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है।
जुबान से, अपने हाथ से या अपने कार्यों से कोई ऐसा । 12. सन् 711-12 ई. में खलीफा के सिपहसालार कार्य न करे जिससे किसी की जान-माल या मर्यादा को| मुहम्मद-बिन-कासिम ने सिंध और पंजाब के कुछ हिस्सों ठेस पहुंचे। इस सिद्धान्त को कुरान में और हजरत मोहम्मद | पर कब्जा कर लिया और देवल के प्राचीन सिंधीनगर को की वाणी में बार-बार दोहराया गया है। इस सिद्धान्त को
| अपनी राजधानी बनाया। वहाँ एक संधि के तहत हिंदओं ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में देखा जाए तो इसका भारतीयधर्मों से | के मंदिरों को क्षति नहीं पहुँचने दी गई। हिंदुओं के जानगहरा नाता दिखाई देता है और विशेषकर जैनमत का प्रभाव | माल की रक्षा की जिम्मेदारी खलीफा की हुकूमत ने ली। दिखाई देता है। यह और बात है कि अब इस्लाम को मानने उससमय की बनाई हुई मस्जिद के अवशेष भम्भौर के वाले इस सिद्धान्त पर किस हद तक अमल करते हैं। यह स्थान पर, जो कराची से 60-70 किलोमीटर दूर है, मिले बात तो सभी धर्मों पर पूरी उतरती है क्योंकि आधुनिक | हैं। यह मस्जिद स्तम्भों पर सपाट छत के साथ बनाई गई जीवन में लोगों ने अपने मूलसिद्धान्त से रिश्ता तोड़ लिया | थी और उसके अभिलेख अरबी-सूफी में हैं जिससे इसकी
तारीख मिलती है। अरबों ने एक नया नगर मंसूरा भी आबाद 9. आज जिस इस्लामी कला या स्थापना का नाम | किया था जिसके अवशेष भी पूरातात्त्विक खुदाई में मिले लिया जाता है वह हजरत मोहम्मद के जीवन काल में खास | हैं। उनकी कलाकृति से पता चलता है कि जैनकला का महत्त्व नहीं रखती। उन्होंने यह कहा था कि भगवान् के कुछ प्रभाव उस क्षेत्र में पड़ा। खलीफा की हुकूमत डेढ़ मानने वालों के लिए थोड़े दिनों के अस्थाई जीवन में अपने
सौ साल तक सिंधु, मुल्तान और पंजाब के इलाकों में धन को कीमती भवनों के निर्माण पर खर्च करना व्यर्थ चलती रही पर उसके अवशेष नहीं के बराबर हैं। ग्यारहवीं है। इसीलिए उनका अपना घर और उनके खलिफाओं के शताब्दी में महमूद गजनवी ने भी पंजाब और पश्चिम भारत भवन मिट्टी और गारे के बने हए थे जिनके अब चिह्न
में कुछ निर्माण कार्य कराया, जिनके अवशेषों का जिक्र भी नहीं मिलते।
अभिलेखों में प्राप्त हुआ है। इसीसमय की एक मस्जिद 10. हजरत मोहम्मद ने अपने सहयोगियों के साथ | भडौच (गुजरात) में है जो समय के साथ-साथ मरम्मत मिलकर मदीना में जो पहली मस्जिद का निर्माण किया होने के कारण अपनी प्राचीन शक्ल में नहीं है, फिर भी था। वह भी मिट्टी और गारे की बनी हुई थी और जिसकी | मस्जिद की पूजा का हॉल लकड़ी के स्तम्भ और संगमरमर छत में खजूर के तने शहतीर की शक्ल में लगे हुए थे| की बेसिस पर आधारित है जिसकी नक्काशी जैनमंदिरों
और उन पर मिट्टी की छत थी। मस्जिद का आकार एक | की कलात्मक सजावट से मिलती-जुलती है। मंदिर के बड़े अहाते का था जिसका द्वार दक्षिण में था और उसका | प्रवेशद्वार की चन्द्रशिला में कीर्तिमख भी जैनकला का एक हिस्सा हजरत मोहम्मद के घर से जुड़ा हुआ था उनके प्रतीक है। इस मस्जिद को गजनवीमस्जिद के नाम से निधन पर उन्हें उसी भवन में दफना दिया गया, जहाँ आज
पुकारा जाता है। भारत में इस्लामी कला में जैनकला का बड़ा ही सुन्दर मकबरा बना हुआ है। पुरानी मस्जिद की | प्रभाव इसी मस्जिद से शुरु होता है। जगह एक आलीशान मीनारों वाली मस्जिद बनी हुई है। 13.1192 में मुहम्मद-बिन-शाम जिसे मुहम्मद गौरी जिसे अब हरम कहते हैं।
भी कहते हैं, ने दिल्ली को फतह करके प्राचीन नगर पर ___11. इस्लाम के आरम्भ से ही मुसलमान अरब कब्जा कर लिया। इसे सुल्तान के सिपहसालार कुतुबुद्दीन व्यापारी दक्षिण और पश्चिम तटवर्ती इलाकों में आकर बस | ऐबक के कुब्बतुल इस्लाम मस्जिद को एक प्राचीन मंदिर गए थे। जिन्होंने समुद्र के रास्ते अपना व्यापार भारत से | के पत्थर के चबूतरे पर बनाया, जिसमें जैन एवं हिन्दू मंदिरों पूर्वी यूरोप तक फैलाया। उनके बसने और रहने के लिए | के द्वार की चौखटे, कार्बल छत, स्तम्भ और कैपिटल को हिन्दू राजाओं ने कई सुविधाएँ उपलब्ध कराई, क्योंकि | लेकर मस्जिद के दालान और द्वार, मंडप एवं पूजा का उनके द्वारा भारत व्यापार को बड़ा प्रोत्साहन मिल रहा था।| हॉल बनाया था। इस मस्जिद के पर्वीद्वार में कीर्तिमख इसीलिए उन राजाओं ने अपने भवनों के साथ-साथ मस्जिदों जैनकला का प्रतीक है। इसीतरह द्वार मंडप की छतें भी और मदरसों को बनाने में भी सहयोग दिया था। ये इमारतें | माउंटआबू के प्राचीन मंदिरों की झलक पेश करती हैं। सम्भवतः क्षेत्रीय स्थापत्य के आधारों पर बनी थीं जिनका इस मस्जिद के स्तम्भों पर जो अप्सराओं की प्रतिमायें वर्णन अरबी इतिहासकारों ने किया है।
- अक्टूबर 2007 जिनभाषित 17
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