SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 17
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ऐसा विवेकाख्याति या स्मृतिप्रमोष रूप ही होता है। । क्या है? सीप या चाँदी? यदि सीप है, तो उसे सत्ख्यातिरूप परन्तु प्राभाकरों का उक्त मत भी समीचीन नहीं है, कहिए और यदि चाँदी है, तो उसे असत्ख्यातिरूप कहिये। क्योंकि विपर्ययज्ञान में प्रत्यक्ष और स्मरण ये दो ज्ञान नहीं | यह विपरीतार्थख्याति क्या होती है? होते, अपितु एक ही ज्ञान होता है- विपरीत अर्थ को जानने समाधान- सीप में चाँदी के विपर्ययज्ञान का रूप। तथा जिसे वे सादृश्यादि के निमित्त से हुआ स्मृतिप्रमोष | आलम्बन चाँदी ही है, सीप नहीं क्योंकि यदि उसका कह रहे हैं वह वस्तुतः विपरीतार्थख्याति ही है। | आलंबन सीप होता, तो वह विपर्ययज्ञान नहीं कहलाता। 7. विपरीतार्थख्यातिवाद | परंत उसका आलंबन चाँदी होते हये भी उसे असतख्यातिरूप जैन और नैयायिक-वैशेषिक कहते हैं कि विपर्ययज्ञान | नहीं माना जा सकता, क्योंकि यदि असत् अर्थ की भी विपरीतार्थख्यातिरूप होता है, क्योंकि उसमें विपरीत अर्थ | ख्याति होती हो, तो आकाशपुष्पादि की भी होनी चाहिए। की ख्याति होती है। अर्थात् सादृश्यादि कुछ कारणों से | अतः ऐसी स्थिति में यही मानना उचित है कि विपर्ययज्ञान सीप में उसके विपरीत अर्थ चाँदी का ज्ञान हो जाता | में विपरीत अर्थ (सीप से विपरीत चाँदी है, रस्सी से है अथवा मरीचिका में उसके विपरीत जल का ज्ञान | विपरीत सर्प है, इत्यादि) की ख्याति होती है। विपर्ययज्ञान हो जाता है। अतः विपर्ययज्ञान को विपरीतार्थख्याति रूप | | का नाम विपरीतार्थख्याति रूप होने के कारण ही ही मानना चाहिए। विपर्ययज्ञान है। जैनों और नैयायिक-वैशेषिकों का उक्त कथन __ अध्यक्ष जैनदर्शन विभाग न्यायसंगत है। विपर्ययज्ञान को विपरीतार्थख्यातिरूप मानने श्रीलाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ, में कोई बाधा नहीं है। (मानित विश्वविद्यालय), नई दिल्ली- 110 016 शंका- सीप में चाँदी के विपर्ययज्ञान का आलंबन | पार्श्वनाथ विद्यापीठ निबन्ध प्रतियोगिता 2007-08 उद्देश्य- जैन समाज लम्बे समय से यह अनुभव । आयुवर्ग के आधार पर निबन्ध के लिए निर्धारित कर रहा है कि लोगों को जैनधर्म, दर्शन एवं संस्कृति की | पृष्ठ संख्यायथार्थ जानकारी होनी चाहिए, क्योंकि जैनदर्शन में विश्वदर्शन | 18 वर्ष तक- डबल स्पेस में फुलस्केप साइज में बनने की क्षमता है। इस उद्देश्य को दृष्टिगत रखते हुए | टंकित (typed) पूरे चार पेज। 'पार्श्वनाथ विद्यापीठ' नवयुवकों के बौद्धिक विकास एवं 18 वर्ष के ऊपर- डबल स्पेस में फुलस्केप साइज जैनधर्म, दर्शन के प्रति उनकी जागरूकता को बनाये रखने | | में टंकित (typed) पूरे आठ पेज। के लिए प्रतिवर्ष एक निबन्ध प्रतियोगिता का आयोजन कर पुरस्कार- निर्णायक मण्डल द्वारा चयनित प्रतियोगी रहा है, जिससे कि लोगों में पठन-पाठन एवं शोध के प्रति को निम्नानुसार पुरस्कार देय होगारुचि पैदा हो एवं साथ ही विचारों का आदान-प्रदान हो 18 वर्ष तक के प्रतियोगी के लिये- प्रथम पुरस्कारसके। इस कड़ी में यह पाँचवीं निबन्ध प्रतियोगिता है। 2500 रु., द्वितीय पुरस्कार-1500 रु., तृतीय पुरस्कार-1000 विषय : 'अनेकान्तवाद : सिद्धान्त और व्यवहार' । निबन्ध के साथ प्रतिभागी की पासपोर्ट साइज फोटो 18 वर्ष के ऊपर के प्रतियोगी के लिये-प्रथम पूरे पते सहित अपनी शैक्षिक योग्यता का विवरण एवं हाई| पुरस्कार-2500 का पुरस्कार-2500 रु., द्वितीय पुरस्कार-1500 रु., तृतीय पुरस्कारस्कूल सर्टिफिकेट की फोटो प्रति (Xerox copy) भेजना 1000 रु. अनिवार्य है। प्रतियोगिता की भाषा- निबन्ध हिन्दी या अंग्रेजी निबन्ध भेजने का पता दोनों भाषाओं में हो सकते हैं। अन्तिम तिथि- इस निबन्ध प्रतियोगिता के लिये संयोजक-निबन्ध प्रतियोगिता-2007-08, पार्श्वनाथ आलेख 28 फरवरी, 2008 तक भेजे जा सकते हैं। विद्यापीठ आई. टी. आई. रोड, करौंदी, वाराणसी- 221005 (उ.प्र.) डॉ. श्री प्रकाश पाण्डेय निदेशक, पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी-5 (उ. प्र.) -दिसम्बर 2007 जिनभाषित 15 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524323
Book TitleJinabhashita 2007 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2007
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy