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________________ ३५वें समाधि दिवस के कारण ३५ शास्त्र भेंट तथा ३५ | जिससे शुभोपयोग हो सके। आचार्य अमृतचन्द्र ने शुभोपयोग दीपकों से आचार्य विद्यासागर जी महाराज की आरती, को परम्परा से मोक्ष का कारण बताया है। वर्तमान की नारेली से पधारे तीर्थक्षेत्र के पदाधिकारियों द्वारा श्री अशोक | विकृतियों पर भी आचार्यश्री ने कई चुटकियाँ लीं। जैसेपाटनी (आर.के.मार्बल्स) एवं श्री मूलचन्द लुहाड़िया के | १. मठाधीश बन जाओगे तो आहारचर्या समाप्त हो जायेगी। नेतृत्व में आचार्यश्री से आगामी चातुर्मास के निवेदन हेतु | २. आहारचर्या समाप्त हो जायेगी तो मुनिचर्या समाप्त हो श्रीफल भेंट करने के उपरांत हुए प्रभावी प्रवचन में आचार्य | जायेगी। ३. सारी समितियाँ बदल रही हैं। ४. लोग शौचकूप कुन्दकुन्द, आचार्य जयसेन और आचार्य अमृतचन्द्र को | की बात करते हैं, पीछी लेकर शौचकूप में कैसे जायेंगे? दिगम्बर परम्परा का आचार्य बताते हुए जिनवाणी के सम्यक् | ५. आज नीहार और विहार समाप्त हो रहा है। ६. धर्म ज्ञान हेतु टीकाओं को पढ़ने की प्रेरणा दी और बताया कि | मार्ग चलो, ऊपर की (आगम) मानो यह हमारा आग्रह ग्रंथों के भावार्थ में गड़बड़ियाँ हुई हैं। जिनवाणी के प्रति | नहीं, सत्याग्रह है। यह व्यवहार ठीक नहीं है। मोक्षमार्ग पर चलना है, तो | तीन दिनों तक छ: सत्रों में चले इस शिविर में पूरी सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र का पालन करना | तरह से सैद्धान्तिक विषयों पर गहन चर्चा हुई। इस श्रुत होगा। लेकिन आज कोई सिर्फ ज्ञान को लेकर चल रहा | आराधना शिविर में प्रमुखरूप से सर्वश्री पं. अमरचन्द्र जैन है तो कोई चारित्र को, कोई दर्शन को लेकर चल रहा है | (कुण्डलपुर), पं. मूलचन्द लुहाड़िया (किशनगढ़), डॉ. लेकिन जब तक ये तीनों समानरूप से एक नहीं हो जायेंगे | रतनचन्द जैन (भोपाल), प्रा. निहालचन्द जैन (बीना), डॉ. तब तक प्रभाव नहीं दिखा पाते। जैसे अमृतधारा में कपूर, | रमेशचन्द जैन (बिजनौर), पं. निर्मल जैन (सतना), डॉ. अजवायन और पिपरमेंट का होना जरूरी है उसी तरह मोक्ष | राजेन्द्रकुमार जैन बंसल (अमलाई), डॉ. नेमिचन्द्र जैन के लिए रत्नत्रय का होना जरूरी है। आप लोग कूप (कुएं) । (खुराई), ब्र. प्रदीप जैन सुयश (अशोकनगर), ब्र. पुष्पा से जल निकालते हो तो बाल्टी बाँधते हो, उसमें तीन | दीदी (रहली), दमोह से डॉ. भागचन्द भागेन्दु, पं. अमृतलाल रस्सियाँ होती हैं। तीनों रस्सियों की एकता से ही जल नीचे | जैन, वाराणसी से डॉ. कमलेशकुमार जैन, डॉ. फूलचन्द से ऊपर आ पाता है यदि अलग-अलग रखोगे तो ठीक | जैन प्रेमी, डॉ. मुन्नी पुष्पा जैन, जयपुर से डॉ. शीतलचन्द नहीं रहेगा। जल ऊपर आते-आते नीचे चला जायेगा। | जैन, डॉ. प्रेचमन्द रांवका, डॉ. सनतकुमार जैन, डॉ. अखिल (भारत वर्ष में जल वैसे भी नीचे जा रहा है- हँसी) इसलिए | बंसल, पं. राकेश जैन, खतौली से डॉ. कपूरचन्द जैन, डॉ. यदि मोक्ष चाहते हो तो रत्नत्रय का पालन करो। रत्नत्रय | ज्योति जैन, मुरैना से पं. महेन्द्रकुमार जैन, डॉ. हरिशचन्द के संबंध में जो भी बोलो वह डंके की चोट पर बोलो।। जैन, पं. पवन दीवान, ग्वालियर से श्री रवीन्द्र मालव, पं. एक कुनेन की गोली से यदि मलेरिया ठीक हो जाये तो | अशोक शास्त्री, ईसरी से ब्र. कमल जैन, ब्र. पवन जैन, ठीक रहेगा नहीं तो मीठे से तो मलेरिया हो गया था। डॉ. नरेन्द्रकुमार जैन (सनावद), डॉ. सुरेन्द्रकुमार जैन शुभोपयोग और अशुभोपयोग की चर्चा करते हुए आपने | (बुरहानपुर), ब्र. संजीव जैन (कटंगी), जबलपुर से पं. बताया कि शुभोपयोग वह है जो अशुभोपयोग से रहित है। विराग शास्त्री, सुश्री नीरू जैन, अजमेर से श्री नरेन्द्रकुमार शुद्धोपयोग वह है जो अशुद्धोपयोग से रहित है। शुभ | जैन, श्री अकलेश जैन, पं. कपूरचन्द पाटनी (गुवाहाटी), और अशुभ को एक मानने को आचार्य अमृतचन्द्र ने अमृत | पं. इन्द्रसेन जैन (सहारनपुर), श्री रूपचन्द कटारिया में विष घोलने के समान बताया है। आपने चुटकी लते | (दिल्ली), श्री पी.सी. पहाड़िया (भीलवाड़ा), पं. सिद्धार्थ हुए कहा कि अशुभोपयोग का इतना दुर्भाग्य नहीं है जितना | जैन (सतना), इन्दौर से ब्र. जिनेश मलैया, श्री निर्मल शुभोपयोग का पिटना है। अशुभोपयोग से बचने के लिए पाटोदी आदि देश के शीर्षस्थ विद्वानों/ पत्रकारों ने श्रुताराधना आचार्यश्री ने सबसे पहले पाँच पापों का त्यागकर पाँच व्रत, | शिविर में सहभागी बनकर आचार्य श्री विद्यासागर जी समिति, त्रिगुप्ति और षट् आवश्यक पालने की प्रेरणा दी | महाराज के श्रीमुख से श्रुतश्रवण का सौभाग्य अर्जित किया। 44 जून-जुलाई 2007 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524318
Book TitleJinabhashita 2007 06 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2007
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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