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सम्यग्दर्शन दुर्लभ है, सम्यग्दृष्टि नहीं
सम्यग्दृष्टि इस पञ्चमकाल में भरतक्षेत्र में तीन चार ही होते हैं, पाँच, छह नहीं, ऐसा विद्वानों के मुख से सुनने में आता है । पर यह बात क्या सही है? यदि यह बात सत्य है तो फिर यहाँ जो श्रावक, श्राविकायें, श्रमण, आर्यिकाओं के रूप में जो धर्म दिख रहा है ये सभी शंका के पात्र बन जायेंगे और हम अपने मन से अपने को साथ लेकर अपनी समझ से दो-तीन लोगों को और सम्यग्दृष्टि मान लें, यह बात उचित प्रतीत नहीं होती है। दूसरी ओर जब सर्वज्ञ की देशना का और आचार्यों के व्यापक दृष्टिकोंण की ओर विचार करते हैं तो लगता है कि ऐसा कदापि सम्भव नहीं है क्योंकि जहाँ तिर्यञ्चों को भी सहज जातरूप देखकर, जिनबिम्ब देखकर सम्यग्दर्शन हो जाता है तो वहाँ मनुष्यों के इस विशाल समुदाय में मात्र तीन, चार सम्यग्दृष्टि हैं, यह अन्याय या कुछ गलत धारणा अवश्य है, यही सब सोचकर आगम के परिप्रेक्ष्य में हम इस विषय को देखने का यहाँ प्रयास करते हैं
यह एक स्वतंत्र लेख से सिद्ध हो चुका है कि पर्याप्त मिथ्यादृष्टि मनुष्यों की संख्या 22 अङ्क प्रमाण से अधिक है । पर सासादन सम्यग्दृष्टि से संयतासंयत तक द्रव्यप्रमाण से कितने हैं, ऐसी पृच्छना करने पर संख्यात होते हैं, ऐसा कहा है। इससे सिद्ध होता है कि प्रत्येक गुणस्थानगत जीवों की संख्या का एक निश्चित प्रारूप है ।
यदि हम यहाँ यह तर्क प्रस्तुत करें कि पूरे ढाई द्वीप में 22 अङ्क प्रमाण मनुष्य हैं और सम्यग्दृष्टि तो कुछ करोड़ हैं, अत: इतने अल्पप्रमाण सम्यग्दृष्टियों का वर्तमान विश्व की 6 अरब मात्र जनसंख्या में अनुपात नगण्य आता है । अतः यहाँ भरतक्षेत्र में सम्यग्दृष्टि बामुश्किल तीन चार निकलते हैं।
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मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
करोड़ है। यहाँ एक अन्य आचार्य परम्परा से आगत मत का भी उल्लेख किया है, जिसके अनुसार सासादनसम्यग्दृष्टि मनुष्यों का प्रमाण 50 करोड़ तथा सम्यग्मिथ्यादृष्टि मनुष्यों का प्रमाण इससे दूना है, बस इतना ही अन्तर है ।
इसके बाद हमें वह अल्पबहुत्व देखना है जिसके अनुसार मनुष्यक्षेत्र से मनुष्यों का विभाजन होता है। वह इस प्रकार है।
ढाईद्वीप के अन्दर आनेवाले अन्तद्वीपों के मनुष्य सबसे थोड़े हैं। उत्तरकुरु और देवकुरु के मनुष्य उनसे संख्यातगुणे हैं । हरि और रम्यक क्षेत्रों के मनुष्य उत्तरकुरु और देवकुरु के मनुष्यों से संख्यातगुणे हैं। हैमवत और हैरण्यवत क्षेत्रों के मनुष्य हरि और रम्यक के मनुष्यों से संख्यातगुणे हैं। भरत और ऐरावत क्षेत्रों के मनुष्य हैमवत और हैरण्यवत के मनुष्यों से संख्यातगुणे हैं। विदेहक्षेत्र के मनुष्य भरत और ऐरावत के मनुष्यों से संख्यातगुणे हैं।
मनुष्यों की संख्या के अनुसार ही वहाँ असंयत सम्यग्दृष्टि, संयतासंयत और संयत की संख्या का बँटवारा यथासम्भव क्षेत्रों में होगा। संयतों के सम्बन्ध में तो ऐसा कहा भी है- 'बहुवमणुस्सेसु जेण संजदा बहुआ चेंव तेण ।'
चूँकि जिनागम में संख्यात का प्रमाण दो से प्रारम्भ होता है अतः अन्तद्वीपों के मनुष्यों में कम से कम यदि अ मान लें तो उत्तरकुरु, देवकुरू में कम से कम सम्यग्दृष्टि मनुष्यों की संख्या
= 2 अ
हरि, रम्यक में
= 4 अ
8 अ
हैमवत, हैरण्यवत में भरत, ऐरावत में
= 16 3T
चूँकि एक भरत और ऐरावतक्षेत्र सम्बन्धी विदेह क्षेत्र 32 होते हैं, इसलिये विदेह में कम से कम सम्यग्दृष्टियाँ मनुष्यों की संख्या
16 अ× 32 x 2 = 1024 अ
यहाँ सर्वत्र संख्यातगुणा का प्रमाण कम से कम 2 का अङ्क लिया है।
.:. कुल सम्यग्दृष्टि मनुष्यों की संख्या
37+2 37+437+837+163T+1024 37=1055 37
:: 1055 अ प्रमाण मनुष्यों की संख्या में भरत ऐरावत
यह तर्क ठीक नहीं है क्योंकि हमें मिथ्यादृष्टियों में से सम्यग्दृष्टि नहीं चुनने हैं, अपितु सम्यग्दृष्टि किस क्षेत्र में कितने हो सकते हैं यह समझना है ।
इसके लिये सर्वप्रथम हमें प्रत्येक गुणस्थानगत जीवों की संख्या को जानना है। जो इस प्रकार है- सासादन सम्यग्दृष्टि मनुष्य 52 करोड़ हैं। सम्यग्मिथ्यादृष्टि मनुष्य सासादनसम्यग्दृष्टियों के प्रमाण से दूने हैं। असंयत सम्यग्दृष्टि में सम्यग्द्र० मनुष्यों की संख्या = 16 अ
मनुष्य सात सौ करोड़ हैं। संयतासंयतों का प्रमाण तेरह
... 700 करोड़ (7×10 2 ) x 163 / 1055
6 अक्टूबर 2007 जिनभाषित
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