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________________ स्व० पं० नाथूलाल जी शास्त्री वे अंतिम समय तक धार्मिक एवं सामाजिक कार्यों के लिये मार्गदर्शन करते रहे माणिकचंद जैन पाटनी गत शताब्दी के प्रत्यक्ष दृष्टा एवं दिगम्बरजैन समाज प्रेरणा देकर उन्होंने अन्य सभी को साथ में लेकर इसे अंजाम इन्दौर के, अपनी सरलता सादगी एवं शुद्ध सात्विक दिया। दिगम्बर जैन युवा मेला भी आपके परामर्श का आचार-विचार से श्रावक कुल एवं धर्म को सुवासित करने | सुफल है। महासमिति के प्रति सभी कार्यकर्ताओं में उनका वाले, धर्मनिष्ठ, प्रकाण्ड शीर्षस्थ विद्वान्, संहितासूरी, | सदैव लगाव रहा है। 14 जनवरी 2007 को महासमिति श्रुतयोगी, 98 वर्षीय पं० नाथूलालजी शास्त्री का निधन 91 मध्यांचल महाकुंभ के अवसर पर भी उन्होंने एक लेख सितम्बर 2007 रविवार को मध्याह्न 12 बजकर 15 मिनट | 'महासमिति मध्यांचल और उसके अध्यक्ष' भेजा जो उनके पर हो गया। लगाव की पुष्टी करता है। इसी प्रकार समाजरत्न श्री उनके द्वारा स्वेच्छा से मृत्युउपरांत नेत्रदान किया | माणिकचंद पाटनी अभिनंदन ग्रंथ में भी श्री पाटनी को गया। नेत्रदान का आवहरण प्रसिद्ध नेत्र विशेषज्ञ डॉ.किशन | आशीर्वचन के रूप में अपना संदेश देना नहीं भूले। उनके वर्मा ने स्वयं पं० नाथूलाल जी शास्त्री की जीवन-शैली, आशीर्वचन एवं लगाव से महासमिति सदैव प्रगति के पथ से प्रभावित होकर किया। पर अग्रसर होती रहेगी। पिता सुन्दरलाल जी बज एवं मातुश्री गेंदाबाई के | नेमीनगर के विकास की श्रृंखला में से प्रथम जिनयहाँ 1 नवम्बर 1911 को जन्मे पं० नाथूलाल जी ने जैन मंदिर के अभाव में आई निवास की समस्या का उन्होंने सिद्धान्त, न्याय, साहित्य शास्त्री, न्यायतीर्थ, साहित्य रत्न | चैत्यालय का निर्माण करवाकर भगवान् चंद्रप्रभु की मूर्ति की शिक्षा प्राप्त की एवं सर हकमचंद संस्कृत महाविद्यालय। विराजमान कर समाधान किया। पश्चात् ही कॉलोनी का जवरीबाग से जुड़े रहे। आपके एक पुत्र एवं छः पुत्रियाँ | विकास हुआ। प्रो० जमनालालजी जैन ने नई वैदी बनवाकर (वर्तमान में पांच पुत्रियाँ, दो पौत्रियाँ सभी विवाहित) हैं। भगवान् शांतिनाथ की प्रतिमा विराजमान की। कलश चढ़ाने आपकी धर्म पत्नी स्व० श्रीमती सुशीलाबाई जैन (पूर्व | के लिये विरोध को उन्होंने कलश के आकार में संशोधन अध्यापिका) (स्वर्गवास दिनांक 19.9.1995) ने भी शिक्षा | कर समाधान किया जिसे सभी ने स्वीकार किया। निर्वाण में विशारद किया एवं अध्यापिका रही। आपके पुत्र | लाडू को पूजा के मध्य चढ़ाना या निर्वाणकाण्ड बोलकर जिनेन्द्रकुमार जी जैन व पुत्रवधु ताराजी जैन है। बाद में चढ़ाने की समस्या का भी उन्होंने समाधान किया, ___ इन्दौर की दिगम्बरजैन महासमिति व नेमीनगर जैन | कि पहले पूजन पूरी बोलना चाहिये तथा पश्चात् निर्वाणकाण्ड कॉलोनी के विकास में संस्थापक सदस्य पं० नाथूलालजी | बोलकर लाडू चढ़ाना चाहिये। नेमीविद्या मंदिर की स्थापना शास्त्री की अहम् भूमिका के लिये दोनों संस्थाएँ उनके | में उनका परामर्श अति महत्वपूर्ण था जिस कारण इसकी उपकार को कभी भी विस्मृत नहीं कर पायेंगी। 11 जनवरी स्थापना संभव हो पाई। संस्थाओं के विकास में उनके 1987 को आयोजित दिगम्बरजैन महासमिति की राष्ट्रीय | योगदान हमेशा उनकी यशोगाथा स्मरण कराते रहेंगे। कार्यकारिणी की बैठक के अवसर पर उनके सम्मानार्थ सन् 1930 से जैन प्रतिष्ठा विधि का प्रचार-प्रसार आम सभा में पंडितजी ने बालक-बालिकाओं के संस्कार आपने नि:स्वार्थ भाव से किया। आपके प्रतिष्ठाचार्यत्व में हेतु धार्मिक पाठशालाएँ प्रारंभ करने के लिए प्रस्ताव किया।| निःस्वार्थ भाव से बिना कोई राशि लिये वैदी प्रतिष्ठाएँ तथा प्रत्येक पाठशाला को मासिक खर्च देने का अनुरोध | धार्मिक शुद्धता के साथ देश के अनेक हिस्सों में हुई। सन किया। पंडितजी के इस प्रस्ताव पर कई ने अपना समर्थन | 1961 में सम्मेदशिखर तेरापंथी कोठी में मान स्तंभ प्रतिष्ठा, देते हुए मासिक व्यय के लिये राशि घोषित की। पंडितजी | सन् 1964 में सम्मेदशिखर नंदीश्वर बावन चैत्यालय बिंब ने मेरे व अन्य साथियों के साथ इन्दौर के सभी क्षेत्र में प्रतिष्ठा, 1958 में सुखदेव आश्रम लाडनू पंचकल्याणक घूमकर पाठशालाएँ प्रारंभ की। इसी प्रकार सन् 1986 में प्रतिष्ठा, इसके अतिरिक्त दाहोइ, कुशलगढ, ऊन (पावागिरी), इन्दौर दिगम्बर जैन समाज की जनगणना करने के लिये | जावरा, मुम्बई (दादर बोरिवली मुंबादेवी), भीलवाड़ा 22 नवम्बर 2007 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524322
Book TitleJinabhashita 2007 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2007
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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