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भगवान् महावीर की मूर्ति में परिवर्तन
टी. एस. सुब्रमनियन (किस प्रकार तमिलनाडु के गाँव में सातवीं शताब्दी की एक जैन मूर्ति, देवी अम्मा की मूर्ति बन गई)
चेन्नै- तमिलनाडु के कोयम्बटूर जिले के अलिचर । प्रतिमा प्राप्त हुई। श्री गांधी राजन ने बताया कि उनको बांध के किनारे पर स्थित, पुल्लियन कंडी ग्राम में, जैन | यह मालूम नहीं था कि यह भगवान् महावीर की मूर्ति है। धर्म के अंतिम तीर्थंकर भगवान् महावीर की एक सुन्दर | वे पलानी से एक मूर्तिकार को ले आये जिसने क्षतिग्रस्त मूर्ति, हिन्दू देवी की मूर्ति के रूप में परिवर्तित की जा | मूर्ति को हिन्दू देवी के रूप में परिवर्तित कर दिया। भगवान् चुकी है। यह मूर्ति, जिस पर त्रिशूल लगाये जा चुके हैं, | महावीर की प्राचीन मूर्ति का जीर्णोद्धार किया गया और अब 'आदहली अम्मा' के रूप में है। ऐसा एक शोधार्थी | उसमें सीमेन्ट से स्त्री की आकृति निर्मित की गई। ने पुष्ट किया है।
___ मूर्ति पर आभूषण बना दिये गये और रंग से आंखें __ वह मूर्ति जो वास्तविक रूप से सातवीं शताब्दी की | बना दी गयीं। ताकि वह एक हिन्दू देवीमाता की तरह है, उस पर भगवान् महावीर की मूर्ति होने के सारे लक्षण दिखने लगे और उसके पीछे त्रिशूल लगा दिये गये। इसको हैं। उस मूर्ति के शिर के ऊपर 3 छत्र, दोनों तरफ चंवर | एक साड़ी से लपेट दिया गया। लोगों ने इसे आदहली धारक देव तथा आधार पर सिंह का चिन्ह है। भगवान् | अम्मा या अकाली अम्मा कहना प्रारंभ कर दिया। एक महावीर पद्मासन मुद्रा में हैं। ग्रेनाइट की यह मूर्ति 4% | पुजारी इसके समक्ष पूजायें भी करता है। फीट ऊँची तथा 292 फीट चौड़ी है और कदम पराई नदी |
श्री गांधी राजन ने नोट किया कि देवी के ऊपर के तट पर एक पत्थर में अंकित है।
तीन छत्र का होना, दोनों तरफ चंवर धारक का होना तथा एक कला इतिहास विशेषज्ञ के.टी. गांधी राजन, | नीचे आधार पर सिंह का चिन्ह होना, निश्चित रूप से जिन्होंने इस प्रकार की कई मूर्तियों की तमिलनाडु में खोज | स्पष्ट करते हैं कि यह भगवान् महावीर की मूर्ति थी। की है, कहते हैं कि उन्होंने मई 2007 में भगवान् महावीर । श्री गांधी राजन ने बताया कि तमिलनाडु में ऐसे
की मी की 'आदहली अम्मा' के रूप में परिवर्तित इस मूर्ति की | कई स्थान हैं जहाँ जैन तीर्थंकर अथवा बद्ध की मर्तियां. खोज की थी।
हिन्दू मूर्तियों के रूप में परिवर्तित की गयीं हैं। यह परिवर्तन लगभग 20 वर्ष पूर्व किया गया जब
उन्होंने यह भी बताया कि एक जैन क्षेत्र, जो उसी निकट के कोत्तूर ग्राम में रहने वाले लोगों को यह पाषाण
लभपट्टी के पास पुत्तूरमलाईनाम का मदुरै से 35 कि.मी. दूर है, वहाँ तीन मूर्तियाँ भगवान् महावीर, आदिनाथ तथा पार्श्वनाथ की, पहाड़ की तलहटी में निर्मित हैं। लेकिन वे ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव के रूप में परिवर्तित कर दी गयीं हैं। विष्णु तथा शिव तो कुमकुम तथा राख से पुते रहते हैं परन्तु, क्योंकि एक मूर्ति में तीन शिर नहीं जोड़े, जा सकते थे ताकि वह ब्रह्मा की तरह दिखने लगे, तो उन्होंने इसकी एक कथा बनाकर ब्रह्मा मान लिया है।
तमिलनाडु में जैनधर्म का २०० ईसापूर्व से नवी शताब्दी ईसवीं तक बहुत प्रचार था। तब यहाँ जैनों की बहुत संख्या थी और तमिलनाडु के उत्तर, पूर्व एवं दक्षिण के विशाल क्षेत्र में, बहुसंख्या में जैनमंदिर तथा जैनमूर्तियों का निर्माण हुआ था।
26 अगस्त 2007 जिनभाषित
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