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पिड़ावा, सोनगढ़, पोरबंदर, बनेड़िया, जामनगर, लौहारदा,। आदि पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। जैन संस्कार विधि के पाँच शिवपुरी, बड़ौदा, अहमदाबाद, तालौद, गोम्मटगिरी इन्दौर, | संस्करण भी प्रकाशित हुए हैं। अभी हाल ही में लिखित मोदीनगर दिल्ली, नेरोली, अहिंसा स्थल, सागर आदि स्थानों पुस्तक 'आत्मा से परमात्मा का विज्ञान' शीघ्र ही प्रकाशित पर लगभग पचास से अधिक बिंब प्रतिष्ठाएँ आपके द्वारा होने वाली है। सम्पन्न हुईं।
आपको सन् 1974 में वीरनिर्वाण भारती द्वारा देहली राष्ट्र एवं राष्ट्रभाषा के उन्नयन में भी आपका | में सिद्धांताचार्य की उपाधि से उपराष्ट्रपति श्री बी.डी. जत्ती सराहनीय योगदान रहा है। सन् 1942 के आंदोलन में आपने | द्वारा सम्मानित किया गया। दिगम्बरजैन समाज इंदौर द्वारा सक्रिय कार्यकर्ता के रूप में भूमिका निभाई। आप तभी। 1978 में सम्मानित किया गया और तीर्थंकर पत्रिका में भी से शुद्ध खादी-निर्मित वस्तुओं को ही पहनते रहे हैं। इन्दौर ने सन् 1978 में पं. नाथूलाल जी शास्त्री विशेषांक ग्रीष्मावकाश के दिनों में आप घर-घर जाकर हिन्दी साहित्य | प्रकाशित किया। की पुस्तकें बेचते थे। वीर विद्यालय के वाचनालय में मंत्री आपको हिन्दी जैनसाहित्य लेखन के लिये सन श्री माणिकचंद पाटनी के काल में साहित्य सम्मेलन की | 1951 में अखिल भारतीय दिगम्बरजैन महासभा ने पुरस्कृत परीक्षा में सम्मिलित होने वाले छात्रों का निःशुल्क अध्यापन | किया, आपकी कृति प्रतिष्ठा प्रदीप को 6 जून 1993 को भी करते थे। नैतिक शिक्षा के सभी भागों को क्रमानुसार कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान कर सम्मानित किया उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों के पाठ्यक्रम में सम्मिलित | गया। फरवरी 1995 में आपको दिगम्बरजैन जनमंगल किया गया है।
प्रतिष्ठान सोलापुर द्वारा आचार्य कुन्दकुन्द पुरस्कार दिल्ली आपका आगम ज्ञान इतना विशाल था कि श्रमण | में दिया जाकर पूज्य आचार्य श्री विद्यानंदजी के सान्निध्य संस्कृति के सर्वोत्कृष्ट उपासक भी आपसे तत्व चर्चा कर | में आपका अभिनंदन एवं श्रुतयोगी की उपाधि से सम्मानित आनन्दित/प्रभावित होते थे और इन्हें प्रमाणिक मानकर किया गया। सम्मान देते थे। देश के अनेक जैन मुनियों व आर्यिकाओं | । सन् 1981 में श्रवणबेलगोला में तत्कालीन राष्ट्रपति को उन्होंने धार्मिक विद्या दी। आचार्य विद्यासागर जी | ज्ञानीजैलसिंह जी द्वारा भट्टारक चारूकीर्ति स्वामीजी के महाराज भी उनसे कई मामलों में परामर्श करते थे और सान्निध्य में सम्मानित किया गया। उस अनुसार निर्णय भी लेते थे। देवगढ़ में विराजित अनेक सन् 1974 में इन्दौर जैन समाज द्वारा तत्कालीन मूर्तियों के निरीक्षण के दौरान वे पंडित जी से उनकी केन्द्रीय उद्योगमंत्री डॉ. शंकरदयाल शर्मा द्वारा सम्मानित प्रमाणिकता की चर्चा करना आवश्यक समझते थे। इसी किया गया। प्रकार नेमावर सिद्धक्षेत्र के बारे में उन्होंने पंडितजी से पूरी दिनांक 23.2.1998 को उपाध्याय ज्ञानसागरजी महाराज जानकारी एकत्रित कर उसके निर्वाण क्षेत्र की पुष्टि चाही। के सान्निध्य में श्रुतसंवर्धन पुरस्कार से पुरस्कृत किया गया। इस पर पंडितजी ने इसे निर्वाण क्षेत्र प्रमाणित किया और सन् 1952 में मोदी नगर, दिल्ली में प्रतिष्ठा दिवाकर तत्पश्चात् वहाँ आचार्य श्री की प्रेरणा से निर्माण प्रारंभ हुआ। की उपाधि से सम्मानित किये गये। इसके साथ ही आपको सामाजिक कार्यों में भी आपकी गहरी रुची एवं पकड़ थी। अनेक उपाधियाँ प्राप्त है जिनमें प्रमुख प्रतिष्ठा दिवाकर, समाज में एकता बनी रहे और संगठन मजबूत बने यह | संहितासूरी, 'सिद्धांत महोदधि' श्रुतयोगी, सिद्धांताचार्य आदि आपका मूल ध्येय रहा।
23 फरवरी 1942 से अक्टूबर 1949 तक दिगम्बर कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ इन्दौर द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर जैन हितेच्छ पाक्षिक पत्र के प्रधान संपादक व जुलाई 19711 आयोजित कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ का प्रथम पुरस्कार राष्ट्रीय से 1984 तक सन्मतिवाणी के प्रधान संपादक रहे। वर्तमान स्तर पर आपको प्राप्त हआ। श्रमण संस्कृति विद्यावर्धन में सन्मतिवाणी, परिणय प्रतीक के परामर्शदाता थे। आपके ट्रस्ट, जिसके माध्यम से प्रतिष्ठाचार्य एवं लौकिक मांगलिक द्वारा रचित हिन्दी जैनसाहित्य महिलाओं के प्रति जैन विवाह | कार्यों के विधि-विधान हेतु विद्वानों को शिक्षण-प्रशिक्षण संस्कार, वीरनिर्वाणोत्सव, विश्वधर्म तीर्थयात्रा (आठ भाग), दिया जाता है, के आप संस्थापक है। आपने दो शिविर अभिषेक पाठ, पावागिरी इतिहास, नैतिक शिक्षा 1-7 भाग | में चालीस विद्वान् तैयार किये हैं आप दिगम्बरजैन समाज
हैं।
नवम्बर 2007 जिनभाषित 23
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