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________________ पर्युषण के दिव्य आकाश पर प्रदूषण के बादल जागो जागो धर्म सपूतों समय दे रहा है आवाज । पर्युषण और श्री मंदिर की टूटे न कोई मर्यादा ॥ पर्युषण के दिव्य आकाश पर आज सांस्कृतिक कार्यक्रमों एवं आरती के नाम पर फूहड़ता, उदण्डता, अभद्रता, अनैतिकता स्वरूप प्रदूषण के काले बादल छा रहे हैं। पर्युषण का मौलिक स्वरूप खोता जा रहा । रागद्वेष से मुक्ति का पर्व, राग-द्वेष का रंग-मंच बनता जा रहा है। अहंकार ममकार के विसर्जन का पर्व, अहंकार ममकार की ललकारों का अखाड़ा बनता जा रहा है। त्याग तपस्या का पर्व भोग लिप्सा का साधन बनता जा रहा है धर्मध्यान की वृद्धि का पर्व आर्त, रौद्रध्यान का केन्द्र बनता जा रहा है प्रभुभक्ति का पर्व कम्वक्ती का साधन बनता जा रहा है। संवर निर्जरा स्वरूप शुभोपयोग का पर्व अशुभ- उपयोग का साधन बनता जा रहा है । कषायों पर विजय का पर्व कषायों के विस्तार का साधन बनता जा रहा है। जिस पर्व की धरती क्षमा और ब्रह्मचर्य आकाश है। संसार सागर से पार होने विनयरूपी नौका एवं सरलता की पतवार है । शौचधर्म के उत्तङ्ग शिखरों के पीछे से सत्य के सूर्योदय में संयम का प्रभात, तप का तेज, त्याग का प्रकाश, आकिञ्चन्य का आलोक और शील की सुगंध है। ऐसा महान् पर्व विकृति के भंवर में फँस गया है। मैं आज से कोई बारह वर्ष पूर्व पर्वराज पर्युषण पर्व पर प्रवचनार्थ कटनी गया था। पूर्व संध्या में एक सज्जन मेरे पास आए और एक लिस्ट मुझे सौपी जिसमें दस दिन तक का प्रवचन समयसीमा में नियंत्रित किया गया था और विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों का उल्लेख था । किसीकिसी दिन प्रवचन को मात्र पैंतीस मिनिट का समय निर्धारित था । उससमय मुझे मुक्ति की आधार माँ जिनवाणी पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों का बंधन अच्छा नहीं लगा और उन सज्जन से कहा कि आप मेरे प्रवचन में घड़ी उतार कर ही आना। उन्हें अच्छा नहीं लगा, कार्यक्रमों के आयोजक जो थे । कड़वा सा घूंट पी कर बोले भैया जी आप मेरी बात समझये कार्यक्रम नहीं होंगे तो पब्लिक ही नहीं आएगी आप प्रवचन किसे सुनाएँगे। वे सीधे-सीधे माँ जिनवाणी को चुनौती दे रहे थे । यद्यपि यह मेरा धर्म क्षेत्र में बाल्य काल था, कटनी बड़ी जैन समाज थी, मैने Jain Education International विधानाचार्य ब्र. त्रिलोक जैन चुनौती स्वीकार की । श्रीमान् जी आप क्या समझ रहे हैं, सांस्कृतिक कार्यक्रमों में माँ जिनवाणी से ज्यादा ताकत है | अब सिर्फ माँ जिनवाणी ही होगी और मैं रात्री आठ बजे कटनी के विशाल वोर्डिग में प्रवेश करते ही ताला लगवाता । जो आठ बजे अन्दर वो अन्दर और जो बाहर वो बाहर । परिणाम यह हुआ ७.३० से वोर्डिग पैक होने लगी, पर्युषण आनंद के हिमालय पर पूर्ण हुआ । अगले वर्ष सतना पर्युषण में उसी स्थान पर रुका था, जहाँ प्रवचन उपरान्त कार्यक्रम होते थे । एक रात जो जैसी फूहडता देखी सुनी मन खिन्न हो गया । उसी रात मंदिर से मूर्ति चोरी हो गई। प्रातः काल जब मूर्ति चोरी का समाचार सुना तब हृदय पीड़ा से तो भरा ही, पर एक दृढ़ संकल्प मन के आकाश पर उभरा कि आज के बाद पर्युषण में जहाँ कार्यक्रम होंगे वहाँ प्रवचन को नहीं जाऊँगा । एक स्थान पर प्रवचनार्थ जैसे ही मैं पहुँचा भाई बहनों ने मुझे घेर लिया। आहार के लिये लेने आते, आहार उपरान्त छोड़ने आते । साझ सब बच्चे आये भैया जी कौन-कौन से कार्यक्रम करवायेंगे। मैंने कहा कोई नहीं मात्र प्रवचन होंगे। परिणाम सब तोता मैना उड़ गये। मैंने जब कार्यक्रमों से होने वाली विकृतियों पर प्रकाश डाला तो अगले दिन एक सज्जन ने बताया कि पिछले वर्ष कार्यक्रमों के दौरान परिक्रमा पथ में अनाचार करते युगल को पकड़ा गया था। एक अन्य स्थान पर वाक्या और खेद जनक हुआ इन्डियन आइडियल की तर्ज पर एक कार्यक्रम के दौरान एक ग्रुप ने अपनी ओर से एक मुसलमान युवक को गाने उतार दिया और एक अबोध बालिका का उपहार दे दिया । अभी-अभी मैं एक बड़े शहर में प्रवचन कर रहा था। प्रवचन के अंतिम दिन एक सज्जन ने खड़े होकर पर्व में होने वाले कार्यक्रमों पर रोक लगाने की मांग करते हुए कहा, भैया जी यह काम आपके सामने हो गया तो ठीक नहीं तो इस साल भी विकृति की भंवरे उठना हैं । मैंने कार्यक्रम की आयोजक महिला मण्डल से बात की, उनके कार्यक्रम समर्थक तर्को को सुनने के बाद मैंने उन माता बहिनों से एक बात कही- 'अपनी अंतरआत्मा से पूछो आप जो कर रहीं हो उसका धर्म से कहीं दूर तक का भी वास्ता है ?' उनके चेहरे नीचे थे। कोई उत्तर नहीं - सितम्बर 2007 जिनभाषित 11 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524320
Book TitleJinabhashita 2007 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2007
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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