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________________ शताब्दी में जब वे भारतवर्ष के सम्पर्क में आये तो चीनी, । और वे भी प्रायः उतने ही प्राचीन एवं महत्त्वपूर्ण हैं भले ही अरबी एवं फारसी मिश्र प्रभाव के कारण वे इस देश को वर्तमान में वे अत्यधिक अल्पसंख्यक हों। 19 वीं शती के हिन्दुस्तान, यहाँ के निवासियों को हिन्दू और यहाँ की भाषा | आरम्भ में ही कोलबुक, डुबाय, टाड, फर्लागमेकेन्जी, को हिन्दवी कहने लगे। मध्यकाल के लगभग 700 वर्ष के | विल्सन आदि प्राच्यविदों ने इस तथ्य को भली प्रकार समझ मुसलमानी शासन में ये शब्द प्रायः व्यापकरूप से प्रचलित | लिया था और प्रकाशित कर दिया था। फिर तो जैसे-जैसे हो गये। अध्ययन बढ़ता चला गया यह बात स्पष्ट से स्पष्टतर होती यह मुसलमान लोग समस्त मुसलमानेतर भारतीयों चली गई। इन प्रारंभिक प्राच्यविदों ने कई प्रसङ्गो में ब्राह्मणादि को, जो कि यहाँ के प्राचीन निवासी थे सामान्यतः स्थूल रूप | कथित हिन्दुओं के तीव्र जैनविद्वेष को भी लक्षित किया। से हिन्दू या पहले हनूद और उनके धर्म को हिन्दू मजहब | 19वीं शती के उत्तरार्ध में उत्तर-भारत के अनेक नगरों में कहते रहे हैं, वैसे उनके कोष में काफिर, जिम्मी, बुतपरस्त, | जैनों के रथयात्रा आदि धर्मोत्सवों का जो तीव्र विरोध कथित दोजखी आदि अन्य अनेक सुशब्द भी थे जिन्हें वे भारतीयों | हिन्दुओं द्वारा हुआ वह भी सर्वविदित है। गतदशकों में यह के लिए बहुधा प्रयुक्त करते थे, हिन्दू शब्द का एक अर्थ वे | गाँव, जबलपुर आदि में जैनों पर जो साम्प्रदायिक अत्याचार 'चोर' भी करते थे। ये कथित हिन्दू एक ही धर्म के अनुयायी | हुए और वर्तमान में बिजोलिया में जो उत्पात चल रहे हैं हैं या एकाधिक परस्पर में स्वतन्त्र धार्मिकपरम्पराओं के | उनकी उपेक्षा नहीं की जा सकती। हिन्दू महासभा में जैनों अनुयायी हैं इसमें औसत मुसलमान की कोई दिलचस्पी | के स्वत्त्वों की सुरक्षा की व्यवस्था होती तो जैनमहासभा की नहीं थी, उसके लिए तो वे सब समान रूप से काफिर, | स्थापना की कदाचित आवश्कता न बुतपरस्त, जाहिल और बेईमान थे। स्वयं भारतीयों को भी संस्थापक स्वामी दयानन्द ने जैनधर्म और जैनों का उन्हें उन्हें यह तथ्य जानने की आवश्यकता नहीं थीं क्योंकि | हिन्दूविरोधी कहकर खंडन किया। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ उनके लिए प्रायः सभी मुसलमान विधर्मी थे। किन्तु मुसलमानों | या जनसंघ में भी वही संकीर्ण हिन्दू साम्प्रदायिक मनोवृत्ति में जो उदार विद्वान् और जिज्ञास थे यदि उन्होंने भारतीय | दृष्टिगोचर होती है। स्वामी करपात्री जो आदि वर्तमान कालीन समाज का कुछ गहरा अध्ययन किया था प्रशासकीय संयोगों | हिन्दूधर्म नेता भी हिन्दूधर्म का अर्थ वैदिकधर्म अथवा उससे से किन्हीं ऐसे तथ्यों के सम्पर्क में आए तो उन्होंने सहज ही | निसृत शैव-वैष्णवादि सम्प्रदाय ही करते हैं। अंग्रेजी कोषग्रन्थों यह भी लक्ष्य कर लिया कि इन कथित हिन्दुओं में एक- | में भी हिन्दूइज्म (हिन्दूधर्म) का अर्थ ब्रह्मनिज्म (ब्राह्मणधर्म) दूसरे से स्वतन्त्र कई धार्मिकपरम्पराएँ हैं और अनुयायियों ही किया गया है। की पृथक-पृथक ससंगठित समाजें हैं। ऐसे विद्वानों ने या| इस प्रकार मल वैदिकधर्म तथा वैटिकपरम्परा में ही दर्शकों ने कथित हिन्दू समूह के बीच में जैनों की स्पष्ट सत्ता | समय-समय पर उत्पन्न होते रहनेवाले अनगितन अवान्तर को बहुधा पहचान लिया। मुसलमान लेखकों के समानी, भेद-प्रभेद, यथा याज्ञिक कर्मकाण्ड और औपनिषदिक तायसी, सयूरगान, सराओगान, सेवड़े आदि जिन्हें उन्होंने अध्यात्मवाद, श्रौत और स्मार्त,सांख्य-योग-वैशेषिक-न्यायब्राह्मणधर्म के अनुयायियों से पृथक् सूचित किया है जैन ही | मीमांसा-वेदान्त आदि तथाकथित आस्तिकदर्शन और थे। अबुलफजल ने तो आईने अकबरी में जैनधर्म और | बार्हस्पत्य-लोकायत वा चार्वाक जैसे नास्तिकदर्शन, भागवत उसके अनुयायियों का हिन्दूधर्म एवं उसके अनुयायियों से एवं पाशुपत जैसे प्रारम्भिक पौराणिक सम्प्रदाय और शैवसर्वथा स्वतन्त्र एक प्राचीन परम्परा के रूप में विस्तृत वर्णन | शाक्त-वैष्णवादि उत्तरकालीन पौराणिक सम्प्रदाय, इन किया है। सम्प्रदायों के भी अनेक उपसम्प्रदाय, पूर्वमध्यकालीन सिद्धों जब अंग्रेज भारत में आये तो उन्होंने भी प्रारंभिक और जोगियों के पन्थ जिनमें तान्त्रिक, अघोरी और वाममार्गी मुसलमानों की भांति स्वभावतः तथा उन्हीं का अनुकरण | भी सम्मिलित हैं, मध्यकालीन निर्गुण एवं सगुण सन्त परम्पराएँ, करते हुए, समस्त मुसलमानेतर भारतीयों (इण्डियन्स) को | आधुनिकयुगीन आर्यसमाज, प्रार्थनासमाज, राधास्वामी मत हिन्दू और उनके धर्म को हिन्दूइज्म समझा और कहा। किन्तु | आदि तथा असंख्य देवी-देवताओं की पूजा, भक्ति जिनमें १८वीं शती के अन्तिमपाद में ही उन्होंने भारतीयसंस्कृति का नाग, वृक्ष, ग्राम्यदेवता, वनदेवता, आदि भी सम्मिलित हैं, गम्भीर अध्ययन एवं अन्वेषण भी प्रारम्भ कर दिया था। और नानाप्रकार के अन्धविश्वास, जादू-टोना, इत्यादि- में से शीघ्र ही उन्हें यह स्पष्ट हो गया कि हिन्दुओं और उनके धर्म | प्रत्येक भी और ये सब मिलकर भी 'हिन्दूधर्म' संज्ञा से से स्वतन्त्र भी कुछ धर्म और उनके अनुयायी इस देश में हैं, ' सूचित होते हैं। इस हिन्दूधर्म की प्रमुख विशेषताएँ हैं ऋग्वेदादि 12 अक्टूबर 2007 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524321
Book TitleJinabhashita 2007 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2007
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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