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________________ भारत के मुस्लिम स्मारकों पर जैन स्थापत्य कला का प्रभाव विश्व के सभी धर्मों का विकास अपनी-अपनी परिस्थितियों के अनुसार होता रहा है और सभी सम्प्रदायों में हर युग में समकालीन आवश्यकताओं के तहत् तीर्थङ्करों और अवतारों द्वारा नवीन विचारों एवं पूजा-पाठ की विधियाँ विकसित होती रही हैं । 2. साथ ही साथ एक दूसरे को परस्पर प्रभावित किया है। इसी सिलसिले से एक बहुत बड़े साहित्य का भंडार जमा हो गया है। खेद की बात यह कि अपने अपने धर्म के साहित्य को आचार्य एवं शिक्षित लोगों ने जानने का प्रयास किया है परन्तु बहुत कम ऐसा हुआ है कि किसी एक धर्म के मानने वालों ने दूसरे धर्म के बारे में भी उनसे कुछ जानने की कोशिश की हो जितना वह अपने धर्म के बारे में जानता है। इसीकारण धर्मों के मूहिक विकास की गति ऐसी नहीं हुई जैसी कि होनी चाहिए। धार्मिकसाहित्य विशेषकर भारतीयधर्मों का साहित्य मानवजाति की सबसे बड़ी धरोहर है। आज के वैज्ञानिक युग में भी पश्चिमी देशों के लोग अपने यहाँ इस साहित्य की कमी महसूस करते हुए, भारत की ओर आशाभरी निगाहों से देख रहे हैं । 3. भारतीयधर्मों में जैनधर्म का विकास अत्यन्त प्राचीन एवं महत्त्वपूर्ण रहा है। इसका योगदान मानवजाति के लिए शांति एवं स्नेह का प्रतीक रहा है। बौद्धमत ने भी इसीपथ पर चलकर विश्व के एक बड़े हिस्से पर अपने धार्मिक विचारों, दर्शन, कला और विशेषकर मूर्तिकला के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। 4. भारतीयधर्मों की पृष्ठभूमि देखी जाए इस्लाम धर्म एक नवीनतम धर्म है जिसको हजरत मोहम्मद ने आज से 1400 वर्ष पूर्व सउदी अरब में चलाने का प्रयास किया। ऐतिहासिक लेखों एवं प्राचीन परम्पराओं के अनुसार भारतीय धर्मों का प्रभाव पश्चिमी एशिया के प्राचीन धर्मों पर काफी पड़ चुका था । इसी कारण काबा के इमारती प्लान पर भारतीय प्राचीन मंदिर का प्रभाव दिखाई देता है। काबाई की बुनियाद तुगलक इब्राहित ने डाली थी जिनका समय ईसा से सैकड़ों वर्ष पूर्व का है लेकिंन बाद में इस इमारती ढाँचे में तब्दीली होती रही और मरम्मत 16 अक्टूबर 2007 जिनभाषित Jain Education International डॉ. डब्ल्यू.एच. सिद्दीकी पूर्वनिदेशक, भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण T भी होती रही। हजरत मुहम्मद के जमाने के ढाँचे का एक हिस्सा अर्ध गोलाकार था । 5. हजरत मोहम्मद अपने जीवन काल में भारत की पावन भूमि के लिए बड़े अच्छे शब्दों में याद करते थे। उन्होंने यह भी कहा कि मुझे भारत से पावन सुगन्ध आती है। काबे में इबादत (पूजा) की जो विधि है वह काबे के चारों ओर सात बार परिक्रमा करने से पूरी होती है जो आम जमाने में 'उमरा' कहलाती है और खास मौके पर जब यह परिक्रमा और बहुत सी रस्मों के साथ साल में एक बार की जाती है तो उसे हज कहते हैं। हज के समय में जो कपड़े पहने जाते हैं उसमें दो चादर होती हैं एक लुंगी के समान बाँधी जाती है और दूसरी कंधे के ऊपर ओढ़ी जाती है। इसी तरह दूसरा कंधा नंगा रहता है। परिक्रमा पूरी करने के बाद लोग अपना सिर मुंडवाते हैं। उससमय कोई, किसी मनुष्य, किसी जानवर, किसी कीड़े-मकोड़े को कोई हानि नहीं पहुँचा सकता। इसतरह सम्पूर्ण अहिंसा के साथ हज की रस्म अदा होती है। इस पूरी रस्म को यदि ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में देखा जाए तो इस परम्परा की बुनियाद भारतवर्ष में ही मिलती है। 6. इस्लाम में यह विश्वास दिलाया गया है कि इस सृष्टि का रचयिता केवल एक है जिसे रब्बुल आल्मीन या अल्लाह कहते हैं और यह भी विश्वास दिलाया गया है कि इस अल्लाह या भगवान् में यकीन रखनेवाले का धर्म है कि वह हजरत मोहम्मद के पहले के सारे पैगम्बर एवं अवतार और उनकी लाई हुई किताबों पर यकीन रखे और यह भी कहा गया है कि धरती का कोई चप्पा ऐसा नहीं है जहाँ अवतार या पैगम्बर नहीं भेजे गए। 7. इस्लाम के अनुसार अल्लाह मनुष्य के कर्म से ही उसके अच्छे बुरे होने का निर्णय लेगा । केवल इसलिए नहीं कि वह इस्लाम को मन ही मन मानने वाला है। 8. इस्लाम में जिस सिद्धान्त पर सबसे अधिक जोर दिया गया है वह अरबी में 'तकवा' कहलाता है तकवा के मायने हैं- अल्लाह से डरना और कोई ऐसा काम न करना जिससे किसी जानवर को कोई हानि पहुँचे। यह भी कहा गया है कि अपने परस्पर व्यवहार में भी अपनी For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524321
Book TitleJinabhashita 2007 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2007
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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