के दो पास ॥ 36 दूर, सहज में डूब हो, दूर रहे सब धूल। आगत तो अभिभूत हो, और भूत हो भूल॥ 26 वतन दिखे ना प्रभु उन्हें, धनान्ध मन-आधीन। उल्लू को रवि कब दिखा, दिवान्ध दिन में दीन॥ 27 विषय-वित्त के वश हुए, ना पाते शिव-सार। फँसे कीच क्या? चल सके, शिर पर भारी भार॥ 'सूर्योदयशतक' से साभार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524323
Book TitleJinabhashita 2007 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2007
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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